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NARINDER SHUKLA

Drama

5.0  

NARINDER SHUKLA

Drama

लाइनें लगी हैं

लाइनें लगी हैं

7 mins
471


एक सरकारी अस्पताल में इलाज़ के लिये लाईनें लगी थीं।

काउंटर नं 3,4, आम लोगों के लिये, काउंटर न 6 दिव्यागों के लिये, 7 नं अस्पताल के कर्मचारियों व डाक्टरों के प्रियज़नों के लिये तथा काउंटर न 8 न्यूनतम 65 वर्ष व इससे अधिक उन  के लिये था जो संतान की बेरुख़ी के कारण अस्पताल से जुड़े रहना चाहते हैं।  काउंटर नं 3,4 पर सुबह से ही झगड़ा चल रहा था। बात बस इतनी सी थी कि गांधी टोपी पहने एक शक्स काउंटर न 3 पर खडे़ सरदार जी को ढकेलता हुआ काउंटर कर्लक के पास जा रहा था।

पहले तो सरदार जी की ही तरह लाइन में लगेे पेशेंटस उसे नेता समझते हुये लाइन क्लियर करते रहे लेकिन जब कार्ड बन जाने पर काउंटर नं 4 से बाहर आते हुये उनकी बीवी ने उनकी टोपी उतारते हुये कहा कि अब ज़्यादा होशियारी की आवश्यकता नहीं तो सबसे पहले सरदार जी ने उन्हें लपेटा - अपणे - आप नूं ज़्यादा होशियार समझदा है। 

अप्पा पागल हैं जिहड़े सवेरे सत्त बजे तो एत्थे खड़े आं। एदर आ तैन्नू देइये टिकट लोकसभा दा लड़गी दे के गिरा देता है। हमारे देश में जो नेता हो जाता है भैंस उसी की हो जाती है। वह कहीं भी, कभी भी, कोई भी लाइन तोड़ सकता है। कोई रोक - टोक नहीं। कोई मर्यादा नहीं। एक नेता देश को आज़ाद करवाने में नरम दल व अंहिसा के पथ पर चलने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की अपेक्षा हिंसक आजादी के दीवानो को अधिक तवज्जो देता है। वह आज़ादी की प्रक्रिया में निहित देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों के सामूहिक प्रयासों, एकता व अखंडता के जज़्बे को भूल जाता है। उसे लक्ष्मण रेखा की ज़्वाला भस्म नहीं कर पाती। आग बनावटी है ं तेल मिलावटी है। प्रण, प्रेम, निष्ठा, श्रद्धा व सम्मान जैसे शब्द बेमानी है। बहरहाल, लाइन में सबसे पीछे खड़े मज़नू-नुमा लड़के ने कहा - सरदार जी, मेरी ओर से भी एक जड़ दो साला मूर्ख बनाता है। इससे पहले कि सरदार जी मज़नू-नुमा लड़के की फरमाइश पूरी करते। नेता जी की बीवी ने उन्हें उठाते कहा - खबरदार, जो हाथ लगाया। ये मेरे पति हैं।

बेचारे बीमार हैं। कुछ तो रहम करो। सरदार जी ने गौर से उस स्त्री की आंखें में देखा। गज़ब का आकर्षण था। झील सी सुंदर आंखें डूबने का खुला आंमत्रण दे रही थीं। सरदार जी मदहोश हो गये। एक पल के लिये एकाएक समय ठहर गया। सरदार जी उस शीतल झील में उतरना चाहते थे। स्त्री ने आंखों के ठीक नीचे काज़ल की लाइन खींची हुई थी। वे एक कदम पीछे हट गये। स्त्री को रास्ता देते हुये बोले - जाओ जी, तुस्सी जाओ। जाण दो बइ जाण दो। बेचारा बुखार नाल तप्प रिहा है। लाइन में लगे लोगों को चैन नहीं था। रास्ता रोक कर खड़े हो गये। सुट - बूट पहने एक जैंटलमेन का सरदार जी का सुझाव पंसद नहीं आया। गुस्से से बोले - ही इज़ टैलिंग लाई। वी शूड काल द सिक्योरिटी। सिक्योरिटी  ओ सिक्योरिटी। 

