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Meeta Joshi

Romance

4.3  

Meeta Joshi

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आईना

आईना

5 mins
443


नए शहर में, अनजान लोगों के बीच अभिनव को नौकरी के सिलसिले में घर से दूर आना पड़ा।छोटी जगह से आया अभि शहर के कायदे-कानूनों से दूर से ही वाकिब था।पिताजी ने अपने मित्र के सामने वाले फ्लैट में उसके रहने की व्यवस्था कर दी।अनु से उसकी पहली मुलाकात तब हुई जब वह मकान की चाबी लेने उनके घर पहुँचा।

दरवाजा खुला था।अनु कानों में ईयरफोन लगाए खिड़की में बैठी मौसम का आनंद ले रही थी।बहुत आवाज देने के बाद जब अभि को कोई उत्तर नहीं मिला और वहाँ बैठी अनु ने भी कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की,तो उसे मजबूरन अंदर आना पड़ा।उसे यूंँ बिना आवाज लगाए,अंदर आता देख, अनु ने, ऊट-पटांग बोलना शुरु कर दिया।बात इतनी बढ़ गई कि पिताजी तक बहस की आवाज़ पहुँची और उन्होंने बाहर आ बात संभाली।अभिनव का परिचय जान बिटिया के अभद्र व्यवहार पर उससे माफी माँगी।

बिटिया से बोले, "कबसे बिना समझे बोले जा रही है।अपना ईयरफोन तो हटा,तभी तो उसकी आवाज सुन पाएगी।" "अपनी गलती पर शर्मिंदा हुई अनु तुनक कर अंदर चल दी। पर जाने से पहले,पहली ही मुलाकात में अभिनव की आंँखों में अपनी परछाई छोड़कर।

उस घर के अलावा अभि का नए शहर में अभी कोई परिचित नहीं था।हर छोटी-बड़ी चीज़ के लिए वो उन पर निर्भर था इसलिए उसका, उनके घर आना-जाना लगा रहता।

वह मन ही मन अनु को पसंद करने लगा।जब भी उनके घर आता उसको प्रभावित करने की भरपूर कोशिश करता।कहते है ना पहली नज़र का प्यार एक अमिट छाप छोड़ जाता है बस वही अभि के साथ हुआ।अनु शहर में रहने वाली एक आधुनिक विचारों वाली समझदार लड़की थी।हालांकि अभि के भोलेपन से कहीं ना कहीं अनु भी प्रभावित थी पर सहेलियों के बीच उसकी मजाक बनाती।

कला प्रेमी अनु हिंदी साहित्य की छात्रा थी उसका इंटर कॉलेज -कॉन्पिटिशन में ग्रुप-डिस्कशन के लिए सलेक्शन हुआ,जिसमें 'प्रेम' शब्द को अभिव्यक्त करना था।चाय पर आए अभि को पिताजी ने यह खबर सुनाई।अनु को बधाई देते हुए अभि ने उसके आगे मदद का प्रस्ताव रखा। अनु की नज़र में उसकी छवि एक अल्हड़, भोले-भाले देहाती लड़के की थी।


अनु ने कहा, "आप क्या जानते हैं प्रेम के विषय में।"अभि मुस्कुरा कर बोला,"ज्यादा नहीं पर मेरी दृष्टि में प्रेम तब तक अधूरा है, जब तक उसकी गहराई को पूर्ण करने वाला, उसमें अपने प्यार के रंग भरने वाला कोई साथी ना हो। प्रेम तो एक भाव है जिसे व्यक्त करना बहुत कठिन है और उसे परिभाषित करना तो असंभव ही है।प्रेम वह भाव है जिसे अभिव्यक्ति नहीं किया जा सकता।जो दिल से महसूस हो वो प्रेम है। "


अनु हंँसी और मजाक बनाते हुए बोली, "मिस्टर, प्रेम अपने आप में पूर्ण है।जो किसी से भी किया जाए तो पूर्णता के साथ किया जाता है।किसी दूसरे के मन को जाने बिना भी आप पूर्णतया उससे प्रेम कर सकते हो।उसमें किसी के साथ की जरूरत नहीं।"...बहुत देर तक दोनों का डिस्कशन चलता रहा।अनु ,अभि की बातों से अंत तक असहमत दिखाई दी !


