हर बार पुरुष ही गलत नहीं होता
हर बार पुरुष ही गलत नहीं होता
मैने गाड़ी पार्क करी और डोर बेल बजाने लगा। बहुत देर तक कोशिश करी पर गेट नहीं खुला। फिर मैंने अपने पापा को कॉल किया तो उन्होंने फोन भी नहीं उठाया। मैंने फिर घड़ी देखी तो पौने बारह बजे थे। सोचने लगा आज पापा बड़े जल्दी सो गए। फिर डुप्लिकेट चाबी से मैंने ताला खोला। देखा तो अंदर पूरे घर की लाइट बंद थी। फिर मैंने सबसे पहले लाइट चालू की। पर ये क्या लाइट का उजाला तो हुआ पर मेरे जीवन में जैसे अंधेरा हो गया था। मेरे पापा नहीं रहे थे। पहले मुझे लगा कि बेहोश है। जोर जोर से पुकारा, ‘पापा पापा...’ पानी भी छिड़का मुह पर... तभी भी ना उठे... नब्ज देखी तो समझ आया के पापा नहीं रहे.! समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं...? पहले माँ आज पापा मैं तो जैसे बिल्कुल अकेला पड़ गया था... पिछले चार साल में दूसरी मौत देखी घर में...! चार साल पहले माँ ब्रेस्ट कैंसर के कारण गुजर गयी थी... आज पापा भी... कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ ये सब...? सुबह जब निकला तब तो पापा अच्छे थे... ‘पापा उठो ना देखो आपके लिए जलेबी लाया हूँ...’ पापा के होंठ नीले हो रहे थे... पर मैं ध्यान ना दे पाया... फिर मैंने अपने दोस्त मिहिर को फोन किया वो पास ही रहता था...
”हैलो मिहिर...”
”हां, साहिल बोल...”
मैंने कहा, “तू मेरे घर आ फटाफट...” मिहिर दौड़ता हुआ पांच मिनट में ही आ गया। “बोला क्या हुआ और ये अंकल को क्या हुआ है...?” हम तुरंत पापा को लेकर डॉक्टर के पास गए। तो वहा डॉक्टर ने कहा कि, “उनकी मौत लगभग 12 घंटे पहले हो चुकी थी...”
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर डॉक्टर बोले, “उनके होंठ नीले रंग के हो रहे हैं तो खून की जांच करनी पड़ेगी...” उसमे पता लगा उनकी मौत जहर खाने से हुई है...!
मैंने डॉक्टर को कहा, “ऐसा नहीं हो सकता। मेरे पापा तो बहुत खुश रहते थे। सुबह उन्होंने मुझे रात में जलेबी लाने को कहा वो जहर क्यूं खाएँगे भला...?”
अब हम पापा को लेकर घर आ गए थे। रात के 3 बज रहे थे। समझ नहीं पा रहा था कि पापा ने ऐसा क्यूं किया होगा...? क्या परेशानी थी उन्हें, कौनसी चिंता सता रही थी...? पापा का सर सहलाते सहलाते सुबह के 6 बज गए। सारे रिश्तेदार आ चुके थे। पापा को ऐसे जाने देने का मन ना था। क्या हो गया ये सब पहले मम्मी अब पापा। मैं तो बिखर गया था। उनकी अंतिम क्रिया कर के लौटते वक्त यही सवाल था, क्यूं किया ऐसा पापा ने...? बारवे तक सब रुके हुए रिश्तेदार भी अपने अपने घर चले गए। अब बस खाली घर और मैं।
ना ना घर कहा मकान! घर तो परिवार से बनता है जो कि अब मेरा रहा नहीं...! सोचते सोचते ही सो गया। अगले दिन उठा तो रसोई से आवाज आ रही थी, मै कमरे में से ही बोला, “सावित्री आई आ गयी आप गांव से...?” (सावित्री आई तकरीबन ग्यारह साल से हमारे घर झाडू पोंछा बर्तन करती थी और पिछले छह साल से तो खाना भी वही बना रही थी जब से माँ को कैंसर हुआ था)
तो बोली, “हां साहिल कल ही आई मैं और बाजू के घर से मालूम लगा कि साहब गुजर गए...! पर साहिल जिस दिन साहब गुजरे उस दिन सुबह तक तो अच्छे थे साहब अचानक फिर क्या हुआ...?” मेरे दिमाग में फिर वही बात की पापा ने ऐसा क्यूं किया होगा... अब तक ये बात मैंने किसी को नहीं कही थी सिर्फ मिहिर और मैं ही जानते थे इस बात को...! पर पता नहीं क्यू ऐसा लगा सावित्री आई मेरी आई जैसी ही है...! मैं ऑफिस जाता था वो ज्यादा समय घर पे रहती थी। उन्हें पता हो पापा को किसका फोन आता था, उनसे कौन कौन मिलने आता था, कुछ पता चले इससे मुझे!
