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नकाब

नकाब

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रोली की शादी की तारीख नजदीक आ रही थी। रिश्ता रोली के पापा के ऑफिस के दोस्त ने बताया था, उन्हीं के रिश्तेदार थे दूर के। देखना दिखाना हो गया था तारीख भी तय थी और रोली अपनी शोपिंग में बिजी थी। माँ कुछ रह तो नहीं गया लिस्ट में....रोली ने ना जाने कितनी बार पढ़ ली थी लिस्ट। मेकअप किट से लेकर गहनों तक।

गहने तो उसकी दादी के थे, जो मम्मी को दिये थे। पुराने बने झांझर, पायल, हसँली, रानीहार, भारी-भारी कडे़, कमर तगडी, झुमकी वो भी छह लड़ियों वाली। सब बहुत खुश थे। लड़के का नाम अजीत था, अजीत भी बहुत सुंदर था, रोली के साथ खूब जँच रहा था, जब देखने आये थे और जब सगाई हुई तब तो सब देखते ही रह गये।रोली का नसीब है ही बड़ा अच्छा, सबके मुँह पर ये ही बात थी।

रोली अकेली संतान थी तो शादी मे कसर नहीं छोडना चाहते थे। फिर भी अजीत की पूरी जानकारी के लिये रोली के पापा, जिन्होने रिश्ता बताया था उन्हें लेकर लड़के को देखने कम्पनी गये, शहर दूर था तो कम्पनी तक पहुँचे तब पता चला अजीत छुट्टी पर था। उस दिन होटल में रुकना पड़ा पर अगले दिन पहुँचे तब रिस्पेशन पर पता चला, मिटिंग में बिजी है, मिटिंग देर तक चलनी थी, वहाँ बताया कि शाम भी हो सकती है, बाहर से लोग आये हैं, मल्टीनेशनल कम्पनी थी।

पापा के साथ जो उनके दोस्त गये थे, कहने लगे, कल से यहीं है, कम्पनी में पता तो चल गया कोई अजीत है, तो निश्चिंत हो जाओ चलो और क्या पता करना, ये ही तो देखना था कि कोई अजीत है भी या नहीं। थकान भी थी, रोली के पापा को बात सही लगी और दोनों घर वापस आ गये पर खुश थे कि अच्छा लड़का है।

अजीत रोली को फोन करता, दोनों बात करते, रोली भी खुश थी। बहुत अच्छे से शादी हुई। रोली, अजीत के घर आ गयी। सब बहुत ध्यान रख रहे थे रोली का। दो दिन बाद जब सब मेहमान चले गये, पग फेरे की रस्म में रोली घर आई तो सबकी बहुत तारीफ कर रही थी। मम्मी-पापा, रोली के लिए भी खूब खुश थे कि चलो रोली बहुत ही खुश है।

अगले दिन जाना था, रोली की मम्मी ने बहुत कुछ देकर विदा किया, रोली ससुराल पहुँची ...तभी देखा एक हमउम्र लड़की खाने के लिये बुलाने आई। आप रोली ने पूछा ..मैंने देखा नहीं आपको आज ही आई हैंं। लड़की घबरा गयी। हाँ कहकर बोली- बाहर खाना लगा दिया है। रोली ने कहा, ''अच्छा आती हूँ।

रोली ने डाइनिंग टेबिल पर आते ही उस लडकी के बारे मे पूछा, ''मम्मीजी ये कौन है।''

रोली ये हमारे मायके से है, घर के काम में हाथ बँटा देती है, गरीब घर की बेटी है, सोचा हमें भी आराम हो जायेगा और इसके घरवालों को रूपये से घर का खर्चा निकल जायेगा। रोली ने कहा- मम्मी जी आपने बहुत अच्छा किया।

रोली शाम को सब बातें मम्मी से फोन पर बताती रहती।

और वो लड़की कमरे में आई। बोली- चादर लेनी थी धोने के लिये। हाँ हाँ बैठो रोली ने मुस्कुराते हुये कहा।

नहीं नहीं लड़की ने घबराते हुये कहा- काम है बहुत...

