परजीवी
परजीवी
"अरे राधा,आज फिर तू आ गई ?"
"जी आंटी, अब से शनिवार ,रविवार मैं ही आया करूँगी।"
"हम्मम... कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई? दसवीं देनी है न ?"
"जी, पढ़ रही हूँ। नहीं पढ़ूँगी तो टीचर कैसे बनूँगी ?"
"माँ कैसे भेज देती है तुम्हें इस ठंड में काम करने, बता तो भला ?"
"मैं ही जिद करके आती हूँ आंटी। इतना काम करके बीमार पड़ जाएगी। दो दिन तो वो आराम करे।"
"अच्छा, बूढ़ी अम्मा ! चल, तू पहले झाड़ू-पोंछा कर, बाद में बर्तन करना। जरा धीरे-धीरे, शोर मत कर वरना दीदी जाग जाएगी और गुस्सा करेगी। सो रही है, देर रात तक पढ़ती है न, उसे भी दसवीं देनी है।"
"ही..ही...ही...आंटी, आपके घर उल्टा है। मेरे घर हम दोनों भाई-बहन, माँ से डरते और यहाँ आप दीदी से।"
ये जुमला उछाल, राधा अपने काम में लग गई और मधु, पति के साथ सुबह की चाय लेकर बैठ गई।
"देख लो रज्जो को, बेटी को भेज दिया काम करने। इन्हें बच्चे चाहिए ताकि काम में हाथ बँटाने वाला सदस्य बढ़ जाए। ओह ! ऐसी ममता ? मैं तो ऐसा कभी ना करूँ।"
"हाँ, देख रहा हूँ। ....कब उठेगी तुम्हारी लाड़ली ? नौ बज चुके।"
" देर रात तक पढ़कर सोई है, एक घंटे बाद उठाऊँगी।"
"हाँ, व्हाट्सएप पर लास्ट सीन डेढ़ बजे रात का है, खूब पढ़ाई हुई है।"
"तुम तो न बस ,उसके पीछे पड़े रहते हो।"
"आंटी, काम हो गया। मैं जाऊँ ? बस दो और घर जाना है, फिर मेरा भी काम खत्म।"
" कब पढ़ती है तू ?"
" बारह बजे के बाद तो फ्री हो जाऊँगी। कोई टेंशन नहीं।"
"उठ जा बेटे ! काफी देर सो लिया।
तुम्हारी गर्मागर्म कॉफी भी तैयार है।"
"ओह मम्मी, आप भी न ! प्लीज़ सोने दो।"
"उठ जा मेरी प्यारी रीति। पढ़ाई नहीं करनी ? मैंने तुम्हारे हिस्ट्री के नोट्स बना दिए हैं। तुम्हें बस याद करना है। फिर मैथ्स ट्यूशन भी तो जाना है। उठो, उठो !
"ओह, कॉफी दो आप पहले।....थू...थू.... कैसी गंदी कॉफी और इतनी ठंडी...थू......मम्मा आपने मेरी सुबह खराब कर दी।"
"सॉरी बेटे...रूको फिर से बनाकर लाती हूँ। तुम गुस्सा नहीं हो।
"कोई कॉफी नहीं बनेगी फिर से। तुम्हें उठना है उठो, सोना है सो। माँ पढ़ने से लेकर हरेक काम में हेल्प करती है तुम्हारी ? आज मैं तुम्हें बायोलॉजी पढ़ाऊँगा। 'परजीवी' सुना है, रीति ?.... ऐसे पौधे या जीव जो दूसरों के भरोसे रहें ,उन्हें 'परजीवी' कहते हैं,अकेले उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। मुझे तुम वहीं 'परजीवी' दिख रही हो। अभी राधा को देखा...हरा-भरा लहलहाता प्यारा-सा स्वतंत्र पौधा ! इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी अपने बलबूते पर पूरी मज़बूती से डटा। खुद सोचों, क्या बनना है तुम्हें परजीवी या स्वतंत्र पौधा !!