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Nikita Vishnoi

Tragedy

5.0  

Nikita Vishnoi

Tragedy

खामियाजा

खामियाजा

4 mins
338


आज के भौतिक परिवेश में मनमानी की जैसे होड़ सी लगी है अब सतीश को ही देखलो कितनी मनमानी करने लगा है। लगता ही नहीं की ये वो भोला सा, अपनी टिमटिमाती आँखों से देखने वाला लड़का इतना ज़िद्दी और अड़ियल बन जायेगा, गुस्सेल और मनमौजी, कोई कुछ कहदे तो उल्टा लड़ने को दौड़ने लगता ।

ये उम्र और अत्याधुनिक परिवेश का ही परिणाम है जो दिन प्रतिदिन अंकुरित होकर अपनी वानस्पतिक वृद्धि करने में लगा था

हाय !अभी उम्र ही कितनी है इसकी अभी से इतना चिड़चिड़ा और गुस्सेल क्यूं है दादी ने कुछ सोचते हुए बोलामां ने चिंतित स्वर में कहा सुबह से भारी भारी किताबो को ढोये स्कूल को जाता है कमर भी झुक गयी है इसकी, फिर दिन भर स्कूल में रहता है। बताता है कि, एक नए शिक्षक स्कूल में अंग्रेजी विषय को पढ़ाने आए है जिसे अंग्रेजी नहीं आती उसके साथ दुर्व्यवहार से पेश आते हैं।

(सोचनीय बात :-बच्चे तो कितने कोमल हृदय के होते है कितने डरपोक और थोड़े चंचल। जब ऐसे शिक्षक उन्हें भय दिखा कर प्रताड़ित करते है तो वो निराशा के गंभीर बीहड़ में चले जाते है जहाँ हतासा और डर के अलावा कुछ शेष नहीं रहता। कहते है बच्चे तो कल का भविष्य होते है और उन्हें मारपीट करके आक्रामक बनाना तो आ बेल मुझे मारने जैसी बात सत्यकथित करने जैसा होता है क्यूंकि शिक्षक नन्हे बच्चो के अंतर्मन में अमृत से नहीं विष की सिंचाई करते है उन्हें प्रेम, स्नेह और अपनेपन से सीखाने की बजाय कुंठित और आक्रोशित ढंग से डराकर हमेशा के लिए कमजोर बनाते है जो समाज मे अराजकता, जातिवाद और भेदभाव की स्थिति को निर्मित करता है।)

माँ ने जब सतीश से बात करनी चाही तो सतीश झंझलाकर भाग खड़ा हुआ, माँ को अपने बेटे की यह दुर्दशा कतई बर्दाश्त नहीं हो रही थी इतना आकस्मिक परिवर्तन कैसे गहरे रुदन में तब्दील हो रहा था इसका अनुमान माँ मन ही मन कर रही थी, उन्होंने शाम को गाजर का हलवा बनाया दादी शाम को बरामदे में लकड़ी की कुर्सी पर बैठ कर राम नाम की माला फेर रही थी और सतीश बगीचे में तितलियों को उड़ता देख कुछ आनंद की मुद्रा में बैठा था गाजर का हलवा बन चुका था माँ ने आवाज दी रसोई की खिड़की से. दादी भी बहुत दिन बाद मीठा खाने के लिए जैसे तड़प ही रही थी, पर दादी आपको तो नहीं मिलने वाला हलवा, ये तो मेरे लिए बना है डायबिटीज वाले लोगो को हलवा तो नहीं मिलेगा।

कुछ व्यंग्य करते हुए सतीश ने कहा,दादी ने कहा अरे बहुत हो गया ये डायबिटीज तो मुझे नहीं छोड़ने वाली अब क्या इसके लिए खाना छोड़ दू।बहुत मना भी किया फिर आखिरकार दादी को हलवा दे ही दिया, सतीश हलवा खाते हुए..अपने हृदय में पल रही नफरत को भी बाहर निकाल रहा था कह रहा था जो नए शिक्षक आये है वो हमें बहुत मारते है धूप में दिन भर खड़ा करवा के वो परेड करवाते थे और केवल दोष हमारा ये की हमे अंग्रेजी नहीं आती है स्कूल भी साधारण था हिंदी माध्यम का। इससे पूर्व शिक्षक ने लापरवाही के कारण कुछ सिखाया भी नहीं था।

अब पिछली कक्षा का अधूरा ज्ञान भला हमे कैसे ज्ञात होगा एक काँपती हुई आवाज में सतीश ने अपनी व्यथा सुना दी आज माँ बहुत खुश थी कि सतीश ने पूरी बात आज कही थी इसलिए अगले दिन सतीश की माँ ने सतीश के अन्य मित्रो के अभिभावकों को बुलाया और उपयुक्त बाते बतायी स्कूल प्रबंधन पर सवाल खड़ा किया और शिक्षक के प्रति कारवाही भी की।

अब सभी बच्चों को न्याय मिल चुका था और समाज के हिंसक भेड़िये जो आ बेल मुझे मार की क्विदन्ति को सिद्ध कर रहे थे एक गहरी चोट ने उन सबको चकित कर दिया था। अब समस्या को जब हम खुद आमंत्रित करेंगे तो वो हमारा प्रस्ताव कैसे ठुकरा देगी ? इस कहानी का असल मर्म तो यही है कि स्कूल के शिक्षक ने अपने दुर्व्यवहार से खुद समस्या को आमंत्रित किया जिसका खामियाजा उन्हें वक़्त के साथ चुकाना पड़ा।


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