आधा-अधुरा पहला प्यार
आधा-अधुरा पहला प्यार
एक लंबे अर्से के बाद उषा और निशा का मिलन हुआ...नदियों का आपस में मिलना आसान है , लेकिन अलग-अलग शहरों में ब्याही एक गाँव की बेटियों का मिलना कहाँ हो पाता है…अपने मायके से बुलावे और ससुराल से भेजे जाने के बीच तारतम्य बैठाने में समय गुजरता जाता है... मिलते ही उषा निशा के हाल-चाल पूछने के क्रम में वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है ? जानने की जिज्ञासा प्रकट करती है।
निशा बताती है कि उसका वैवाहिक जीवन बेहद सुकून भरा है... पति, सास-ससुर सभी बेहद प्यार और सम्मान देते हैं।
"और भानु?" उषा का सवाल उत्सुकतावश था।
"दिल में ख़ुदा नाम कहाँ मिटता है... संगी?" जवाब संवेदनशील विस्मयकारी मिला।
"क्या अपने पति को कभी बताया तुमने...?"
"मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई...!"
"भानु की तुलना कृष्ण से...?"
"ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसी तुलना! इंसान का अन्तर्यामी होना असंभव है...। भानु को कुछ भी कभी पता नहीं चला...।"
निशा ने जब से होश संभाला था तब से ही अपनी माँ की बातों से उसे पता चला था कि उसकी शादी , मामी के भतीजे भानु से होगी और तभी से भानु नाम उसने अपने दिल दिमाग में बैठा लिया था और भानु की प्रतीक्षा करने लगी थी, कि एक दिन वह आएगा और उसे अपनी दुल्हन बनाएगा… लेकिन भानु और निशा का मिलना कभी हुआ है...? उसके मनोभाव का पता केवल उसकी सहेली को था...