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बिन हेलमेट की लोकतंत्र

बिन हेलमेट की लोकतंत्र

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दिन का दूसरा प्रहर प्रगति पर था और मैं सड़क पर।

सहसा एक मोटरसाइकिल वाले ने मुझे काफी तेज गति से ओवरटेक किया मुझे लगा होंगे कोई रॉकस्टार टाइप लेकिन पलट कर देखा तो वो देश का अर्थव्यस्था निकला।

कुछ दूर चलने के पश्चात वो मोटरसाइकिल सवार चारों खाने चित होकर जा गिरा ठीक वैसे हीं जैसे हमारी मीडिया सरकार के सामने।

फिर कुछ लोग उस मोटर सवार के पास जाकर उसे बचाने का नाटक करने लगे और पास खड़े लोगों से कहने लगे "मैं इसे जल्द जल्द से ठीक कर दूंगा, हस्टपुष्ट बना दूंगा और तो और पहले से भी बेहतर कर दूँगा।" मगर वो होने से रहा वो बेचारा तो दर्द से कराह रहा था चोट भी खूब लगी थी अरे! वो तो लगनी हीं थी बेचारे ने हेलमेट जो नहीं पहन रखी थी।

जैसे तैसे उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया अस्पताल पहुंचते ही एकाएक एक भीड़ जमा हो गई भीड़ तो ऐसे लगी थी जैसे डॉक्टरों की टीम ने नेताजी को पहली बार सरकारी अस्पताल में देख लिया हो।

फिर तो उनसे मिलने जुलने का सिलसिला कुछ ऐसे शुरू हुआ जैसे नेताजी पूंजीपतियों से और पूंजीपति नेताजी से।

अब मैं कामना करूँगा की वो जल्दी ठीक हो जाए पहले से बेहतर ना हीं सही कमसकम पहले जैसा ही हो जाय।

इस पूरे घटनोपरांत कुछ क्षण पश्चात मेरी मुलाकात विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र जो बस किताबों में हीं अच्छी लगती है और हमें उसका धौंस दिखाने में उनसे हुई, मैंने पूछा और भई क्या हालचाल है, उसने भी खिसियाते हुए मन से बोला मत पूछिए भाई साब आजकल मुझे तो बस लंबी लंबी मूर्तियों और जय श्री राम से ही चलाया जा रहा है जो मुझे कतई पसंद नहीं पर मेरी कोई सुने तो सही। आपके यहां तो विपक्षी भी ऐसे सोए हुए हैं जैसे उनके अस्तबल का सारा घोड़ा बिक गया हो। ख़ैर छोड़िए! आप बताइए आप कैसे हैं?

मैंने कहा भैया जब आप ही ठीक नहीं हो तो हमारी हालत की क्या कहें।

फिर तेज सायरन बजाती एक कार जिसके पीछे नंबर प्लेट की जगह उनकी जाति लिखी थी हम दोनों के पास से गुजरी तभी लोकतंत्र भाई साब ने कहा पक्का ये गाड़ी आपके नेताजी के बेटे या उनके किसी परिजन की या उनका छाया इनपर होगा उन्हीं की होगी। मैंने भी कहा हां उन्हीं लोगों की होगी वरना आम जनता की जेबें इतनी बड़ी नहीं होती जिसमें प्रशासन को रख सके।

 हमारी बातों का सिलसिला जारी था ठीक वैसे हीं जैसे गोदी मीडिया की भक्ति।

बातों बातों में उन्होंने मुझसे पूछा भाई साब आपके नेताओं को सड़कों में इतनी जल्दी क्यों रहती है जबकि उनका काम अपने तोंद को सहलाने के अलावा कुछ है नहीं मैंने भी मुस्कियाते हुए कहा पता नहीं भाई साब।

मैंने उनसे कहा भई आजकल हमारे यहां शहरों के नाम बदले जा रहे हैं, ५२५४ करोड़ के प्रचार प्रसार किए जा रहे हैं, २९८९ करोड़ के मूर्ति बनाए जा रहे हैं, १४० करोड़ का योगा डे मनाया जा रहा है, ४३०० करोड़ का मेला आयोजित किया जा रहा है आप तो बहुत विकसित महसूस करते होंगे तो वो "गैंग्स ऑफ वासेपुर" के इंस्पेक्टर टाइप मुसकीया के चल दिए और कहने लगे आपका विकास दर तो उतनी हीं तेज गति से चल रहा है जैसे डॉलर रुपए के मुकाबले आगे लेकिन पीछे।

उन्होंने मुझे बताया,आपको पता है आपके यहां के नेतागण जरा सी भी झूठ नहीं बोलते बस थोड़ी सी सच बोलने की कोशिश करते हैं।

लोकतंत्र भाई साब से बातचीत करते करते काफी देर हो चुकी थी फिर उन्होंने कहा भई अब मुझे चलना है घर जाकर टीवी के माध्यम से धर्म की रक्षा भी तो करनी है और पाकिस्तान से लड़ना भी तो है।

गाहे बगाहे आज सड़क पर मुलाकात हो गई अन्यथा हमसे मिलना हो तो नेता जी के रैलियों में आया कीजिए शाम को टीवी देखा कीजिए मैं उन्हीं सब जगहों में रहता हूं, गांवों में तो बस पांच साल में एक हीं बार जाता हूं। ख़ैर आप अपना देखिए मुझे भी ढेर सारी समस्याएं हैं। ऐसा कहकर वो ठीक वैसे हीं चले गए जैसे विकास भारत से!!!

              



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