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Modern Meera

Others

5.0  

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बेगानी और अनजानी हंसी

बेगानी और अनजानी हंसी

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मीरा होटल की लॉबी में वापस आती है। होटल रूम काटने को दौड़ रहा है और जैसे जैसे रात बढ़ रही थी, सफ़ेद चादरों की तहें मानो उसका दम घोटने को कसी जा रही थी नयी नयी गांठों में। 

वैसे मीरा को बिज़नेस ट्रिप से कोई परेशानी नहीं। ये तो अच्छा बहाना होता है, अंजानी जगहों और अनजान लोगो के साथ यु ही सफर करने का। पर ये अकेलापन और अंदर तक का खालीपन हर सूने लम्हे में जैसे अपने नाखून निकाल कर ऐसे सामने आ जाता है जैसे अभी के अभी नोच खायेगा उसको। उसकी खाल उतार कर , चूस जायेगा उसकी हाड़ों के अंदर की मज्जा तक को। नहीं बर्दाश्त होता और लगभग भागते हुए वो कमरे से निकल कर एलीवेटर के बटन तक आती है। लिफ्ट में कोई और भी होता है। खुद को सम्हाल लेती है वो तुरंत ही, इसमें तो महारत है मीरा को। चेहरों पे चेहरे, दुनिया के उम्मीदों के हिसाब से अनगिनत बार पहने हैं उसने। अब तो कोशिश भी नहीं करनी पड़ती। 


लॉबी में हल्का सा म्यूजिक बज रहा है है, एक शुकुन सा होता है इन जाने पहचाने और बिना नाम की धुनों में। 


कही कोई दीखता नहीं, वो घूम कर लॉबी के दाहिने हिस्से में जाती है जहाँ बार है। बार में बस एक अटेंडेंट ग्लासों को आडी तिरछी सजा कर रख रही है। एक इंसान तो दिखा। बार स्टूल खिंच कर मीरा उसके सामने बैठ जाती है। वो अकेली है ही इस समय यहाँ। 


 "हेलो , वुड यू लाइक एनीथिंग टू ड्रिंक? "


मीरा मुस्करा कर मना करती है। उन नाखूनों के साये अभी तक जेहन से गए नहीं। अटेंडेंट वापस अपने काम में लग जाती है। फिर अचानक मीरा को एहसास होता है , अब इतनी रात बार में बिना कुछ आर्डर किये बैठना भी तो ठीक नहीं।  


"ऑय विल हैव ए रेड वाइन।"


"व्हाट काइंड ? "


"व्हाट्वेर यू लाइक।" मीरा मुस्करा कर कहती है। 


इतने देर में पीछे से कोई और आकर बैठ जाता है, मीरा के पीछे पड़ी बार स्टूल पर। मीरा नहीं पलटती। पर आहट से जान जाती है की कोई आदमी है। न जाने कैसे पता चल जाता है ये सब हर औरत को, अपने आप ही थोड़ी सी सीधी होकर , सहम कर बैठ जाती है मीरा। 


"ऑय विल टेक ए ब्लू मून। मैंगो व्हीट , इफ यू हैव। "


अटेंडेंट मीरा की वाइन का गिलास नैपकिन पर सहेज कर उसके सामने रखती है , और "स्योर " कहकर बियर का ग्लास लेने बढ़ती है। बोली से इंडियन लग रहा है। मीरा अब सीधी बैठी है और अनजान बस करीब २ फ़ीट दूर। पूरे लॉबी में बस ये तीन लोग हैं। रात के दस कबके बज गए। 


"हियर फॉर वर्क?"


"यस।" मीरा प्रत्युत्तर में कहती तो है, पर कोई इच्छा नहीं है अभी उसे किसी से बात करने की। २-३ सिप में ही वाइन की गिलास खाली हो जाती है। पर अभी भी शायद उसमे हिम्मत नहीं है की होटल के कमरे में जाकर निढाल हो पाए। अटेंडेंट को एक और गिलास लाने को इशारा करती है। पर अब कम से कम इससे बात तो कर ही सकती हूँ। 


"अक्षर , व्हाट्स योर नेम ?"कहकर हाथ बढ़ाता है। 


"मीरा।" वो भी अनायास ही हाथ बढ़ा देती है। 


"यहाँ पहली बार आयी हो?"


"हाँ।"


"मैं भी।"


कुछ देर दोनों अपने अपने ऑफिस की कुछ बातें करते हैं और फिर एक चुप्पी घिर आती है। २ वाइन और २ बियर के गिलास आस पास बैठे हैं, जिनमे अभी कुछ घूँट बाकी है। 


"देर हो गयी है, नहीं ?"


मीरा नहीं जानती , ये कैसा सवाल है। और एक अनजान दूसरे अनजान को इसका क्या जवाब दे। 

"कहाँ देर हुयी है ?" 


"रात में?" 


"वो कैसे?"


अक्षर की आँखों में एक चमक आ जाती है , वो मीरा को तरफ मुड़कर कुछ झुककर बैठ जाता है। 

मीरा बड़ी ढीठ हो कर फिर पूछती है, "वो कैसे?"


"दुनिया के हिसाब से।। देर जैसे ही है न। सूरज के डूबने और उगने के बीच का समय।"


"समय तो अपने हिसाब से चल रहा होता है, देर या सबेर कौन तय करता है भला ?" 


"फेयर पॉइन्ट।" 


"नहीं , ऐसे कैसे। अब सी आई ओ हो अपने कंपनी के। इससे थोड़ा ज्यादा टेक्निकल आंसर तो देना ही पड़ेगा।"


खुलकर हँसता है अक्षर, और मीरा बस देखती है उसकी बच्चों जैसी हंसी। एक पल सोचती भी है, उंगलियों से छुकर देखे उसके बाल।शायद होंठ भी जो ऐसे छलक के हँसे जा रहे है। शायद वाइन का असर है। अपने स्कार्फ़ को कसकर बांधती है फिर से। अक्षर और मीरा की आँखों में कुछ गुज़र सा जाता है इस लम्हे में। ग्लास अब खाली हैं। 


"प्लीज पुट दोस ऑन रूम।"दोनों एकसाथ ही कहते हैं। 


नजरें फिर मिलती हैं, और दो अंजान लोगो के ठहाको से खाली लॉबी भी पलभर के लिए खिलखिला उठती है। दोनों साथ ही उठकर लिफ्ट की ओर बढ़ते हैं। लिफ्ट में जाते हैं। मीरा दिवार से टिक कर कुछ गुम सी खड़ी है।उसका फ्लोर आ जाता है।


"गुड नाईट।" कहकर मीरा बाहर आती है।लिफ्ट का दरवाजा बंद हो जाता है और अक्षर भी उसके साथ। मीरा पलभर वहीं थम जाती है। उसे याद आ जाता है, अक्षर उसके साथ ही था जब उसने लिफ्ट ली थी। भागती हुयी घुसी थी, और फिर सम्हाला था खुद को। उसने गुड नाईट का जवाब दिया था कुछ। ।।सोचते सोचते रूम का दरवाजा खोलती है और सीधी बेड पर गिर जाती है। आंखे बंद करती है और कानो में अक्षर की आवाज़ वापस आ जाती है।


"नेवर टू लेट।"


फिर से जोर से हंसती है और अंजान सपनो से इस रात को भर लेने, मुट्ठी में सफ़ेद चादर को भरकर अपने गले तक खींच लेती है। कई बार जाने पहचाने डर से कहीं ज्यादा गहरी , अपनी और खुशनुमा होती है परायी , बेगानी और अनजानी हंसी। 


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