अरे तुम मेरी ही उम्र की हो क्या नाम है ?

तभी रोली की सास की आवाज सुनायी दी। कहाँ गयी ?

आई और वो तेजी से चादर बेड से उतार कर जाने लगी।

रोली ने कहा- नाम तो बताओ ?

झरना है ..कहकर तेजी से बाहर आ गयी।

रोली ने सबसे पूछा, ये झरना इतना शर्माती क्यूँ है ?

ये गाँव से आई है। थोड़ा झिझकती है सबसे। अजीत ने कहा।

अगले दिन रोली ने कहा ''झरना रूको।'' आज से मैं भी रसोई में जा सकती हूँ, मीठा कुछ बनाना है, उसके बाद हम दोनों मिलकर काम करेगें, काम भी जल्दी होगा और हमें बातें करने का समय भी। मैं भी नयी हूँ, कोई दोस्त नहीं, तुम हमउम्र हो। खूब जमेगी हमारी। अजीत की मम्मी ने कहा- ये ज्यादा बातें नहीं करती।

झरना कुछ नहीं बोली, रसोई से बाहर आ गयी। सासू माँ से सामान लेकर रोली ने खीर बनायी। सबको बहुत पसंद आई। रोली की सास ने कहा, नेग देते हैं, कुछ पहली बार बहू बनाये तो।

रोली ने कहा, अरे इसकी जरूरत नहीं। हाँ हाँँ... वही तो साड़ी, अँँगुठी ली है, अलमारी में है जब मायके जाओगी दिखाने ले जाना। रोली ने सीधे स्वभाव सोचा सही भी तो है, अभी मुझे करना भी क्या ! पर मम्मी को बता दिया नेग में साड़ी,अंगुठी मिली पर बाद में देंगीं ..कोई बात नहीं, रोली की मम्मी ने कहा।

शाम को अजीत ने रोली से कहा, ''रोली मैं सोच रहा था और पापा- मम्मी की भी राय है कि तुम जेवर लॉकर में रखवा दो। यहाँ का माहौल ठीक नहीं। इस घर में शादी हुई है तो रूपये जेवर होंगे, सबको पता होगा। सावधानी बरतनी चाहिये। रोली ने कहा, हाँ ठीक है, मैं भी निश्चिंत हो जाऊँगी, नहीं तो अलमारी को बार-बार देखना कि सुरक्षित है जेवर,रूपये एक झंझट ही है। ठीक है ये लो बैंक में रख देना।

रोली ने सब अजीत को दे दिये। झरना, रोली दोनों मिलकर काम करती। रोली को महसुस हुआ रोली के ससुराल वाले आसपास होते तो झरना बात नहीं करती पर नहीं होते तो रोली की चुलबुली बातों पर मुस्कुरा देती। रोली को लगने लगा की झरना धीरे-धीरे खुल रही है।

रोली ने माँ को फोन किया ..जब फोन.किया तब बता दिया ...मम्मी सब गहने, रूपये बैंक में अजीत रख आये।अच्छा किया रोली घर सुरक्षित नहीं होता। मम्मी झरना थोड़ा खुल रही है मुझसे, पर डरती है सबसे शायद।

रोली की मम्मी ने कहा...हाँ बेटा वो गाँव में रही, अब शहर में आने पर घबराहट होती है, तुम प्यार से रखना ....हाँ मम्मी ये भी कोई कहने की बात है ! आप जानती नहीं हो क्या मुझे।

झरना सब कहाँ है, रोली ने पूछा- झरना ने बस आँखो से इशारा किया तो रोली समझ गयी छोटे कमरे में है..पर उसका इशारा देखकर वो हँस दी ....बोल नहीं सकती क्या झरना।

