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बिरजू नहीं मरेगा

बिरजू नहीं मरेगा

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"गंगा मैय्या मोर बिटवा लौटा दे गंगा मैय्या ........बड़बड़ाती हुई एक बुढ़िया नदी में उतर गहरे पानी तक पहुँच गई| उसे देख एक नाविक ने पीछे से आवाज दी- "ऐ अम्मा! डूब जईयोंह दूर मति जाना ......"

 

जोर से दी गई आवाज के कारण बुढ़िया की तन्द्रा टूटी उसकी दशा देख कर ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उस पर सम्मोहन कर दिया हो और वह उसके कहे अनुसार करती जा रही हो .आवाज से चौंकी बुढ़िया ने देखा कि वह गहरे पानी में है, दो युवकों ने खींच कर उसे बाहर निकाला उनमें से एक बोला- "पगली कहीं की जब देखो परेशान करती रहती है। उसकी बात से बेखबर बुढ़िया चिल्लाये जा रही थी गंगा मैय्या से मैं अपना बिटवा वापस लूँगी...... ..

 

बुढ़िया यहीं पास में रहने वाली भिखारिन है, उसके सम्बन्ध में आज तक बड़े -बूढ़े एक कहानी सुनाते आये हैं की वह एक अमीर जमींदार की पत्नी थी, घर में सुख-सम्पति थी, पति भी नेक था किन्तु औलाद नहीं थी| जमीदारनी ने घाट-घाट के देवता को पूजा न जाने कितने व्रत किये, नंगे पैर पहाड़ पर देवी के दर्शन किये आखिर मुराद पूरी हुई फूल सा लड़का जमीदारनी की गोद में खेलने लगा।जमीदारनी लड़के की सुरक्षा के प्रति बड़ी सतर्क थी उसे एक क्षण भी आँखों से ओझल नहीं होने देती। देखते-देखते लड़का बारह बरस का हो गया, माँ की अतिदक्षता के कारण वह परेशान रहने लगा| एक दिन स्कूल से बिना बताये गंगा नहाने चला गया, नहाते समय भूल से वह गहरे पानी में चला गया तैरना न आने के कारण वहीं पानी में डूब गया| जमीदारनी को जब यह बात पता चली तो वह दुःख से पागल हो गई उसे विश्वास ही नहीं होता था की उसका बेटा इस दुनिया में नहीं है| कुछ दिनों के पश्चात उसके पति की भी मृत्यु हो गई, पहले से ही दुखी जमीदारनी इस सदमे के कारण बिल्कुल टूट गई| नाते-रिश्तेदारों ने स्थिति का फायदा उठाया सारी धन -दौलत हथिया ली और उसे घर से निकाल दिया तब से वह मारी-मारी फिरती है, गंगा नदी को एकटक निहारती है कभी पानी में उतर कर अपने बेटे को खोजने लगती है कितनी बार लड़कों ने उसे गहरे पानी से निकाला है, वह जितना चाहती है उसे मृत्यु आ जाये मृत्यु उससे उतना ही दूर भागती है।

 

बनारस के घाट पर पंडितों, भक्तों और यात्रियों की भीड़ लगी हुई थी पर किसी को फुर्सत नहीं थी की उसकी ओर देखें| न जाने ऐसे कितने पागल सड़कों में घूमते रहते हैं एक उड़ती से नजर उन पर डालकर लोग स्नान पूजा-अर्चना में लग जाते हैं और पंडित यजमानों को लुभाने में लगे रहते हैं| जीते-जागते इंसान पशुओं से भी बदतर जीवन जीते हैं पर उनकी दृष्टि में अपने पापों का फल भोग रहे हैं| बुढ़िया भी अपने  किन्हीं तथाकथित पापों की सजा ही भोग रही थी| बड़बड़ाती हुई बुढ़िया भिखारिन जीर्ण-शीर्ण गीले कपड़ों में ही एक ढाबेनुमा होटल के सामने जल रही भट्टी में हाथ सेंकने लगी, यह देख हलवाई जोर से चिल्लाया- "ऐ बुढ़िया चल है यहाँ से ...हट...हट चल ..."

