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सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान

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बचपन, ज़िंदगी का वो दौर जिसमें हम दुनिया को खुद के नज़रिये से देखते हैं। हाँ, वही बचपन, जब हम पंछियों को देखकर उनकी तरह आसमान में उड़ने के ख्वाब देखा करते थे, हाँथ फैलाये हवा से बातें किया करते थे, बारिश होती तो बूँदों संग खेला करते थे। एक आज़ाद पंछी की तरह खुले आकाश में उड़ना चाहते थे। हर रोज़ सैकड़ो ख्वाब हमारी पलकों को ऐसे छूते थे मानों जैसे बसंत ऋतु की ठंड़ी हवा चल रही हो। सपने बड़े हो या छोटे हम अपनी छोटी-सी दुनिया में उन्हें हकीकत बना ही लेते थे। पतंग की डोर हाँथ में थाम अपने सपने को उड़ते देखा करते थे। कागज़ की कश्ती बनाकर बस ख्वाबों संग बह जाया करते थे। सपने, जिन्हें देखने में हमे डर नहीं लगता था। कुछ हम खुली आँखों से, तो कुछ आँखें मूंदकर, पर सपने हम जरुर देखते थे।


लेकिन वक्त का क्या कहूँ, कभी रुका ही नहीं। मुठ्ठी से जैसे रेत फिसलता हो, बचपन भी कुछ ऐसे ही फिसल गया और वक़्त की पतझड़ में हमारे सपने ज़िंदगी की शाखा से छुट गये – वो सपने जो हमारे अपने थे, वो सपने जो बिना किसी डर के हम देखते थे, वो सपने जो हम बड़े होकर पूरा करना चाहते थे। आज हम सपने देखना भूल गये और जो पुराने सपने थे वो बस सपने ही रह गये हैं। तो क्या हम सपने देखने से डरने लगे हैं?


शायद नहीं। सपने तो हम आज भी देखते हैं लेकिन शायद उन्हें पूरा करने से डरते हैं। आज हम अपने सपनों को किसी पिंजरे में कैदकर बस भाग रहें हैं। कहाँ? पता नहीं। हाँ, शायद आज हमारी ज़िंदगी के मायने बदल गये हैं। ‘सपने तो बस पागलों की उपज है’ यह कहकर अक्सर हम ज्ञानी होने का दावा करते है। लेकिन सच्चाई तो ये है कि हम डरने लगे हैं। सपनों से नहीं बल्कि उनके टूटने से। वो जुनून और विश्वास जो हमें कभी खुद पे और हमारे सपनों पे था, शायद आज वो खो चुका है। हम अपने सपने भूल, उन सपनों की ओर भागने लगे है जो दूसरे हमें दिखाते है। और जैसे अंधेरे में हर इंसान अंधे के समान ही होता है, बिना किसी मंज़िल के, बिना किसी सपने के, हम अंधेरे में बस भटक रहे हैं।


ज़िंदगी सिर्फ जीने के लिये नहीं होती, कुछ करने के लिये होती है और सपने हमें वो मकसद देते हैं। तो क्यों ना हम उन पुराने सपनों को ढूँढकर उन्हें एक नई ज़िंदगी दे और पंख फैलाकर निकल पड़े पूरी करने अपने सपनों की उड़ान।


इस टूटे परिंदे को उसका आसमान मिल जाये,
तू मिले तो इस फ़कीर को ये सारा जहाँ मिल जाये,
पंख फैलाता हूँ मैं अपनी इस उम्मीद में कि...
मेरे बिखरे ख्वाबों को वही पुरानी उड़ान मिल जाये।


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