और कमरे में पहुँची सब चौंक गये रोली तुम ..अजीत ने कहा।

अरे आप सब क्या बात कर रहे हो ? नहीं बस खाने मे क्या खायेंगें रात को ये ही पूछ रही थी अजीत की मम्मी ने कहा। रोली ने कहा- झरना ने चाय बना ली है चलिये।

हाँ तुम चलो, हम आते हैं। अजीत के पापा ने कहा। रोली बाहर आ गयी।

रोली अगले दिन काम में लगी थी। झरना भी सफाई करा रही थी।

रोली ने पूछा आज अजीत की पंसद का कुछ बनाती हूँ। मम्मी जी से पूछ कर आती हूँ। जैसे ही कहकर रोली घुमी झरना ने तुरंत कहा पनीर और दम आलू पंसद है।

अरे वाह झरना, तुम्हें तो ज्यादा दिन नहीं हुये आए तुम्हें पता है।

नहीं नहीं झरना घबरा गयी। वो कल कह रहे थे अपनी मम्मी से। रोली ने बात दोहराई। अपनी मम्मी से क्या मतलब तुम क्या कहती हो मम्मी जी को ...वो वो ..झरना घबरायी आवाज में बोलने वाली थी कि अजीत की मम्मी आ गयी मासी कहती है, जा रसोई देख झरना ...कितनी बार कहा है काम का ध्यान रखा कर तेजी से बोली। झरना तेजी से चली गयी।

रोली बोली, नहीं मम्मी जी, ये तो बात ही नहीं करती, मैं ही बोलती रहती हूँ।

अरे ये लोग काम के चोर होते हैं। कम बोला करो इस से।

रोली को मम्मी जी की बात अच्छी नहीं लगी पर कुछ बोली नही। रोली ने शाम को अजीत की पंसद का खाना बनाया। सब खुश होकर खा रहे थे। अरे ये सब अजीत की पंसद है, रोली ने कहा ये सब झर....तभी झरना पर नजर गयी रोली की तो, झरना ने अपने होठों पर ऊंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया ...रोली ने बात घुमा कर कहा ये बस ऐसे ही बनाया। जब मैं घर में बनाती हूँ सब को पंसद आता है पर उसे झरना से पूछना था, मना क्यूँ किया पर हर समय अजीत की मम्मी होती।

तब रोली को लगा कि घरवाले उसके और झरना के आसपास ही होते थे। कुछ अजीब सा लग रहा था। पढ़ी-लिखी होशियार थी रोली, कुछ तो है ये सोचकर थोड़ा सबके ऊपर ध्यान देने लगी। अगले दिन सब छत पर बातें कर रहे थे।

रोली कपड़े सुखाने पहुँची, सब चुप हो गये। रोली ने पूछा- क्या हुआ, आप सब चुप क्यूँ हो गये ?..कुछ नहीं बस ऐसे ही ..अजीत की मम्मी ने कहा।

ऐसे कैसे, नहीं बताइये मुझे, मैं भी आपके घर की हूँ।

अजीत ने कहा- कुछ नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस हमें कुछ रूपये की जरूरत अचानक आ पड़ी।

अच्छा किस लिये रोली ने पूछा। अजीत की मम्मी ने कहा- कुछ लोन था उसकी अगले हफ्ते आखिरी तारीख है। देने वाले थे पर शादी में लग गये कुछ। एक महीने की बात है बस अगले महीने तो एक एफ.डी पूरी हो रही है।मिल जायेगें अभी कहीं से इंतजाम हो जाता। रोली ने कहा वो बैंक में भी तो रखवाये थे, शादी के वो ले लीजिये।

उससे ज्यादा चाहिये, अजीत के पापा ने धीरे से कहा। ओह तो मैं पापा से बात करती हूँ। आप परेशान मत होइये। अगले महीने तो आप वापस कर देगें।