 

हलवाई इन शब्दों का प्रयोग करके  कुत्ते और मनुष्य का भेद भूल गया था पर अपमान सहन करने की आदी बुढ़िया निर्लज्जता से बोली -"जा नहीं जाती पहले जीमने को दे तबई जाहूं।"

 

उसे हटते न देख हलवाई बूंदी निकालने के बड़े झारे को हाथ में लेकर उसकी और दौड़ा घबरा कर बुढ़िया होटल के पिछवाड़े की ओर भागी, हलवाई तो वहां भी उसके पीछे आता पर उसे याद आया कहीं बूंदी जल न जाये और वह लौट आया| पिछवाड़े में होटल में काम करने वाला छोटा लड़का बाबू बर्तन मांज रहा था। बुढ़िया को देख वह सारा माजरा समझ गया, उसने हाथ के इशारे से बुढ़िया को पास बुलाया और पूछा- "क्यों माई भूख लगी है, अरे ऊ जालिम हलवाई तुझे कछु  न देगा ये ले मैं देत हूँ।"

ऐसा कहते हुए उसने कुछ अधखाए समोसे और पूड़ी बुढ़िया को दे दी।

बुढ़िया बड़े चाव से समोसा खाते हुए बोली -"तोर लाने नई रक्खो कछु।"

"खूब है माई मैंने सारी जूठी पलेटों से से बचो खाना निकाल लओ है। "

बुढ़िया उसे ताकते हुए बोली- "तू पहले तो कबहुँ नई दिखो, कौन है रे तू कहाँ से आओ है।"

"मैं बाबू हूँ "आँखे मटकाते हुए लड़का बोला गांव में मोर सौतेली माँ परेशान करत रही सो बापू ने इहाँ लाकर छोड़ दओ, महीने  के आखिर में बापू आवत है और मेरी कमाई के सबरे पैसे ले जात है।"

"तू रहत कहाँ है रे?" बुढ़िया ने उत्सुकता से पूछा।

"होटल के पिछवाड़े की कोठरी में, पहले वहां अनाज रखत हते अब अगड़म-बगड़म सामान पड़ो रहत है, उतई एक कोने में सो जात हूँ।"

"माई तू कहाँ रहत है "बालक ने पूछा।

"मैं कहाँ रहत हूँ, का करेगो जानकर कहीं भी पड़ी रहत हूँ कभी सड़क पर कभी रेल के पिलटफॉर्म पर, बिटवा जहाँ जगह मिल जाये दो घड़ी को सुस्ता लेत हूँ|

“माई तू मेरे साथ रह न, अकेले में मोहे खूब डर लगत है " बच्चे ने चिरौरी करते हुए कहा|

बुढ़िया घबरा कर आँखे फैला कर बोली- "न बचुआ न दुकान को मालिक मोहे मार भगाएगा"

"माई तू रात को आना और भिन्सारे चली जाना, मालिक को कछु पता न लगेगा।"

"ठीक है तू कहत है तो रात में आ जाब" यह कह कर बुढ़िया चली गई।

 

रात गए बाबू को नींद नहीं आ रही थी, बारह के घंटे पड़ गए पर माई नहीं आई| उसे लगा अब नहीं वह आयेगी पर तभी दरवाजे पर खटका हुआ, उसने देखा बूढ़ी माई सामने खड़ी है। बाबू ने उस झट अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर दिया और पूछा- "माई, तूने इतनी देर काहे कर दई।"

 

"अरे मैं भूल गई हती जाडो लगो तब याद आई तूने बुलाओ हतो अब इहाँ आराम से सोऊंगी, जाड़ा भी न लगेगा|"

सुबह -सुबह माई की नींद खुली तो देखा बाबू चाय लिए खड़ा है- "माई जल्दी हाथ-मुहं धो ले, चाय लाऊँ हूँ तोर लाने। "

"कहाँ से लाओ है रे चाय?" माई जम्हाई लेते हुए बोली।"

"माई मैंने थोड़ी सक्कर-पत्ती छुपा कर लाई हती बासे बनाई है।"

"छुपा कर मतबल तूने चोरी करी हती" बुढ़िया नाराजगी से बोली।

"माई चोरी नहीं करूँ तो खाऊं का" बाबू ने निराशाजनक स्वर में कहा।

"चोरी की चाय मैं न पियूंगी "माई ने गुस्से से कहा और चाय बिना पिये निकल गई, बाबू का मन दिन भर काम में न लगा, बीच-बीच में मालिक भी उसे डांटता जा रहा था।

 

बाबू के बदनसीब जीवन में भगवान ने इतना सारा दुखों का सामान दे दिया था जिसे वह अमानत समझ कर सम्हाले जा रहा था, दस -बारह साल का बच्चा गल्तियां नहीं करेगा तो फिर क्या बड़ा आदमी गलती करेगा। इतनी सी बात इन लोगों को समझ नहीं आती। गांव में सौतेली माँ ने इतने दुःख दिये थे कि यहाँ मिलने वाले दुखों को भी उतनी ही सहजता से ग्रहण कर रहा था। बस जब बच्चों को स्कूल ड्रेस में सज-धज कर स्कूल जाते देखता तो भरी आँखों से निहारता ही रह जाता|वह सोचता सभी बच्चों के हाथ-पैर तो एक जैसे होते है नाक, कान, आँखे भी सभी के पास हैं पर कुछ बच्चों की तक़दीर भगवान इतनी अलग क्यों लिख देता है, वह आंसू पीकर फिर काम में लग जाता, जीवन के इन दस -बारह सालों में उसने जितना पानी नहीं पिया है उतने आंसू पिये हैं|