सिक्योरिटी मैन अपने रिश्तेदारों को लाइन में सबसे आगे एडज़स्ट करने में व्यस्त था। वहीं से चिल्लाया - आय रहें हैं। ससूर का नाती नाक में दम का रखा है। एको छन शांत नाहीं रह सकते। आय रहे हैं। इधर, लाइन में सबसे पीछे खड़े मज़नू नुमा लड़के ने कहा - मुझे भी बुखार है पिछले तीन दिनों से बराबर लाइन लगा रहा है। काउंटर पर पहुंचते - पहुंचते खि़ड़की बंद हो जाती है। सरदार जी के पीछे खड़े एक मज़दूर ने कहह। लाइन ही नहीं खतम होती। फैक्टरी वाला पगार काट लेता है और ये बाबू लोग आसानी से कारड बनवा लेते हैं।

हमारा तो जीवन लाइन से शुरु होकर लाइन में ही खतम हो जाता है। एक बुजूर्ग ने समझाया - भाई, एक लाइन के लिये आपस में न झगड़ो। शांति से काम लो। हमें देखो, हमने यहीं पास में ही कमरा किराये पर ले लिया है। मरीज़ के साथ सारा परिवार यहीं शिफट हो गया है। सुबह - सुबह मैं यहां कार्ड पर डेट डलवाने के लिये खड़ा हो जाता हूं। मेरा बेटा, मोहन डाक्टर के रूम के बाहर लगी लाइन में ‘आवाज़ ‘ के लिये बैठता है। बेटी, राधा खून टैस्ट की लाइन में लगती है और छोटा बेटा, रूल्दू रिर्पोट की लाइन में लग जाता है।

अगर एक्सरे, अल्ट्रा साउंड हो तो रिश्तेदाररों को बुला लेते हैं। सब मज़े से चल रहा है। कोई टेंशन नहीं। इस बीच एक कल्चरड व्यक्ति ने जोश में आकर 100 नंबर डायल कर दिया। पीछे से आवाज़ आई - इस रूट की सारी लाइने व्यस्त हैं। कल्चरड व्यक्ति की लाख कोशिशों के बाद भी जब नंबर नहीं मिला तो उसने झेंपते हुये चुपके से फोन जेब में रख लिया।  काउंटर नं चार पर लगी एक मोटी व अधेड़ महिला ने सुझाव दिया - लातों के भूत बातों से नहीं मानते। जद तक छित्तर परेड नहीं करोगे तद तक एह नहीं सुधरणगे। काउंटर नं तीन पर लगे अधिकांश मर्दों को यह सुझाव पसंद आया। ये सब सार्वजनिक स्थानों पर नारी सशक्तिकरण के पक्षधर थे। नारी प्रेरणा व उत्साह का प्रतीक है।

ऐसा उन्होने किताबों में पढ़ा था। बस फिर क्या था। सब के सब के तथाकथित नेता जी पर टूट पड़े और तब तक पीटते रहे जब तक आरोपी दम्पति ने माफी नहीं मांग ली।  तथाकथित नेता जी के नाक - कान से खून बहने लगा। सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें सबसे पीछे लाइन में खड़ा कर दिया।

लाइन के मामले में टीनेज़र्स बड़े तेज़ हैं। जहां कहीं भी सुंदरता देखी लाइन लगाना चालू। फेसबुक पर दसवीं क्लास के एक बच्चे ने अपने ग्रुप में लिखा - मीना मैम इज़ सो हाॅट। साडी़ में बिल्कुल माधुरी लगती हैं। दूसरे बच्चे ने लिखा - एक्जै़क्टली। तीसरे ने लिखा - स्कर्ट में तो हम सब को मार देंगी। चैथा मीना मैम से हाल में ही पिटा था, ने लिखा - पागलो, ध्यान से देखो तो तुम सब की अम्मा लगती हैं। पहले बच्चे को सचमुच अपनी अम्मा याद आ गई जिसने युनिट टैस्ट फेल होने पर न केवल उसका मोबाइल छीन लिया था बल्कि उसकी गर्लफे्रंड के सामने ही उसे दो झापड़ मार दिये थे। उसने गाल सहलाते हुये टाॅपिक बदलते हुये लिखा - यारो छोड़ो, और हाउ इज़ लाइफ गोइंग ऑन ?