हाँ हाँ बिल्कुल अजीत ने कहा- ऐसा कर सकती हो ? धन्यवाद रोली जो तुमने हमारे बारे मे सोचा..अजीत ने कहा। रोली ने कहा,''अरे अब ये मेरा घर भी है आपकी परेशानी मेरी भी परेशानी, कहकर रोली कपडे फैलाकर नीचे आ गयी।

रात को अजीत ने रोली से पूछा, ''बात कर ली घर तुमने रोली ? मम्मी-पापा शादी में गये हैं, बुआ जी के और उसके बाद चाचा ची के साथ वहाँ रहेंगे कुछ दिन। बुआ के काम में हाथ बटायेंगे। एक हफ्ता लगेगा। आयेंगे तब पूछ लूँगी, आप चिंता नहीं करो।

एक महीना होने वाला है शादी को, आपको ऑफिस कब जाना है ? अजीत चौंका- हाँ हाँ बस एक दो दिन में ही। रोली ने तीन दिन बाद पूछा, आज कम्पनी जाना था आपको। अजीत हाँ हाँ कल जाऊँगा। अगले दिन से अजीत ऑफिस जाने लगा शाम को आता।

झरना से रोली ने पूछा घर पर बात नहीं करती फोन पर, फोन देते हुये कहा लो कर लो। अजीत की मम्मी आ.गयी ...अरे इसके घर फोन कहाँ से होगा, घर की हालत भी ठीक नहीं।

झरना वहाँँ से रसोई मे चली आई। रोली भी आ गयी सब्जी काट दूँ। क्या हुआ झरना यहाँ क्यूँ आ गयी ? घर की याद आई होगी। मुझे भी बहुत आती है अपने घर की।

अजीत आ गया ऑफिस से, रोली ने चाय बनने रख दी और अजीत को पानी देने लगी, ये लीजिये पानी, अजीत को देते हुये कहा, लाइये आपका बैग रख दूँ, अजीत के बैग को पक़ कर कहा- नहीं नहीं मैं रख दूँगा। रोली अपने तुमने घर बात की रूपये की। नहीं आज करूँगी।

दूर के मामा-मामी आये।

रोली की तारीफ करने लगे, रोली ने कहा- मैं झरना को बुलाती हूँ।

नहीं, नहीं रोली की सास ने जोर से कहा- आज उसकी तबियत ठीक नहीं।

अच्छा रोली ने आश्चर्य से कहा ..मुझे पता नहीं, क्या हुआ ,देखकर आती हूँ। नहीं तुम रसोई में खाने की तैयारी करो। वो सो रही है।

शाम को जब मामा-मामी से सब बात करने में व्यस्त थे तभी रोली झरना के कमरे में गयी।

क्यूँ क्या हुआ झरना ? तुमने बताया नहीं। तुम अपना नहीं मानती मुझे।

नहीं ऐसी बात नहीं। झरना ने कहा दबी आवाज में और बोली आप जाइये मम्मी जी नहीं ओहह् माफ करना मासी जी ..उन्हें पसंद नहीं आप मुझसे बात करे। आप जाइये। अरे नहीं वो क्यूँ कुछ कहेगी। तुम्हें कोई दवाई चाहिये बताओ क्या हुआ ? रोली ने पूछा,

कुछ नहीं सिर दर्द था, आप जाइये। रोली को झरना के चेहरे का डर साफ दिख रहा था पर कुछ ज्यादा नहीं बोली और रसोई के काम में लग गयी।

अगले दिन अजीत ऑफिस नहीं गया। रोली ने पूछा तो कहा तबियत ठीक नहीं। अजीत बाहर मम्मी के पास बैठा था, रोली भी काम करके सबको खाना खिला कर कमरे में आ गयी और सफाई करने लगी। अलमारी में अजीत का बैग खुला था सोचा बंद कर दूँ। कपड़ों के ऊपर रखा बैग फिसलने लगा, संभालते हुये फाइल नीचे गिर गयी, उठाने लगी तो केवल सादे बिना लिखे पेपर थे। सब उठा कर बैग देखने लगी तो कुछ भी नहीं सिवाय खाली पेपर के।

