रिश्तों की बुनाई
रिश्तों की बुनाई
‘दादी आप कितना अच्छा स्वेटर बुना करती थीं...मुझे आज भी याद है जब हम पढ़ते थे तब आप हमारे पास रजाई में बैठकर हमारे लिये नई-नई डिजाइन के स्वेटर बुना करती थीं।’ पल्लवी ने दादी की रजाई में घुसकर उनसे चिपकते हुये कहा।
‘ बेटा वह दिन और ही थे। अपने हाथ से स्वेटर बुनकर पहनाना सुकून देता था। फिर तुम पहन भी तो लेती थीं मेरे हाथ का बुना स्वेटर।’
‘ सच कहतीं हैं आप दादी, आपके बनाये स्वेटरों की डिजाइन तो सुन्दर रहती ही थी इसके साथ उनमें आपके प्यार की जो गर्माहट थी वह बाजार के स्वेटरों में कहाँ मिलती ?’
‘ बेटा जैसे हम स्वेटर बुनते थे वैसे ही रिश्तों को भी बुनते थे।’
‘ रिश्ते बुनना...आप क्या कह रही हैं दादी ?’
‘ सच कह रही हूँ बेटा, रिश्तों के अनुसार ही हम रिश्तों में प्रेम के फंदे डालते थे, अगर गलत पड़ गया तो पुनः उसे उधेड़कर उसे ठीक कर अपने मनमाफिक बना ही लेते थे। इसलिये हमारे समय में रिश्ते आज की तरह टूटते नहीं थे। आज लोगों ने बुनना छोड़ दिया है शायद इसीलिये प्रेम के धागों को सहेज नहीं पा रहे हैं...।’ गहरी सांस लेते हुये दादी ने कहा।
‘ जा सो जा मेरी लाढ़ो...कल तेरा विवाह है।’ उसे चुप देखकर दादी ने पुनः कहा तथा करवट बदल कर सो गई।
कल तेरा विवाह है, जा सो जा...बार-बार दादी के गूँजते शब्दों के साथ बीते पलों की स्मृतियाँ उसे होटल के आरामदेह कमरे में भी निद्रा देवी की गोद में विश्राम करने से रोक रही थीं...अचानक उसे बीते पल याद आने लगे…
‘ जब देखो मुझे ही छुट्टी लेनी पड़ती है...क्या आपकी अपने बच्चे के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ?’ माँ ने पापा को उलाहना दिया था।
‘ मैं छुट्टी ले लेता पर आज मेरा प्रजेंन्टेशन है। प्लीज आज तुम रूक जाओ कल मैं छुट्टी ले लूँगा।’ पापा ने माँ से आग्रह किया।
‘ रोज-रोज यही बहाना...तुम्हें क्या पता रोज-रोज छुट्टी लेने से आफिस में मेरी इमेज कितनी खराब हो रही है। राजीव तो जब तब कह ही देता है औरतों को इसीलिये कंपनी को रखना ही नहीं चाहिये क्योंकि वे बहाने मारकर काम से भागना चाहती हैं।’
उनके जब-तब होते लड़ाई झगड़े उसके छोटे से मस्तिष्क को परेशान कर देते थे पर इसका उसके माता-पिता को जरा सा भी भान नहीं था। अंततः उसकी माँ ने नौकरी की बजाय उसे ही छोड़ना श्रेयस्कर समझा। माँ चली गई थी तबसे दादी माँ ने ही उसे संभाला है। उसे माँ की धुंधली तस्वीर ही याद है...। पहले विवाह की कड़ुवाहट के कारण दादी के बार-बार आग्रह के बावजूद पापा ने दूसरा विवाह नहीं किया।
विदा के समय दादी के गले मिलते हुये उसने एक निर्णय लिया था कि वह भी दादी के समान रिश्तों को प्रेम के रंग से बुनेगी...।