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स्वयंसिद्धा

स्वयंसिद्धा

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उसने एक बार सामने खड़ी ट्रेन को देखा और फिर अपने गुस्सा होते दिमाग को। वैसे देखा जाये तो दिमाग का नाराज होना जायज था पर दिल नाम की भी तो कोई चीज होती है।

दिल की बात सुनकर वो बिना रिजर्वेशन ट्रेन में सफर पर निकल पड़ा था। दिल को अपने बचपन की यादें जो ताजा करनी थी, वहीं दिमाग का मानना था की वो ऐरोप्लेन से भी जा सकता है।

खैर, जैसे-तैसे वो उस जनरल डिब्बे में चढ़ ही गया और किस्मत की बात उसे सीट भी मिल गयी।

सामने एक आदमी जाने किस बात का गुस्सा अपनी बीवी और बेटी पर निकाल रहा था। दोनों का सहमा हुआ चेहरा बता रहा था की यह तो रोज की बात है।

कुछ देर दिमाग खिचड़ी पकाता रहा था। फिर जाने क्या सोच कर उसने बेटी के लिए ली गयी चॉकलेट उस लड़की की तरफ बढ़ा दी।

लड़की ने शायद पहली बार इतनी बड़ी चॉकलेट देखी थी। खुशियों का इन्द्रधनुष उसके चेहरे पर खिल गया था।

चॉकलेट देने के बाद वो उस आदमी से बेहद राजदारी से बोला,

"आप जानते हैं मैं एक एस्ट्रोलॉजर हूँ।"

"एस्ट्रोलॉ.....जर ई का होता है बाबूजी, "

उस आदमी ने अचकचा कर पूछा।

"अरे एस्ट्रोलॉजर मतलब ज्योतिषि, मैनें अभी-अभी तुम्हारी बेटी के माथे की लकीरों को ध्यान से देखा। तुम्हारे नसीब में तो राजयोग है म..ग..र.."

"मगर क्या बाबूजी जल्दी बताये ना...इसके लिए क्या करना होगा मुझे... "

"अरे, बस ज्यादा कुछ नहीं, बस तुम्हारे घर में लक्ष्मी जी का अपमान नहीं होना चाहिए। मतलब अब तुम अपनी बेटी और पत्नी पर बेवजह नाराज मत होना नहीं तो लक्ष्मी जी रूठ जायेगी। अगर तुमने ऐसा किया और साथ में मेहनत भी की तो जब यह बच्ची बीस साल की होगी तब तक तुम लखपति बन जाओगे।

"सच बाबूजी ...।"

यह कहते हुये उसने अपनी बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेरा। लड़की हैरान थी क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था।

उसने भी यह देखकर मुस्कुरा कर बोला, "हाँ बाबा हाँ, एकदम सच ..।"

यह सब देखकर दिल गुस्से में बोला,

"झूठ तो बड़े मजे से बोला पर यह नहीं सोचा की कुछ साल बाद ऐसा नहीं होगा तो क्या होगा।"

दिल की बात पर दिमाग शांति से मुस्कुराते हुये बोला,

"अरे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, तब तक तो वो खुशी से रहेगी ना और अगर मेरा कहा सच ना भी हुआ तो भी तब तक वो स्वयंसिद्धा होगी और अत्याचार का विरोध कर सकेगी।"


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