दसवीं कक्षा
दसवीं कक्षा
मैं दसवीं कक्षा में पढ रहा था। तब मेरे पिताजी नया घर खरीदने के चक्कर में दिवालिया हो गए थे। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें अंतत उन्होंने निर्णय लिया कि अब वह कर्ज नहीं चुका पाएंगे।और उन्होंने जहर खा लिया, तब मैं अपने स्कूल में क्लास में बैठा था कि अचानक मेरे घर के पास रहने वाले मेरे कुछ मित्र आकर मेरे अध्यापक से मिले और कुछ कहने लगे उसके तुरंत बाद उन्होंने मुझे जल्दी घर जाने को कहा। मै समझ नहीं पाया तभी मेरे एक मित्र ने सारी हकीकत बताई मेरे अंग में एक रोमांच और कपकपीं आने लगी। मैं अस्पताल गया तो डॉक्टर ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट अस्पताल रैफर किया । एक माह तक में स्कूल से अंजान रहा। पिताजी भी अस्पताल में कुछ दिनो में स्वस्थ्य हो गए। मगर कर्ज अभी भी चुकाना था। इस वजह से हमें रहने वाले मकान को भी बेचना पड़ा। सारे रिश्तेदारों ने हमसे मुँह फेर लिया। दो दिनों तक हम पड़ोसियों के घर में आश्रयीत रहे। फिर एक सस्ते किराए के मकान में रहने लगे। जिंदगी तंग हाल हो चुकी थी। मैं भी सुबह पेपर और दुध बांटने का काम करने लगा। अब लगता था मेरी पढ़ाई छुट जाएगी। मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकता। तब मेरे कुछ मित्र मुझसे मिले और मुझे दसवीं कक्षा की परीक्षा देने के लिए कहा। फिर मैंने बिना किसी साधन के और क्लास के परीक्षा दी। परीक्षा के परिणाम को देख मैं हैरान रह गया क्योंकि मैं परीक्षा उत्तीर्ण हो गया था। भले ही अंक कम मिले हो लेकिन मैं इतनी कठनाई के बावजूद मेरे खुद के लिए सफल हो गया था। इसके बावजूद कुछ लोग मेरे कम अंकों को लेकर मेरी आलोचना करते रहे मगर यह आज भी इस परीक्षा को में अपने जीवन में एक बेंच मार्क मानता हूँ । यह कम अंक मेरे लिए किसी मेरिट से कम नहीं।
मै अपने सभी दोस्तों से कहना चाहता हूँ कि वह किसी भी परिस्थिति में निराश न होकर प्रयास करते रहे। हो सकता है कि आपकी सफलता औरो के मुकाबले कम हो मगर आपके लिए निश्चित ही ज्यादा होगी। अपने यश अपयश को दुसरो के नजरिए से न नापे। क्यों कि इस चिज को केवल हम खुद ही अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि उस ध्येय को पाने के लिए हम ने क्या किया ये हमें ही मालूम होता है।