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Harish Sharma

Drama

2.5  

Harish Sharma

Drama

तस्वीर

तस्वीर

4 mins
474


उसने बाकि लोगों की तरह अपने पेंट की पिछली जेब से अपना बटुआ निकाला। नोट, विजिटिंग कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस,क्रेडिट कार्ड और बटुए की एक जेब में पासपोर्ट साइज फोटो वाला लिफाफा।

"होनी तो चाहिए,अभी कुछ दिन पहले निशा का पैन कार्ड बनवाया था पांच फोटो बनवाई थी। शायद दो बची थी। इसी में रखी होगी,अब तस्वीरे तो मैं सबकी रख ही लेता हूँ।क्या पता कहा जरूरत पड़ जाए। आफिस में ही रोज नया से नया फरमान आ जाता है,चिपकाते रहो या स्कैन कर के ईमेल करों।" दिनेश अपनी पत्नी की फोटो बटुए में तलाश करता जैसे खुद से ही कहने लगा।

"आपके दो मिनट खत्म ,अब हाथ उठा कर और तस्वीर दिखाकर सच बता ही दीजिये "। सेमिनार का वक्ता पूरे जोश में था।

आफिस वालों ने पर्सनेलटी डिवलोपमेंट पर एक सेशन रखा था। कर्मचारियों के माइंड को रिलैक्स करने के लिए। वक्ता बहुत जोश और जुनून से पॉजिटिविटी पर लेक्चर दे रहा था। पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी खूब दिख रहा था। एक बारगी तो सब उसके प्रभाव के तिलिस्म में डूब रहे थे। फिर अचानक उसने प्रश्न कर दिया।

" आप अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी से कितना प्यार करते हैं ? कितनों के पर्स में उनकी तस्वीर रहती है,बस अपने आपने बटुये चेक कर लीजिए और छा जाइये।"

कुछ हंसने लगे और इस बात पर शायद उन्हें अफ़सोस हो रहा हो कि उनकी जेब में उनकी पत्नी या प्रेमिका का फोटो नहीं था ,ये भी हो सकता है दोनों का हो और वे मान्यता प्राप्त प्रेम को दिखाना चाहते हो |उसने कुछ लोगों को हाथ खड़े करते देख अपना हाथ भी पूरे कॉन्फिडेंस से खड़ा किया। बटुए में पत्नी की तसवीर चेक किये बिना ,क्योकि उसे विश्वास था कि फ़ोटो होगी। पर........!!!!

ये 'पर' कई बार हमारी कल्पना और अनुमानों के पर कतर देता है और हमे बुरी तरह हैरान कर देता है।

तस्वीर तो उसे दो दिन पहले नीला ने भी दीं थी। उसने जब हाथ खड़ा कर फोटो बटुए से निकाली तो वो निशा की नही बल्कि नीला की थी।कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर के चक्कर में उसने अपनी दो फोटों उसे दी थी।

नीला पिछले छह महीने से उसके संपर्क में है। जैसे वो धीरे धीरे बहुत कुछ हो गए हैं एक दूसरे के लिए।

ये एक तरफा वहम हो सकता था पर नीला ने जब उसे पिछली दफा झील में बोटिंग करते हुए धीरे से कहा ,आप मुझे अच्छे लगते और आपसे बाते करना मुझे उससे भी अच्छा लगता है ",तो जैसे उसके दिल और दिमाग में कई लहरे दौड़ गई थी | जैसे वो चाहते हुए भी कही न कही कुछ नहीं भी चाहता था | पर दोस्त बनाने में दिक्क्त ही क्या थी ? उसने जैसे खुद को एक झूठी तसल्ली देकर समझाना चाहा | उसका अंतर्मन तो जैसे इस सबंध के लिए तैयार ही था |

"बस मैं तुम्हारे साथ बहुत सी बातें करना चाहती हूं। और किसी चीज की कोई कमी नहीं।"वो काफी के कप में चम्मच घुमाते हुए कहती।

नीला के पति बिजनसमैन थे। सुबह से देर शाम तक और कई बार रात तक अपने बिजनेस में बिजी। नीला कहती है ,"ऐसा नही की वो मुझे प्यार नही करते,प्यार तो मैं भी तुमसे करती हूँ, वे अपने बिजनेस और मोबाइल चैटिंग में इतने व्यस्त है कि मेरे पास रहकर भी पास नही हैं। हो सकता है उनका कोई अफेयर हो ,पर इसके बारे में मैं ज्यादा नहीं सोचती। .तुम शादीशुदा हूँ ,मुझे कोई दिक्कत नही। शादी शुदा होना दो लोगों के बीच प्यार होने की किसी गारंटी का दम नही भरता। प्यार का मतलब मेरे लिए हर उस बात को अपने साथी के साथ साझा करना है जो उसके दिलो दिमाग मे घूम रही हो। पर मैं जब भी बात करना चाहती तो मुझसे पहले ही कह देते कि यार किसी रिश्तेदार के झगड़े या दुख की बात मत करना,वो बात करना जिसे करते हुए तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहे। मैं भी सारा दिन बिजनेस में झक मार मारकर घर आता हूँ ,इतना चाहता हूँ कि अब चैन से सुकून के दो पल तुम्हारे और अपने साथ गुजार सकूं।"


