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सही रास्ता

सही रास्ता

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एकला चलो की प्रवृत्ति अक्सर आपको दूसरों से अलग तो कर देती है पर कुछ नया और अपने ही दम पर प्राप्त करने की जो ख़ुशी मिलती है वो लाजवाब होती है। 

हम घर बहुत सारे भाई-बहन थे घर में पढ़ाई का अच्छा माहौल था वजह थी अब्बा की सख़्ती जो कि हम बहन-भाई को अपने मक़सद से भटकने नहीं देती थी। हमारे अब्बा ने बहुत मुश्किल उठा कर अपने आप को काबिल बनाया था, वो भी उस ज़माने में जब की 1919 में अंग्रेजी में एम.ए. किया उस वक़्त यूनिवर्सिटी हर जगह नहीं होती थी। फिर गणित में भी मास्टर डिग्री ली सब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से, पढ़ाई का इतना शौक़ था कि हमारे दादा उस ज़माने के राजा के रेवेन्यू में पटवारी थे, हमारे अब्बा अकेले बेटे थे, उनकी अम्मी का इंतक़ाल बचपन में ही हो गया था, इसलिए दादा ने ही अपने बेटे की जैसे-तैसे परवरिश की, पढ़ाई के लिए आगरा और इलाहाबाद भेज दिया। अब्बा ने अपनी पढ़ाई पूरी की उसके बाद सरकारी स्कूल में टीचर्स की नौकरी की और ज़्यादा से बच्चों को पढ़ाने का ज़िम्मा उठाया के शिक्षित करना है, समाज को अशिक्षा का ज़माना था, हमारे अब्बा और दादा ने भीड़ में चलना मंज़ूर नहीं किया भेड़ चाल तो हर कोई चलता है मैं, मैं, मैं करके पहले सब ही या तो अनपढ़ ही रखते थे अपने बच्चों को या फिर मदरसे में हाफिज़ क़ुरान करने भेज देते थे मोलवी साहब के पास। 

दादा को उनके साथ वाले और रिशतेदारों ने समझाया कि वो बच्चे को कुछ काम-धंधा करने के लिए किसी दुकान पर बिठा दे अच्छा मैकेनिक बन जाएगा ज़्यादातर घरों के बच्चे 8-10 साल के होते उन्हें छोटे-मोटे काम के लिए भेज देते ।  मगर दादा ने जैसे ही थोडे़ बढ़े हुए अब्बा उनका नाम स्कूल में लिखवा दिया और दादा की हमारे अब्बा को सख़्त हिदायत थी के स्कूल से नागा नहीं करना है। चाहे तुम्हारे दोस्त तुम्हें कितना ही बरगलाएं, तुम्हें उनकी तरह नहीं बनना है ,पढ़ाई का महत्व समझाया कि कितना ज़रूरी होता है। आप पढ़ लेते हो तो आपकी सात पीढ़ी सुधर जाती है। तुम अच्छे से पढ़ो मास्टर जी मारे भी तो उसमें तुम्हारे लिए भलाई है। यहाँ तक तो जो हमारे अब्बा ने उनकी पढ़ाई के जो किस्से बताएं वो मैंने सुनाया....!

हमारे अब्बा का हाई स्कूल में मास्टर थे इंग्लिश और मथ्मेटीक्स के बहुत अच्छे टीचर थे स्कूल में बहुत अच्छी इज़्ज़त थी, दादा ने जब उनकी अच्छी नौकरी हो गई तो अपने रिशतेदारों में शादी कर दी, परिवार बढ़ा तो हम भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई। अब्बा की उस ज़माने में तनख्वाह भी ज़्यादा नहीं थी।

अम्मी बताती थी के कैसे वो सुबह नमाज़ पढ़ने के बाद साइकिल से निकलते थे तो एक दो ट्यूशन पढ़ा कर घर आते, खाना खाने के बाद स्कूल के लिए निकलते पांच बजे वहाँ से आते फिर साइकिल से कई घरों में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते धीरे-धीरे लोगों में पढ़ाई के लिए रुचि भी जगाना था लोगों को समझाइश देते के बच्चों के स्कूल में नाम लिखवाओ। 

मैं तो सबसे छोटी थी घर में अब्बा ने हम भाई-बहनों को भीड़ में चलने नहीं दिया हमेशा कहाँ अपना रास्ता अलग ढूँढो भीड़ का हिस्सा मत बनो इसलिए आज से पचास साल पहले हमारे उस ज़िले से मेरे बीच वाले भाई डाक्टर की पी.एम.टी.में टाप किया, एक भाई ने इंजीनियर की एग्जाम में आगे निकले फिर तो हमारा घर भाईयों की कामयाबी से फेमस हो गया।  फिर तो अब्बा की मेहनत अम्मी का सब्र और दादा की दुआओं का असर रहा कि माशाअल्लाह सात भाई थे सब ही सरकारी अलग- अलग डिपार्टमेंट में सर्विस में लग गए जब अब्बा रिटायर्ड हुए तो मैं ही आठवें नम्बर वाली 11वीं क्लास में थी मै एक अकेली बहन थी मगर आज से 40 इयर पहले मुझे भी अब्बा की दुआएँ थी उनके इंतक़ाल के बाद मैंने ग्रेजुएट की बड़े भाई ने हमें अब्बा की ही तरह संभाला और कभी भेड़चाल नहीं चलने दी उन्होंने यही सिख दी थी के अपने रास्ते ख़ुद बनाओ ना कि लोग एक तरफ जा रहे हैं उनके पीछे ही चलते रहो ज़रूरी नहीं वो रास्ता सही हो तुम अकेले चलोगे तो भले ही लोग आपको बेवकूफ़ समझें मगर आपको अपने आप से संतुष्टि रहेगी के हमने जो भी किया अपने समझ से किया। 

मैने भी आगे चलकर सर्विस की और मेरा शिक्षित होना मेरी आगे की फेमिली लाइफ के लिए बहुत सही रहा मेरी अपनी बेटी साफ्टवेयर इंजीनियर है और टाटा. कंस्लटेंसी में सर्विस करती है हमारे अब्बा का या कहें दादा का सही फैसला हम सब भाई-बहनों के परिवार को संवार गया दादा का ये कहना तुम लोगों के बताये या भीड़ का हिस्सा मत बनो अगर दादा ने भी सब लोगों की तरह मदरसे में पढ़ने डाल दिया होता तो हम सब गर्त में होते उन्होंने पढ़ाई का एहमियत बताई और ख़ुद रास्ता चुनना बताया।

  


    



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