" प्राचीन कथा "
" प्राचीन कथा "
"नेस्तोनाबूत"
सुमान चीन का रहने वाला एक युवा था।
यदा कदा सुमान अपने देश में सोने की चिड़िया के बारे में सुनता था । और फिर भारत को जानने की वहाँ जाने की उसकी इच्छा और प्रबल हो उठती थी।कोई धन कुबेर तो नहीं था सुमान ,पर लगन का सच्चा था।।
अपनी मेहनत पर विश्वास करने वाला सुमान ने एक हादसे मे अपने पूरे परिवार को खो दिया था।और इस विशाल धरती पर अकेला रह गया था वो ।अपनी माँ की बस एक ही निशानी थी उसके पास ।वो था उसका नाम सुमान ,कितने प्यार से उसकी माँ ने उसका यह नाम रखा था।
फिर एक दिन सुमान ने नालन्दा विश्वविधालय के बारे में पढ़ा। नालन्दा विश्वविद्यालय उस वक़्त अपने चरम सीमा पर था ।देश विदेश के छात्र वहाँ शिक्षा ग्रहण करना अपना सौभाग्य समझते थे।गौरव शाली भारत का गौरव शाली नालन्दा विश्वविद्यालय दिन प्रतिदिन सफलता की नयी ऊँचाइयों को छू रहा था।
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था ।महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे ।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० ई. को प्राप्त था और इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियोंका पूरा सहयोग मिला । यहाँ तक कि गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला तथा स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला । यह विश्व का प्रथम पूर्णतःआवासीय विश्वविद्यालय था और विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी । इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे ।
नालन्दा के बारे में जानकर सुमान ने निश्चय कर लिया था चाहे मुझे दिन रात एक करने पड़े ।पर मैं नालन्दा मे शिक्षा जरूर ग्रहण करूँगा और फिर एक दिन सुमान की मेहनत रंग लाई ।और वो भारत की सरज़मीं पर आ गया।नालन्दा विश्वविद्यालय ने भी खुले दिल से अपने नये विद्यार्थी को गले लगा लिया था।सुमान को यहाँ बहुत अच्छा लगता था जैसे पूरा परिवार ही वापस मिल गया हो उसे।
सुमान के सपनों को पंख लग गये थे पर वो नहीं जानता था ।भविष्य ने अपने गर्भ मे क्या छुपा रखा है।सुमान के सपनों को जैसे किसी की नज़र लग गई थी।
हुआ कुछ ऐसा था कि ,
बख़्तियार खिलजी नामक एक तुर्क मुस्लिम लूटेरा बहुत बीमार पड़ गया था। जिसमें उसके मुस्लिम हक़ीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली मगर वह ठीक नहीं हो सका और मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया | तभी किसी ने उसको सलाह दी नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाऐ |
हालाँकि खिलजी को यह बात पसंद नहीं आई थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य उसके हक़ीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से अपना इलाज करवाऐ पर फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए आचार्य को बुलाना ही पड़ा ।
लेकिन उस बख़्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि
"मैं एक मुस्लिम हूँ इसीलिऐ, मैं तुम काफ़िरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊँगा लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करो वर्ना मरने के लिए तैयार रहो | "
यह सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई | उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा और सोचने के बाद वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास क़ुरान लेकर चले गऐ और उस बख़्तियार खिलजी से कहा कि ,
"इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये ठीक हो जायेंगे |"
बख़्तियार खिलजी ने वैसे ही कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया तथा उसकी जान बच गई |
पर खिलजी को इस बात की कोई ख़ुशी नहीं हुई बल्कि बहुत झुँझलाहट हुई और उसे बहुत गुस्सा आया कि उसके मुसलमानी हक़ीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है ??? और उस ने बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले उनको पुरस्कार देना तो दूर उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया और पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया ताकि फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके |
सुमान अपनी आँखों के सामने अपने सपने को धूधू करके जलता देखता रहा ।कुछ नहीं कर सका ।
नालन्दा मे इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगने के बाद भी .... तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
और सुमान तड़पता रहा काश वो उन किताबों से शिक्षा ग्रहण कर पाता ।और वो आतातायी इतने पर ही नहीं रूका ,.. उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला |
गुस्से से भरा सुमान सर पर कफन बाँध कर खिलजी के सामने जा पहुँचा और बोला।
" कम से कम यह जान लो कि तुम ठीक कैसे हो गये क्या जादू किया था मेरे गुरु ने हालाँकि तुम इस लायक नहीं थे जानते हो जहाँ हम लोग किसी भी धर्म ग्रन्थ को ज़मीन पर रख के नहीं पढ़ते ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ को पलटते हैं ।
जबकि तुम लोग इसका ठीक उलटा करते हो। बस वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने क़ुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था | इस तरह तुमने थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट लिया और ठीक हो गये परन्तु तुमने इस एहसान का बदला अपने संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए नालंदा को नेस्तोनाबूत करके दिया |काश मेरे गुरु ने तुम पर दया ना दिखाई होती ।काश उन्होंने तुम्हें दवा की जगह ज़हर दिया होता तो आज नालन्दा का यह हाल ना हुआ होता।"
सच जानकर गुस्से से आगबबूला खिलजी ने एक पल मे सुमान का सर धड़ से अलग कर दिया।
पर सुमान फिर भी सुक़ून में था,कम से कम उसने मरने से पहले एक आतातायी को आईना तो दिखा ही दिया था।