कुछ अजीब लगा। संदेह ने जन्म लिया। शाम को मम्मी को फोन मिलाया, रुपये की बात कि रोली की मम्मी ने कहा वो रोली के पापा से बात करेगी।

रोली अजीत से बार बार ऑफिस के बारे में पूछने लगी। कैसी कम्पनी है ? अजीत ने भी बता दिया सब अच्छा माहौल है। बात खत्म हो गयी। रोली ने बताया की मम्मी पापा से बात करेगी।

अगले दिन रोली सब्जी बनाते हुये झरना से कहने लगी। आसपास से कोई नहीं आता क्या, मैं किसी पड़ोसी से नहीं मिली।

झरना ने ना में सिर हिला दिया। रोली ने कहा- बड़ी अजीब बात है, हमारे घर तो आना-जाना लगा ही रहता है।

रोली कपड़ों को अलमारी में रख कर आई तो देखा अजीत की मम्मी गुस्से में झरना को कुछ कह रही थी। रोली को देखकर चुप हो गयी।

झरना से पूछा तो रोली को कुछ नहीं बताया। झरना ने बस आँसू से भर गयी आँखे। रोली ने चुप कराया ..और बोली- झरना तुमने मन में बहुत कुछ दबाया हुआ है, मुझे नहीं बताओगी, मैं तुम्हारी बहन जैसी हूँ। जैसे ही झरना बोलने वाली थी, अजीत ने कॉफी बनाने को कहा और चला गया।

रोली ने कहा झरना जब भी मैं तुमसे बात करना चाहती हूँकोई ना कोई आ जाता है।

अगले दिन सुबह समाचार पत्र लेने के लिये रोली ने दरवाजा खोला उठा कर देखा तो सामने घर के कामवाली उनके दरवाजे पर थी ।रोली को देख कर मुस्कुरायी। आप नयी भाभी हो। रोली ने हाँ की पूछा, ''कितना लेती हो बरतन पौछे का' ? रोली ने पूछा।

उसने कहा दो हजार। अरे इतना ज्यादा रोली ने कहा। भाभी जब आपके पहले काम करती थी तब कम थे।अच्छा तुम यहाँ काम करती थी ? फिर छोड़ा क्यूँ ? इतने में दरवाजा खुला सामने वालो का और वो अंदर चली गयी।

रोली ने पूछा- मम्मी जी कामवाली क्यों हटा दी ? अजीत की मम्मी चौंक गयी। किसने कहा ?

रोली ने कहा एक कामवाली थी वो कह रही थी, अब दो हजार ले रही है। हाँ इसलिये ही तो हटाया था ...अब झरना आ गयी तो जरूरत ही नहीं। तुम मत बोला करो उससे। रोली ने मन में सोचा किसी से भी तो रिश्ता रखा नहीं।

ऐसे कभी कभी सामने वालो की कामवाली मिल जाती एक दो बात कर लेती। एक दिन वो बोली भाभी, झरना भाभी भी इधर है क्या ?

रोली मुस्कुरायी, भाभी नहीं दीदी बोलो, शादी नहीं हुई उनकी। कामवाली अजीब से रोली को देखा ..और बोली अच्छा मै चलती हुँ।

रोली हँस हँस कर झरना को बताने लगी, झरना के माथे पर पसीना, घबरा कर रसोई से चली गयी। रोली ने देखा कि सब कमरे में है, वो झरना के कमरे में गयी, झरना सिमटी हुई बैठी थी, सुबक रही थी।

क्या हुआ बताओ ?

आज मैं तुम्हारे बारे में जान कर रहुँँगी..रोली ने हाथ पकड कर हिला दिया। बोली कही उसने सच में तो भाभी नहीं कहा तुम्हें ? तुम विधवा तो नहीं ? झरना ने अपना हाथ रोली के मुँह पर रख दिया- नहीं नहीं आप ऐसे नहीं कहो ? क्यूँ नहीं कहूँ, कुछ तो है जो छिपा रही हो ?