पर जैसे जैसे मुलाकातें बढ़ी ,वो बातचीत से आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा | नीला शायद कही न कही हिचक रही थी ,शायद वो अभी तैयार न हो | नाजायज में जायज होने की संभावनाएं बहुत बारीक होती हैं | एक दिन नीला ने जैसे अपने दिल की बात खुल कर रखी हो |

ऑफिस का टूर था | नीला और दिनेश बाकी टीम के साथ अहमदाबाद आये हुए थे |

पहली शाम घूम फिर कर बीती | जहाँ कही मौका मिलता ,दोनों एक दुसरे का हाथ पकड़ लेते | दिनेश ने तो एक जगह टीम से अलग होते ही नीला को अपनी बाँहों में भर लिया और उसे शिद्द्त से चूम लिया | नीला थोड़ी हैरान हो गई ,जैसे डर गई हो | वो बिना कुछ कहे टीम की तरफ बढ़ गई | अगले दिन आखिरी रात थी इस टूर की ,फिर सुबह सबको जल्दी निकलना था | दिनेश ने जैसे अपने इस प्यार के चरम को छूने की एक जिद नीला से की |

" क्या आज रात हम मिल सकते है,अगर तुम्हे बुरा न लगे तो मैं अपने कमरे में तुम्हारा इन्तजार करूंगा|"

नीला ने बस अपना सर हिलाया |दिनेश अपने कमरे में बैठा जैसे इन्तजार में मरने लगा | उसे कमरे में लगी दीवार घड़ी की टिक टिक ऐसे लग रही थी जैसे कोई उसके दिमाग में हथौड़े चला रहा हो | अचानक दरवाजे पर धीरे से नॉक हुआ | नीला ही थी | बड़ी उदास और चुपचाप | वो कमरे में पड़े सोफे पर दिनेश के सामने बैठ गई | इससे पहले कि दिनेश कुछ कहता वो बोली |

"...देखो दिनेश मुझे गलत मत समझना ,मेरे पति भी मुझसे प्यार करते हैं पर अपने सुकून चैन के लिए ।उनके लिए चैन का मतलब घर आकर अपने आप में व्यस्त हो जाना है या शायद जब मन किया मेरे साथ देह के इस उथले समुन्द्र में डूब जाना है | पर मुझे देह से अब ऊब हो गई है और इससे ज्यादा भावनाओं के साथ जीना अच्छा लगता है | वही मैं तुममे खोजती तुम्हे चाहने लगी हूँ | मुझे तुम्हारे पास बैठना और ढेर सारी बातें करने की चाहत हैं | अपनी हर बात तुमसे कहने की जिद हैं ,बस मुझे एक अदद सुनने वाला चाहिए। ..बेरोक टोक| शायद तुम समझ सको। तो मुझे आज के लिए माफ़ कर देना |"इतना कहकर वो चली गई | "

नीला की बाते जैसे उसके दिमाग मे अलग अलग तस्वीरों के साथ चल रही थी। उसे भी कहाँ बेकार की बाते सुनने की आदत थीं। पर वो बस कैफे में बैठ कर नीला की बड़ बड़ सुन लेता। कई बार तो उसे खीझ होती कि यही आदत निशा को थी। वो भी जब तब रिश्तेदारों के रोना धोना लेकर बैठ जाती थी। इसलिए वो कटा कटा से रहता या उसकी बातें सुनते हुए भी न सुनता। वो एक पेड़ या मूर्ति की तरह बन जाता कि दो मिनट बोल कर अपने आप चुप कर जाएगी, उसे तो एक अदद प्रेमिका चाहिए थी,जो वो हमेशा से अपनी पत्नी में ढूंढता रहा हैं। वो निशा के साथ हाथों में हाथ डाले पहले जैसे प्रेमी जोड़े की तरह घूमना चाहता है ,पर न जाने अब निशा वैसी क्यो नही रही। पूरी घरेलू औरत बन गई है।

शायद हर औरत ऐसे ही बिहेव करती है। नीला ने भी तो मर्दों के बारे में यही कहा था।"तुम मुझे अच्छे लगते हो पर हो तो तुम भी मर्द,सब एक जैसे ही होते है। लव चाहिए लेकिन लस्ट के साथ।"

उसने नीला की फोटो को वापिस बटुए में डाल दिया और निशा की फोटो बटुए में न मिल पाने के कारण अपना हाथ गूंजती ताड़ियों में झट से नीचे खींच लिया। वो उठा और वाशरूम के बहाने बाहर निकल गयाा।


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