माँ
माँ
मेरी शादी हुई। मैं कुछ महीने तो लगातार मिलने आती रही। फिर भी माँ तो बड़ी बैचेन रहती। एक बार मैं करीब आठ महीने बाद आई तो मेरी भतीजी ने बताया, फूफी अभी बारिश गई तो उसमें नई मूंगफली आई तो दादी ने मुझसे सिकवा कर एक डिब्बे में पैक कर के रख ली।
मैनें पूछा, क्यों रखी तो आपका नाम लेकर कहती है, उसको पसंद है, मालूम नहीं ससुराल में खाने को मिली या नहीं। मेरी बेटी आएगी तो खिलाऊँगी।
मेरी आँखें भर आई। उनका झट से वो डिब्बा निकाल कर देना, मूँगफली खाले, आज भी वो बात याद आ जाती है।