दूसरे बच्चे ने लिखा - नाट रियली गुड। पहले ने कहा - क्यो, व्हाटस हैपन ? दूसरे बच्चे लिखा - गर्ल फ्रैड से ब्रेकअप हो गया। पहले ने सुझाव दिया - दूसरी कर लो। दूसरे ने लिखा - मैं तेरे जैसा नहीं कमीने, जो सौ - सौ गर्लफ्रेड रखूं। मैं उससे सच्चा प्यार करता gwa। पहला हंसा - व्हाट रबिश इस जमाने में भी कोई सच्चा प्यार कर सकता है। देखो ये तो बन गया कुत्ता। देखो बंध गया पटटा। गाने को लाइक करने वालों की लाइन लग गई। दूसरे बच्चे ने सभी को ब्लाक कर दिया। हाल में एक सोशल साइट पर किसी ने टवीट किया कि भारत में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है। इससे पहले की रूलिंग पार्टी इसका ज़वाब देती। सरकारी अवार्ड लौटाने वालों का लाइन लग गई। सरकार ने इसे विपक्ष की चाल बताते हुये नये अवार्डों की घोषणा कर दी। दिया। अवार्ड वापिस लेने वालों की पुनः लाइन लग गई। हमारे यहां लाइन में चलने का चलन पुराना है। चींटियां लाइन में चलती हैं।

पिता चाहता है कि उसका पुत्र उसकी राह पकड़े। उसके पीछे चले। मुगलों के बाद अंग्रेज़ और और देसी लोग लाइन में चल रहें हैं। भिखारी मंदिर के बाहर व सार्वजनिक स्थलों पर लाइन में भीख मांगते हैं। बचपन में मैथ का होमवर्क न करने पर मैथ सर हमें मुर्गा बनाकर प्रभात फेरियां निकलवाते थे और हम प्रभात फेरियां निकलाते - निकालते घर हो लेते थे। ज़माना बदल गया लेकिन लाइन आज भी जिधर देखो उधर लाइने ही लाइने नज़र आती हैं। रेल, सेल, बस, दाखिला, राशन, मकान, दुकान, बैंेक, वोट, नोट सब तरफ लाइने ही लाइनें।

बच्चे दूध के लिये, नौवजवान नौकरी के लिये, अधेड़ परिवार के बेकाबू होते हुये खर्च के लिये , घर के बुज़ूर्ग अंतिम समय में पेंशन से जुझते हुये लाइन लगाये बैठे हैं एक ओर रोटी के लिये लाइन लगी हैं। दूसरी ओर बोटी के लिये लाइन लगी है। एक ओर फसल बरबाद हो जाने मुवावज़े के अभाव में किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं की लाइन लगी है। दूसरी ओर सत्ता हासिल कर अधिक से अधिक पैसा बनाने की होड़ लगी है। एक तरफ मार है।  दूसरी ओर धार है। सरकार डिज़िटल - डिज़िटल चिल्ला रही हैं लेकिन गरीब के जीवन में कहीं कोई परिवर्तन नहीं। धन जन योजना, पेंशन योजना, गरीब गैस सब्सिडी योजना आदि तमाम योजनाओं की लाइन लगी हैं। सरकार नये - नये स्लोगन व चहुंमुखी आंकड़ों की डुगडुगी पीट रही है । लेकिन, कहीं रोटी नहीं, कहीं रोज़गार नहीं। कहीं मुस्कराहट नहीं। कहीं आशा की किरण नहीं। सब जगह सर्वर डाउन है। आज सभी योगी हैं। भोगी बनने का सामर्थ्य इन कमज़ोर हड्डियों में नहीं है।


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