 

माई का रुखा स्वभाव बालक के कोमल व्यवहार से कहीं भी मेल न खाता फिर भी माई रोज रात सोने  के लिए आने लगी, मालिक के भय से सुबह उठ कर चली जाती। यह बात दुकान में अभी किसी को भी पता न लगी थी| बाबू को देखकर माई को कभी-कभी बिरजू की याद आती, इतना ही बड़ा था जब गंगा मैय्या ने उसे उससे छीन लिया था। आज यदि जिन्दा होता तो बिरजू का बेटा बाबू के बराबर होता।

 

उस  दिन माई जरा जल्दी कोठरी की तरफ भागी जा रही थी| आज एक भक्त ने प्रसाद में पेड़े उसे दिये थे वह बाबू को खिलाना चाहती थी पर दुकान पहुँच कर क्या देखती है मालिक बाबू को छड़ी से मारे जा रहा है साथ ही चिल्लाते जा रहा है- "बोल तोड़ेगा प्लेट ....ध्यान  से काम नहीं करेगा ..."

 

बाबू शांत भाव  से मार खा रहा था, आँखें भरी हुई थी शायद आंसू पीना उसने फिर शुरू कर दिया था| माई ने यह दृश्य देखा तो उन्हें लगा बिरजू को कोई पीट रहा हो और वह मूक आँखों से उसे देख कर कह रहा हो माई ..मुझे बचा  ले माई

 

बिजली की गति से बुढ़िया आगे आई और मालिक के हाथ की छड़ी पकड़ ली गरज कर बोली- "ख़बरदार जो उसे उँगली भी छुआई तो मेरे बिटवा को।"

"तेरा बिटवा, मालिक उपहास से बोला पागल बुढ़िया तेरा दिमाग तो ठिकाने है, यह लड़का तेरा कब से हो गया।"

"रामजी ने जबसे गोद में डालो है इको तबई से और सुन तूने इको हाथ भी लगाओ तो हाथ तोड़ डारब" यह कहते हुए बुढ़िया ने भट्टी में से जलती हुई लकड़ी निकाल ली और मालिक की और दौड़ी|

बुढ़िया का चण्डिका रूप देख कर मालिक घबरा गया और होटल के भीतर भागा। बाबू का हाथ खींचते हुए बुढ़िया बोली- "चल बाबू अब आज से तू इहाँ न रहेगो|"

बाबू स्थिर खड़ा था उसके समक्ष कई प्रश्न थे यहाँ नहीं रहेगा तो कहाँ रहेगा? उसका बापू पूछेगा काम क्यों छोड़ा तो क्या बोलेगा? बापू बहुत मारेगा, उसके पग आगे नहीं बढ़ते थे।

 

पर बुढ़िया कहाँ रुकने वाली थी हाथ पकड़ कर उसे साथ ले गई, दोनों अँधेरी रात में चले जा रहे थे। चलते -चलते श्मशान घाट पहुँच गए वहां एक मुर्दा जल रहा था। माई की इच्छा हो रही थी बाबू को लेकर अग्नि में प्रविष्ट कर जाएँ, इस शारीर को लगे हुए दुःख, दुविधा पीड़ा इसी अग्नि में जलकर समाप्त हो जाते हैं। पर फिर न जाने कहाँ से आत्मबल आ गया ह्रदय से आवाजें आने लगी नहीं .....नहीं......मेरा बिरजू नहीं मरेगा......मेरा बिरजू फिर नहीं मरेगा .......

 

और दृढ निश्चय के साथ वे पीछे हट गई। अंधियारे में गंगा का पानी चाँद के प्रकाश में झिलमिला रहा था आज गंगा मैय्या मानो कह रही थी जिसे बरसों से मांग रही थी मुझसे उसे आज लौटा दिया तुम्हें|

 

वे बाबू को ले पास में ही स्थित झोपड़ी में गई यहाँ श्मशान का कार्य करने वाले दंपत्ति रहते थे। माई ने अपनी आपबीती उन्हें सुनाई और रात भर के लिए आसरा माँगा|

 

दूसरे दिन माई सुबह ही घर से निकाल गई वे आज भीख माँगने नहीं निकली थी बल्कि काम की तलाश में निकली थी। उन्हें उनके बाबू को पढ़ाना था उसे बड़ा आदमी बनाना था। बिरजू भी कभी मरता है ....आज वे सोच रही थी इस संसार में एक नहीं लाखों-करोड़ों बिरजू हैं।

 

अब गंगा मैय्या से उन्हें कोई शिकायत नहीं थी|

 

                                                                                                                                   

 

 

 

 

 


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