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सौदामिनी.. उम्मीदों की रौशनी!!

सौदामिनी.. उम्मीदों की रौशनी!!

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दुर्गा पूजा आने वाली है और इस बार काम के सिलसिले में मैं कोलकाता में हूँ । औरतों पर हो रहे मानसिक शारीरिक अत्याचार, दुर्व्यवहार,हूमेन ट्रैफिकिंग जैसे कई मुद्दों ,पर मुझे मंच पर बोलना है। आज पूरा कोलकाता पूजा के रंग में डुबा हुआ है। बंगाल के हर गली कूचे में मूर्तीकार दुर्गा माँ की मूर्ति बनाने में जोर शोर से जुट गए हैं। कोलकाता को सिटी ओफ जायॅ कहते हैं और दुर्गा पूजा की रौनक देखने लायक होती है।एक अलग ही उत्साह,जोश और खुशी का माहौल होता है पूजा के समय।जिस गली से मैं गुजरी रही थी बस पकड़ने के लिए ,वहां एक ७० साल के कारीगर दुर्गा मां का चेहरा तराश रहे थे बड़े ही प्यार से। मैं खुद को रोक नहीं पाई और रुक कर उनका काम देखने लगी।कठोर पत्थर को तराश कर इतना सौम्य चेहरा गढ़ रहे थे, मैं ने कौतूहल से उन्हें पूछा "बाबा इतनी सौम्यता कैसे ले आए आप इतने कठोर पत्थर पर? बाबा मुस्कुराते हुए बोले "ये मां है ,अगर पत्थर को भी मां का रुप समझोगे तो उसमें सौम्यता प्राकृतिक रूप से आ जाती है। भगवान ने इसकी रचना ही इतने कोमलता से की है , जितना सौम्य,सहनशील,कोमल ,संवेदनशील बनाया उतना ही कठोर,रौद्र, बलशाली और प्रचंड भी बिल्कुल इस पत्थर की तरह ।

यही मां दुर्गा बन कर राक्षस का संहार करती है।

बाबा ने कितनी आसानी से औरत के दोनों रूपों का वर्णन कर दिया। मैं मुस्कुराते हुए बस की ओर चल पड़ी।बस स्टैंड पर काफी भीड़ थी बड़ी मुश्किल से बस के अंदर जगह मिली। बैठने को जगह नहीं थी सब एक दूसरे से सटे हुए खड़े थे । मुझसे कुछ दूरी पर स्कूल की लड़कियों का समूह खड़ा था ,छोटी छोटी लड़कियाँ । अगले स्टाप पर दो लड़के चढ़े सभी को धकेलते , कोहनियों से टोचते , अपनी जगह बनाते हुए उन लड़कियों के पीछे जा खड़े हुए। मैं अपनी जगह से लगातार उन्हें देख रही थी।एक लड़के ने भीड़ का फायदा उठाते हुए एक बच्ची के कमर पर हाथ फेरा, लड़कियों के समूह में हलचल हुई और उस बच्ची के चेहरे पर असहजता दिखी।वो लड़का हर बार कुछ न कुछ बुरी हरकत कर लड़की को तकलीफ़ पहुंचा रहा था। लड़की अपनी जगह बदलने की कोशिश करती है और बंगाली में अपने दोस्त से कुछ कहती है।पर जगह बहुत कम होने की वजह से वो आगे नहीं जा पाती है। लड़के की हरकते बढ़ने लगी , लड़की अपना आपा खो देती और चीखते हुए अपने स्कूल बस्ते से उसकी धुनाई चालू कर देती है " आर कोर बे एरोकोम?(और करेगा ऐसा) आर धोरबी आमाके?(और छूएगा?)साहस थाकले कोरे देखा?(हिम्मत है तो फिर से कर के दिखा) इतनी नाजुक सी कमजोर सी दिखने वाली बच्ची में अचानक से इतना क्रोध, इतनी ताकत आ गई मानो माँ दुर्गा ने बच्ची का रुप ले लिया हो। लोग मदद के लिए आगे आते हैं पर लड़की अकेले ही डट कर उस लड़के को पीटती रही,बस में हो हल्ला देख कर बस का चालक बस को किनारे पर रोकता है और उन लड़कों को नीचे उतारता है पर वो बच्ची उस लड़के की गिरेबान एक पल के लिए भी नहीं छोड़ती और नीचे उतार कर उसे खूब मारती है जब तक की वो खुद थक कर बेहाल नहीं हो गई।आस पास के लोग बच्ची को संभालने की कोशिश करते हैं और पुलिस को बुलाकर लड़के को उन के हवाले कर देते हैं। मैं जो अब तक ये सब देख रही थी खुद को रोक न पाई और पानी की बोतल ले उस लड़की के पास पहुंची। पसीने ,क्रोध और मानसिक और शारीरिक थकान से उसका कोमल सा चेहरा मुरझा गया था, कुछ १०-१२साल की होगी मैंने अनुमान लगाया। क्या निम्न हैं तुमहारा? बहुत बहादुर हो तुम,लो थोड़ा पानी पिलो कहते हुए मैंने उसकी और बोतल बढ़ाई।उसने तीखी नजरों से मुझे देखा फिर हाथ बढ़ा कर पानी लिया, अपने चेहरे पर छींटे मारें, मानो क्रोध की आग को शांत कर रही हो और फिर पूरी बोतल एक सांस में गटक गई।भीड़ अब छंटने लगी थी। मैं उसी के साथ बैठी हुई थी। थोड़ा संभल कर शांत होने के बाद वह बंगाली में कुछ बोलने लगी "ऐ दुष्टु लोकेरा आमरा बोनेर खून कोरेछे।"(ये दुष्ट लोगों के वजह से मेरी दीदी की जान चली गई)