आप जाइये सब आते होंगे। रोली- नहीं, आज नहीं जाऊँगी। अच्छा आज रात को जब सब सो जायेगे तब रसोई में आ जाना, अभी जाइये, धक्का देते हुये रोली को बाहर किया, सामने अजीत की मम्मी आ रही थी।

रोली ने इधर उधर देखना शुरु किया जैसे कुछ ढूंढ रही हो। खाना लगा लो रोली। हाँ जी बस वही करने जा रही हूँ।

रात को रोली, झरना रसोई में आई। बोलो झरना ...रोली ने कहा। झरना- क्या बताऊँ ?

सब..! रोली ने कहा, ''मेरे माँ बाप नहीं है।'' अब मेरा कोई नहीं है। झरना ने कहा।

रोली ने कहा- क्यों तुम्हारा घर तो गांव में है, जहाँ सासू माँ रुपए भेजती हैं तुम्हारे मां बाबा के पास। झरना की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। नहीं, मेरा गांव में कोई नहीं पर यह बात आप अजीत के परिवार में किसी को मत बताना नहीं तो गजब हो जाएगा। तुम इतना डरी क्यों रहती हो, रोली ने कहा।

कुछ नहीं... बस जिंदगी ने धोखा दे दिया।

क्या बात है साफ-साफ बताओ।

यह लोग बहुत खराब है, इनकी बातों में मत आना। जो रुपए यह आपके घर वालों से मांग रहे हैं, वह भी मत देना। रोली आश्चर्यचकित हो गई... झरना यह क्या कह रही हो तुम जिनके घर रहती हो उन्हीं के खिलाफ मुझे भड़का रही हो।

नहीं, आज आपके बहुत कहने पर ...आपको अपना मान कर मैं यह सब कहने की हिम्मत कर रही हूं। रोली ने कहा।

अच्छा जल्दी बताओ, कोई आ जायेगा और सुबह जल्दी उठना है अजीत को ऑफिस जाना होता है ऑफिस...! झरना ने जोर लगाकर कहा। क्यों ! तुम्हें नहीं पता सुबह सुबह रोज ऑफिस जाते हैं। नहीं.... वह ऑफिस नहीं जाते, क्या क्या... मतलब !

रोली ने अच्छी तरह से पूछा साफ-साफ बताओ मुझे घबराहट हो रही है।

झरना रोने लगी ...मुझे माफ कर दो रोली आज जो मैं आपको बताने जा रही हूं , वह आपको बहुत बड़ा धक्का देगा ...अजीत कोई भी कंपनी में काम नहीं करते ..अजीत केवल ग्रेजुएशन पास है। यह लोग पहले किरतपुर गांव में रहते थे। उसके पास ही हमारा गांव था। मेरे मां बाबा के पास जमीन थी। इन लोगों की नजर मेरी मां बाबा की जमीन पर थी। इन लोगों ने अजीत का रिश्ता आपकी तरह एक बड़ी कंपनी में बताकर किया था, मैं.. मैं ..अजीत की पहली पत्नी हूं ।रोली को तो जैसे चक्कर आ गया था ...

मैं सोच भी नहीं सकती क्या कह रही हो ? सोचा भी कैसे ! मैं यकीन कर लूंगी।

रोली, आप सुन लो यकिन करो या नहीं ये आप तय कर लेना। मेरी शादी होने के बाद तक ये मुझे रानी की तरह रखते थे पर ये ही बहाने जो आप से किये और आप मान गयी मम्मी-पापा से लेने को, ऐसे ही मैं मान गयी। जमीन दिलाने को। मेरे माँ-बाबा का वो ही सहारा था। दो टुकड़े थे जमीन के। जमीन के कागज लेते ही ..इन्होंने वापस नहीं किये और मुझ से नौकरानी की तरह पेश आने लगे।

