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औलाद

औलाद

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नीरजा जी के बुढापे में उनके हाथ पैर के अलावा बेटे ने भी साथ छोड़ दिया ।घर तो उनके 

इकलौते बेटे ने बड़ा भारी बनवा लिया और माँ -बाबूजी को भी गाँव से लाकर शहर में अपने साथ रख लिया पर जब बेटे दीपक की शादी हुई और बच्चे हुए तो वह अपने परिवार की जवाबदारियों में कुछ इस तरह व्यस्त हुआ कि बूढ़े हो चले माँ बाप की ओर से लापरवाह हो चला ,पत्नी ने भी जब देखा स्वयं दीपक ही अपने माँ बाबा का ध्यान नही रख रहा तो उसने भी उनके प्रति अपनी सेवा भावना से मुँह मोड़ लिया। उसका ज्यादा समय किटी पार्टियों में गुजरने लगा ।बच्चों की कारगुजारियों को देख दीपके के बाबा दुखी होते और अक्सर अपनी पत्नी से कहते "बहुत बड़ी गलती कर दी भागवान हमने गाँव से शहर आकर".

 तब उनकी पत्नी कहतीं उन्हें ढाढ़स बंधा "अजी बेकार की बातें ना करो अब बेटे की जवाबदारियां भी तो बढ़ गई हैं सब ठीक हो जाएगा कुछ दिनों में ।"

 पर उस दिन की प्रतीक्षा करते बूढ़े बाबा की आत्मा एक दिन देह छोड़ गई ।अब तो माँ के लिए और भी कठिन समय आ गया। पहले पति से बात कर समय काट लेती अब अकेले क्या करे ।

एक दिन बेटे दीपक ने उन्हें घर के गैराज में रहने का ठिकाना दिया यह कहकर कि " माँ मेरे बच्चे भी बड़े हो रहे हैं उनके लिए भी अलग कमरों की व्यवस्था करनी है ,पढने के लिए उन्हें एकांत भी चाहिए तुम्हारा तो ज्यादा सामान भी नहीं ,तुम गैराज वाले कमरे में अच्छे से रह पाओगी ,बाहर की दुनिया भी वहाँ से देख पाओगी ।"

माँ ने चुपचाप अपना सामान उठाया और कहा "बेटा मेरा यहाँ अब मन नही लगता मैं वापिस गांव ही जाना चाहती हूँ ।"बेटे ने रोकने की कोशिश भी नही की ।माँ की ममता अंदर ही अंदर घुटती

रह गई ।

वापिस आ गई बेचारी गांव ,बगल में रहने वाला रामचंद्र का बेटा रौनक आकर घर की सफाई करवा गया ,साथ ही कह भी गया-" काकी कोई जरुरत हो तो मुझसे कहने में जरा भी संकोच ना करना ।"

माँ सोचती एक यह पराए का बेटा मेरी इतनी मदद कर रहा और एक मेरी औलाद जिसने गांव आने के बाद मेरी खोज खबर ना ली । रौनक की पत्नी भी उनके पास आ जाती ,कुछ अच्छा पकवान बनाती तो उन्हें दे भी जाती ,बहुत खुश थीं वे यहाँ ,पर अपने बेटे का दुख उन्हें अंदर ही अंदर तोड़े दे रहा था ।हाथ ,पैर बुढापे में जब काम करना छोड़ दे तब हर घड़ी इंसान ईश्वर को पुकारता है कि वह उसे अपने पास बुला ले ।

आज उनकी भी ऊपर वाले ने सुन ली है अंत समय नज़दीक है डॉक्टर ने जवाब दे दिया है ,रौनक अपनी पत्नी के साथ निःस्वार्थ रात दिन उनकी सेवा में लगा है ,आज उनकी दशा देख उनके बेटे दीपक को फ़ोन लगा कर बुलवाया है ,पर माँ ने उसे पहचाना ही नहीं बस उनके मुँह से रौनक का ही नाम निकल रहा है "बेटा तू ही मुझे अग्नि देना ,तू ही मेरी औलाद है ।"रौनक की आँखों से अश्रुधारा लगातार बह रही है , उसके प्रेम स्नेह ने आज उसे इस वृद्धा का बेटा ही निरूपित कर दिया और सगा बेटा अपने कर्मो से अपनी ही माँ से कितना दूर हो गया ।




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