अब अभि को गाँव से आए काफी समय हो गया था।शहर भी अंजान न रहा।उसकी इधर-उधर दोस्ती भी हो गई थी।उसकी आर्ट में रुचि थी। एक दिन उसने अनु को एक आर्ट-एग्जिबिशन में आने का का निमंत्रण दिया,यह कहकर की उस प्रदर्शनी का आधार प्रेम है। हो सकता है अपने वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए यहाँ से उसे कोई सहायता मिल जाए।अभि को मना करने के बाद भी अनु सहेलियों के साथ एग्जीबिशन में पहुंँच ही गई।वहांँ कलाकारों ने प्रेम की अभिव्यक्ति के अनेकों रंग कैनवास पर उकेरे हुए थे।एक पेंटिंग ऐसी थी जो सभी के आकर्षण का केंद्र थी।उसने वहांँ जा उसे देखा तो वह उसमें निहित संदेश को समझ नहीं पाई।अच्छी-अच्छी पेंटिंग्स के बीच में ये खाली सा कैनवास!कुछ अलग ही लग रहा था। वह कलाकार के मैसेज को जानना चाहती थी। उसने समझने की बहुत कोशश की, आखिरकार उसने वहांँ गाईड कर रहे एक व्यक्ति को बुला उसके विषय में जानना चाहा।उस व्यक्ति ने कहा, "मैम,पहले आप बताइए ,आप इस पेंटिंग को देखकर क्या सोचती हैं?इस सुंदर पेपर में कलाकार को जो सही लगा उसने किया पर कलाकार की सोच के अतिरिक्त आपके हिसाब से क्या यह पूरी है?और नहीं तो इसमें, क्या होना चाहिए।"

अनु ने उसका बहुत गहराई से निरीक्षण किया और अपनी कल्पना के रंग उसमें भरने शुरू किए , साथ खड़ी मित्र ने अपनी और वहांँ मौजूद हर एक शख्स ने अपनी-अपनी कल्पना के अनुसार उस खाली केनवास में रंग भरने शुरू कर दिए। ....

गाईड ने हंसते हुए कहा, "मैम, कलाकार भी यही मैसेज देना चाहता है कि प्रेम किसी को पाने में है।किसी के साथ में है। अपने अंदर, अपने चाहने वाले के रंगों को जगह देने में है। प्रेम किसी दूसरे के रंग में, अपने रंगों को, शामिल कर प्रफुल्लित होता है। पूर्णतया किसी का हो जाना ही प्रेम नहीं है, किसी दूसरे के रंगों में रंग जाना भी प्रेम है। प्रेम तो एक आईने की तरह है जिसमें डूबने के बाद इंसान को सिर्फ अपना ही अक्स दिखाई देता है बशर्तें की आईने में जगह खाली हो"गाईड के यह वाक्य सुन, अनु को किसी की याद आ गई।

उसकी उस कलाकार से मिलने की उत्सुकता और बढ़ गई। जिसने उसे प्रेम का वास्तविक अर्थ समझा उसकी परिभाषा को पूर्ण किया था।प्रेम का वास्तविक अर्थ वहीं है जहाँ प्रेम देनेवाला दिल हो तो साथ ही उस प्रेम को महसूस करने वाला दिल भी हो। ....गाईड ने उस कलाकार के विषय में बताया, "वो सामने कमरा है ना!सर वहीं मिलेंगे।"

अनु तेज कदमों से उस कमरे की तरफ चल दी क्योंकि कलाकार के विचार सुन उसकी जो छवि उसके मन में बन रही थी वो उसे पुख्ता करना चाहती थी, देखा तो कमरे में अभि खड़ा मुस्कुरा रहा था। बोला,"मुझे विश्वास था तुम जरूर आओगी और यहाँ आ मेरे विचारों से सहमत भी ही जाओगी। अब तो मानती हो ना प्रेम एकतरफा नहीं होता, उसमें दो जनों का समर्पण जरूरी है।जैसे किसी अक्स के पड़ते ही आईना अपना वजूद खत्म कर उस इंसान को सिर्फ और सिर्फ उसी की मौजूदगी का एहसास करवाता है वही प्रेम है।"

प्रेम ही प्रेम को खींच पाता है यह सत्य है।आज अनु के मन में भी सहमति के भाव थे।



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