माँ को बीमारी ने, बाबा को मेरी चिन्ता ने भगवान के पास बुला लिया। रिश्तेदारों ने साथ नहीं दिया। मैंने भागने की कोशिश की तो पकड़ी गयी। दो साल हुये शादी को, तब से रोज मार खा रही हूँ, अजीत और उनकी माँ खूब मारते हैं। पेट भर खाना भी आपके आने पर मिला। एक टुकडा बेच कर जो रूपये मिले.. शहर आ गये इनकी योजना दुसरी थी, मुझे भी ले आये। मैं कुछ पुलिस या रिश्तेदारों को इनके खिलाफ ना कर लूँ। शहर आ के आप से दुसरी शादी की और आप के पापा के रूपये जब तक मिलेगें तब तक ही आप को पूछ रहे हैं। इतने समय में समझ गयी हुँ इनको।

रोली रुआसी सी हो गयी थी और रोली वो अजीत नहीं उनका नाम जीवन है। आपके पापा जिस कम्पनी में गये थे उस मे अजीत ऊँचे पद पर कोई था और वो इनके मुमेरे भाई का नाम है जिन्होंने रिश्ता बताया था वो (आपके पापा को कम्पनी दिखाने लाये थे) वो जीवन के पापा के खास दोस्त एक नम्बर के धोखेबाज। उसने सब झूठ दिखाया कि अजीत छुट्टी पर है और मीटींग में है। सब झूठ ....ये सब पहले से प्लान था कि रोली के पापा अगर कुछ पुछे तो अंकल ही कम्पनी के बारे मे दिखायेगें। ये पता था कि जो बीच मे रहता है दोनों के परिवार में ...उससे ही जाँच पड़ताल होती है।

रोली का सिर घूमने लगा .....बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी। झरना संभालने लगी, हाथ से रोकने का इशारा किया और गिरने से बचने के लिये दरवाजे का सहारा लिया। मैंने कह दिया सब... मैं चलती हूँ, अब आप भी जाइये, झरना चली गयी।

रोली को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कमरे मे आ गयी। अजीत जाग गया ..कहाँ गयी थी ?...कुछ नहीं बारिश ना आ जाये कपड़े तार से लेने गयी थी ...सो जाओ- अजीत ने कहा ..

पर रोली के मन में युद्ध चल रहा था, यकीन कर पाना मुश्किल। किस पर यकीन करूँ, झरना जो डरी सहमी, आज सच्चाई झलक रही थी या अजीत पर।

पर कुछ नहीं समझ आ रहा था, उठकर सारी अलमारी ढूंढने लगी कुछ नहीं मिला।

अगले दिन अजीत के ऑफिस जाने पर, काम जल्दी कर, झरना से बोलने का भी मन नहीं था, पता नहीं क्यूँ, झूठी तो नहीं।

सारा कमरा ढूँढने लगी। अजीत की मम्मी आ गयी- क्या कुछ ढुूंढ रही हो रोली ?

जी मम्मी जी अपनी शादी की साड़ियाँँ पैक करके रख रही हूँ, महंगी है, खराब ना हो जाये, बहाना सोच के रखा था।

ये तो पक्का लग रहा था मार्क शीटस तो अपने साथ ही रखी होंगी, मम्मी-पापा के पास तो मुश्किल है फिर बाद में मम्मी जी के कमरे मे ढूंढुगी सोचा था।..यहाँँ बस बैड का बाक्स ही देखना बचा था, दरवाजा ऊपर से बंद कर दिया, कहकर साड़ी पहन रही हूँ। बैड के अंदर कपड़ों के अंदर छिपा एक पैकेट था, सब मिल गया पर जीवन के नाम से थे सब पेपर ...कोई डिग्री नहीं थी उसमे, ना कोई कम्पनी के कागज।उफफफफ्

