हाँ भगवान हैं
हाँ भगवान हैं
आज ज़िंदगी एक हकीकत से फिर रूबरू हुई। उसी हकीकत को अपनी कलम से उकेरने का प्रयास कर रहा हूँ। मेरा लोगो के मतलबी व्यवहार को देख कर इंसानी भगवान से भरोसा उठ गया था। मैं मानने लगा था कि अब शायद इंसानो के अन्दर का भगवान मिट चूका हैं ।
ये मामला उस वक्त का हैं जब मैंने अपने सपने की तरफ पहला कदम रखा था। मैं और मेरा दोस्त कुछ हसीन यादो को संजो कर और अपनी पुरानी धूल से ढकी यादो से धूल हटाते हुए चले जा रहे थे। ये वही यादें थी जिन यादों मे हमने गिर कर उठना सिखा जिन यादों में हमने सपने सजोना सिखा ।
हम अपने मंजिल की तरफ चल ही रहे थे कि तभी ख्याल आया चलो क्यो न पुराने दोस्तो के साथ मिलकर नई यादों के साथ हाथ मिलाते है । हम गाड़ी पर सवार होकर निकल पड़े नई यादें बनाने के लिए कुछ मशहूर गीतों के साथ । हम थोड़ी ही दूर चले कि अचानक हमारी गाड़ी पंचर हो गई। हमने पंचर की दुकान ढूँढना शुरू किया पर दूर तक पसरा सन्नाटा हमारी आशा को मिटा रही थी और सूरज भी अपने घर को लौट रहा था। फिर भी ढलते हुए सूरज की रोशनी में हमने अपने प्रयास को जारी रखा कभी थोड़ी दूर वो गाड़ी घसीटता तो कभी मैं। यूँ ही चलते चलते हम थक गए। हार कर हम हताशा भरी निगाहो से एक दूसरे को तक रहे थें हमे कही से कोई मदद की उम्मीद नहीं दिख रही थी बस आसरा था तो भगवान का।थोड़ी देर आराम कर हमने फिर से मुसीबत से लड़ना शुरू किया। वक्त बीतता गया और सूरज की जगह टिमटिमाते तारो और पूर्णिमा के चाँद ने ले ली ।
चाँद की दूधिया रोशनी में हमें आशा की एक किरण दिखाई दी। अपनी तरफ एक बड़ी सी गाड़ी आते देख हमारे चेहरे खिल उठे। हमने उस गाड़ीवाले से मदद मांगी। वो गाड़ीवाला व्यक्ति नीचे उतरा और उसने हमसे हमारे बारे में पूछा हमने उसको पूरी बात बताई। उस व्यक्ति ने हमारी गाड़ी को अपन गाड़ी में चढ़ाया और हमें बैठने की इजाजत दी। उस व्यक्ति को देखकर मेरे मुख से इक ही शब्द निकला " हाँ भगवान हैं। "