मेरे चेहरे के हाव-भाव से बच्ची समझ गई मुझे बांग्ला नहीं आता। फिर उसने टूटी फूटी हिन्द में मुझे बताया के वह सोनागाछी से है और रोज स्कूल के लिए इस बस से आती जाती है, ऐसे ही मनचले लड़कों की छेड़ छाड़ की वजह से उसकी दीदी की कुछ महीनों पहले जान चली गई। मैं निशब्द और अवाक थी,हम जिस जगह से है वहां औरतों की कोई इज्जत नहीं और पढ़ने लिखने नहीं दिया जाता।वह बच्ची बोले जा रही थी दीदी पढ़ाई में बहुत तेज थी मां से झगड़ कर वह स्कूल जाती थी आते जाते लड़के उसे छेड़ते और परेशान करते ,फोन पर उसकी तस्वीरें लेते और गंदी बातें करते, दीदी ने मां को बताया पर उन लड़कों को सबक सिखाने के बजाए मां ने दीदी का स्कूल बंद करवा दिया। दीदी घुटती रही ,हर बार मुझे कहती कुछ भी हो जाए तू स्कूल जाना बंद मत करना।और एक दिन मां से स्कूल जाने की बात पर बहस हो गई और वो अपना बस्ता पकड़ कर घर से निकल गई।बस में लड़कों ने दीदी के साथ दुर्व्यवहार किया और अपने आप को बचाने की कोशिश में दीदी चलती बस से कूद पड़ी और ट्रक के नीचे आ गई और उसकी जान चली गई।" बच्ची कहते कहते सिसकने लगी। मैं ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे सांत्वना देने लगी। बच्ची ने अपने आंसू पोंछ कर कहा "मेये होवा की कोनो ओपोराध?(दीदी लड़की होना गुनाह है क्या?) हमें लड़के हमेशा भोग की नज़र से क्यों देखते हैं? हम भी इंसान ही हैं ना भोग की वस्तु नहीं, चंद लड़कों की नीच मानसिकता और गंदी परवरिश का नतीजा हमें क्यों भुगतना पड़ता है? क्या लड़की का पढ़ना,सपने देखना, आत्मनिर्भर बनना पाप है? मैं चुप चाप उसके प्रश्नों को सुन रही थी।

महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर आज मेरा सेमिनार है और आज मैं ने एक बच्ची को दुर्गा का रूप लेते प्रत्यक्ष देखा,अपने हक के लिए , अपने बचाव के लिए, अपनी आत्मरक्षा के लिए।

मैंने बच्ची को गले से लगाया और कहा "सौदामिनी, अपने नाम का मतलब जानती हो,उसने ना में सिर हिलाया। मैं ने उसे बताया उसके नाम का मतलब है रौशनी। उसके चेहरे पे फीकी सी मुस्कान उभरी। संने कहा सौदामिनी!! सपने देखने से आगे बढ़ने से तुम्हें कोई नहीं रोक सकता तुम नारी हो जो सब कुछ संभाल सकती है तुम कमजोर नहीं तुम ताकतवर हो,साहसी हो और सहनशील भी। बस अपनी ये ताकत और आत्मविश्वास बनाए रखना जब जब ऐसे दानव आए दुर्गा का रूप धारण कर लो और हर उस इंसान का संहार करो, डट कर मुकाबला करो जो तुम्हें कमजोर समझता हो,जैसा तुमने आज किया। हमें हमारी रक्षा खुद करनी है , कलयुग में कोई कृष्ण नहीं आएंगे द्रौपदी को बचाने,द्रौपदी को खुद दुर्गा बनना होगा।तुम अपने जैसी अनेक बच्चीयों के लिए रौशनी बन सकती हो । उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सकती हो अपने जैसी आत्मविश्वासी,और साहसी बना सकती हो, बोलो करोगी ऐसा? सौदामिनी ने जोश में अपना सिर हिलाया। मैंने ने उसका हाथ थाम और उसके स्कूल छोड़ आई। मैं अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी एक नये आत्मविश्वास के साथ कुछ नयी जिंदगियों को दिशा देने के लिए।


खचाखच भरे हाल को संबोधित कर मैं बोल रही थी "तुम अबला नहीं हो , तुम सबल हो, अपने आत्मविश्वास को कुचलने मत दो आवाज़ उठाओ,अपनी शक्ति को पहचानो तभी तुम्हारा उत्थान होगा।

पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।



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