सिर पकड़ लिया।

क्या करूँ...? रोली ने मन में सोचा।

ओह..झरना का मुझसे ना बातें करने देना, आस-पड़ोस का ना आना-जाना, मेरे गहने अपने लॉकर में रखना ,रुपये पापा से माँगना।

उफफफ ...इतना बड़ा धोखा।

तो झरना कह रही थी अजीत या जीवन कम्पनी नहीं जाते और काम वाली लगायी थी दूसरी शादी के लिये रौब दिखाना था। वो घुल-मिल गयी थी काफी घर से, जब कामवाली को मेरे बहू होने की भनक लगी तब उसे निकाल दिया। ओह तभी बोलने नहीं देते थे। झरना ने बताया था मुझे ऐसे ही मुझे दिखाने के लिये दोस्तों की दुकान पर जा बैठते। उसने तीनों की बातें चाय देने गयी सुन ली थी, नाटक रूपये रोली से लेने तक ही करना है।

ओहहहहह रोली को बहुत गुस्सा आ रहा था ...झरना के पास पहुँची और सब बताया। झरना तुम अपने पति को किसी और के साथ रोज देखती हो, क्या बीतती होगी तुम पर....रोली ने झरना का हाथ पकड़ कर कहा ...झरना।

नहीं रोली मेरे माँ-बाबा की मृत्यु के बाद कोई लगाव नहीं रहा पर मेरा कोई नहीं, घर से बाहर भी भेड़िये रूपी इंसान है, कहाँ जाती ? एक ,दो बार भागने की कोशिश भी की शायद बाहर यहाँ से भी बुरी जिंदगी हो। डर लगने लगा। नहीं झरना अब मैं तुम्हारे साथ हुँ ...इनको सबक सिखायेंगे। अजीत के पापा की आवाज आई, एक कप चाय मिलेगी ?

जी... लायी रोली ने आवाज दी।

उसने सब मार्क शीट अपने पास रख ली और पापा को फोन कर दिया। सब सुनते ही पापा-मम्मी के पैरो तले जमीन खिसक गयी। गुस्से से भरे ससुराल के शहर पहुँचे। वहाँ पुलिस स्टेशन से पुलिस को सब बताया रोली के ससुराल पहुँच गये। ससुराल वालों को भनक तक नहीं थी। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गयी। माफी माँगने लगे बहुत डाटने पर उस दुकान से अजीत या जीवन को पकड़ा। बहुत सुनाया गुस्से में पर अब पछताये क्या होता .....

रोली को सबने शाबासी दी, हिम्मत दिखाने की...झरना के पास रोली की मम्मी आई। भगवान ने लालची भेड़ियों से समय पर बचाया।

आज से झरना, रोली की तरह मेरी बेटी है।

सुंदर चेहरे के पीछे का नकाब हट चुका था। कितने लोग अपने गंदे विचारों को नकाब के पीछे छिपाने का प्रयास करते हैं पर हिम्मत, समझदारी नकाब को उतार फेंकती है....

दोस्तो, ये घटना एक जानकार की है, इस तरह की घटना देखने को मिलती है और ये चालाक लोग ये सब योजना बना कर करते हैं। वो ही दिखाते हैं जो सामने वाला देखना चाहता है...पर चश्मा उनका होता है जो हम पहनते हैं। आजकल जल्दी भरोसा करना बेवकुफी कहलाती है।

फुक फुक कर कदम उठाये ।

झरना के साथ जो हुआ, वो हिम्मत नहीं कर पायी परिस्तिथियों से विवश थी पर हमें हार नहीं माननी चाहिये कोशिश करने से सफलता जरूर मिलती है ....

रोली को पता था कि परिवार वाले उसके साथ होंगे और उसने हिम्मत भी दिखायी। कुछ लोग क्या कहेंगे, समाज में मान-अपमान का गणित करते रहते हैं और सारी जिंदगी दुख से समझौता कर लेते हैं...उठो---आगे बढ़ो----मंजिल नजर आयेगी।


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