टॉफी
टॉफी
ज्यओत्सना का उसके मनचाहे कॉलेज में दाखिला हो गया। खबर मिलते ही वह खुशी से उछल कर अपनी मम्मी के गले लग कर बोली।
"मम्मी मैं बहुत खुश हूँ। इस कॉलेज में एडमिशन मिलना बड़ी बात है।"
उसकी मम्मी ने कहा।
"तुमने इतनी मेहनत की थी तो अच्छा कॉलेज मिलना ही था।"
"मम्मी मैं कॉलेज के पहले दिन को लेकर बहुत उत्साहित हूँ।"
ज्योत्स्ना की बात सुनकर उसकी मम्मी हंस दीं।
"तुम्हें अपना स्कूल का पहला दिन याद है ?"
ज्योत्स्ना ने याद करने की कोशिश करते हुए कहा।
"थोड़ा थोड़ा याद है। पहले तो मैं बहुत खुश थी। पर जब पहले दिन स्कूल जाना था तब मैं रोने लगी थी।"
"हाँ मैंने और तुम्हारे पापा ने कितनी मुश्किल से तुम्हें स्कूल जाने के लिए तैयार किया था।"
ज्योत्स्ना के दिमाग में और भी बहुत सी बातें घूमने लगीं। वह अपने छोटे रूप को देखने लगी। उसने नई यूनीफॉर्म पहनी थी। हाथ में सुंदर सी वॉटर बॉटल थी। कंधे पर छोटा सा बैग था। वह पापा मम्मी के साथ स्कूल गेट के बाहर खड़ी थी। पर अंदर जाने को तैयार नहीं थी।
पापा उसे समझा रहे थे कि स्कूल में उसे बहुत मज़ा आएगा। अंदर उसके जैसे और भी बच्चे होंगे। उनके साथ दोस्ती करना। उनके साथ खेलना। अंदर मैम होंगी। अच्छी अच्छी बातें सिखाएंगी। टॉफी देंगी।
बहुत समझाने पर वह अंदर गई। कुछ ही देर में बच्चों के बीच रम गई। कई बच्चों से उसकी दोस्ती हो गई। मैम भी उसे बहुत अच्छी लगीं।
छुट्टी होने पर पापा मम्मी उसको लेने पहुँचे। जब वह चलने लगी तो टीचर ने पूँछा।
"कैसा लगा स्कूल में ?"
ज्योत्स्ना ने कुछ सोंच कर कहा।
"पापा ने कहा था कि मैम टॉफी देंगी। आपने तो नहीं दी।"
उसकी बात सुनकर मम्मी पापा और टीचर तीनों हंस दिए। टीचर ने कहा।
"सॉरी मैं तो भूल गई। अभी देती हूँ।"
कह कर टीचर अंदर गईं। कुछ देर में कुछ टॉफियां लाकर उसकी छोटी सी मुठ्ठी भर दी।