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छलावा भाग 9

छलावा भाग 9

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छलावा      

भाग  9

               छलावा पुलिस विभाग के लिए इतना बड़ा सरदर्द बन गया था कि लगभग पूरा महकमा सब काम काज छोड़ कर छलावे को ही तलाश कर रहा था। मोहिते अपने ऑफिस में बैठा आगे की रणनीति बना रहा था उसके दिमाग में काफी उथल-पुथल चल रही थी। शाम गहरा गई थी और वह घर जाने को तैयार था। अभी-अभी बख़्शी यहाँ से निकला था तभी कमिश्नर साहब की कार गेट से निकली। मोहिते ने झपट कर अपनी बुलेट की चाबी उठाई और बाहर निकला। थोड़ी दूर जाकर उसने अपनी बुलेट एक कोने में पार्क कर दी अपनी पुलिस ड्रेस के ऊपर एक रेनकोट पहन लिया उसके कॉलर खड़े कर लिए और एक चिन गार्ड वाला हेलमेट पहन लिया जिससे उसका चेहरा देख पाना असंभव हो गया फिर उसने वहीं बगल में खड़ी एक एक्टिवा उठाई जो उसकी पत्नी की थी और जिसे उसने यहाँ इसी काम के लिए खड़ा रख छोड़ा था, और एक दिशा को चल दिया। रास्ते में कमिश्नर सुबोध कुमार का बंगला आया उसकी बगल में एक पेड़ के नीचे उसने एक्टिवा खड़ी कर दी पर उसपर से उतरे बिना इंतजार करता रहा। समुद्र की ओर से आ रही ठंडी हवा उसे भली लग रही थी। यह वर्ली सीफेस का शानदार इलाका था जहाँ मुम्बई के उच्चवर्ग के लोगों के बंगले थे। कई फ़िल्मी हस्तियाँ भी यहीं रहती थीं। बख़्शी भी यहीं एक अपार्टमेंट में रहता था। मोहिते एंटाप हिल की पुलिस लाइन में एक दो कमरे के ऐसे मकान में रहता था जिसकी छत चूती रहती थी और दीवारों पर पेंट उखड़ा हुआ था। उसने एक ठंडी उसाँस भरी। जान की बाजी लगाकर चौबीस घंटे ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मियों की निजी जिंदगी काफी कष्ट भरी थी। 

          रात हो चुकी थी। अचानक एक साया मोहिते के पास आ खड़ा हुआ। मोहिते ने ध्यान से उसे देखा और केवल सहमति में सर हिला दिया। आँखों-आँखों में कुछ इशारे हुए और वह साया सड़क की दूसरी ओर चला गया और एक पेड़ के पीछे छुप कर प्रतीक्षा करने लगा। 

          थोड़ी देर बाद बंगले की बगल से एक और साया निकला और एक दिशा को तेजी से चल दिया और थोड़ी दूर पर पार्क एक इको स्पोर्ट कार में बैठ कर रवाना हो गया। सामने पेड़ के पीछे छिपा साया दौड़कर मोहिते के पास आया और उसकी एक्टिवा लेकर इको स्पोर्ट के पीछे लग गया। इधर मोहिते पैदल ही विपरीत दिशा की ओर भागा। उसे बहुत जल्दी कहीं की तलाशी लेनी थी। थोड़ी ही देर में मोहिते एक बड़े से कमरे में घुसा हुआ चीजें उलट-पलट रहा था। कई दराजें खोलने के बाद एक बड़ी सी दराज में उसे अपनी मनवांछित चीज मिल गई। उसने फ़ौरन अपनी तलाश बंद कर दी और बाहर निकल आया। फिर उसने मोबाइल पर कॉल करके सिर्फ इतना कहा, काम हो गया सर! और मोबाइल ऑफ कर दिया। 

           अगले दिन पुलिस स्टेशन में काफी गहमा गहमी दिखाई पड़ रही थी। मुख्यमंत्री जी वहाँ के दौरे पर आने वाले थे तो हर चीज दुरुस्त की जा रही थी। हर चीज को चमकाया जा रहा था। बाद में मुख्यमंत्री जी आए और उन्होंने कमिश्नर से मुलाक़ात की और छलावा के बारे में भी पूछा। कमिश्नर ने जल्द से जल्द उसके पकड़े जाने की संभावना जताई तो मुख्यमंत्री जी ने जल्दी-जल्दी कुछ कहा फिर कुछ निर्देश देकर विदा हो गए। 

          दोपहर बाद पुलिस स्टेशन अलसाया सा लग रहा था।  मुख्यमंत्री के दौरे की तनातनी अब ख़त्म हो गई थी। इतने में बख़्शी अपनी सदाबहार मुस्कुराहट लिए वहाँ हाजिर हुआ। मोहिते ने उसका अभिवादन किया फिर तुरंत बगल में पड़ी प्लास्टिक की एक बड़ी सी नीली थैली उठाई और बख़्शी को साथ लेकर कमिश्नर के कक्ष में दाखिल हुआ। कमिश्नर सुबोधकुमार एक फ़ाइल पर नजरें गड़ाये हुए बैठे थे। मोहिते ने उन्हें सैल्यूट किया और बैठने का संकेत पाकर बैठ गया। बख़्शी भी औपचारिक अभिवादन के बाद बैठ गया। 

कहो मोहिते! क्या बात है? कमिश्नर ने पूछा।

सर! हम छलावा को पकड़ने के बिलकुल करीब पहुँच चुके हैं। बस आपका सहयोग चाहिए,  मोहिते कमिश्नर की आँखों में झांकता हुआ बोला। 

हाँ हाँ क्यों नहीं! बोलो! कमिश्नर ने कहा। 

जवाब में मोहिते ने नीली थैली में हाथ डालकर एक चमड़े का काला बैग निकाला और कमिश्नर की टेबल पर रखते हुए पूछा, क्या आप इसे पहचानते हैं सर?

वातावरण में ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा पसर गया

कहानी अभी जारी है ......

क्या था उस बैग में 

क्या हुई मोहिते के सवाल की प्रतिक्रिया

पढ़िए भाग 10 


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