तो मैंने सावित्री आई को सब बताया। आँख में आँसू थे सावित्री आई के...! फिर बोली, साहिल बाबा मैं कभी इस घर की बात बाहर बाहर की बात इस घर नहीं करती... पर आज ऐसा लग रहा है कि शायद मेरे कुछ कहने से तुम्हारे मन की गुत्थी सुलझ जाए... तुम्हारा वो दोस्त हैं ना मिहिर जो चार मकान छोड़ के रहता है उसकी माँ किरण दीदी (जो कि मेरी माँ की नर्स भी थी) वो रोजाना मेरे यहाँ काम करने के बाद आती थी... कभी मैं लेट हो जाती पर किरण दीदी अपने समय की बिल्कुल पाबंद थी... वो रोजाना पापा को माइग्रेन की थेरेपी कराने आती थी यह मुझे भी पता था, पर पापा के गुजरने के चार दिन पहले से वो नहीं आई थी...! ये बात मुझे नहीं मालूम थी पापा ने, ना ही मिहिर ने बताई। समझ नहीं आया कि क्या करूँ? फिर मैंने सोचा क्यूं ना पुलिस कंप्लेंट कर दूँ। शक तो मुझे हो ही चुका था की पापा की मौत का कारण कही ना कही किरण आंटी से जुड़ा है...! पर मैं डरता था कि बदनामी पापा की होगी... मेरे दादाजी के नाम की होगी... की मेरे पापा कायर निकले उन्होने आत्महत्या कर ली जीवन से हार के...!
बहुत सोचा कैसे सच सामने आए मेरे? तो मैंने एक प्लान बनाया। मैंने दो दिन की छुट्टी ली ऑफिस से। पहले दिन मिहिर के घर पूरा ध्यान रखा कि मिहिर के घर कौन कितने बजे आता है। वहां से कौन कितने बजे जाता है। तो पता लगा दोपहर 2-5 किरण आंटी अकेली होती है घर पर। अगले दिन ठीक 3 बजे मैं मिहिर के घर गया और कहा कि, मिहिर को पुलिस ले गयी है उसके ऑफिस से मेरे पापा के बारे में कुछ पूछताछ करने.! बस किरण आंटी बौखला सी गयी।
“सब मेरी गलती है मुझे उसे नहीं उकसाना था।”
मैंने कहा, “क्या हुआ आंटी..?”
बोली, “कुछ नहीं मुझे मिहिर के पास जाना है..!”
मैंने कहा, “इतनी जल्दी क्या है..? ये तो बता दो की मिहिर ने किया क्या है..? या मै पुलिस को बुला दूं और कह दूँ की मिहिर ने सच में कुछ किया है या आपने कुछ किया है..?”
तो किरण आंटी ने मुझे एक तमाचा जड़ दिया..! की, “क्या तुम पागल हो जो ऐसे बेहूदा मजाक करते हो..? पता है तुम मिहिर के बहुत अच्छे दोस्त हो इसका मतलब यह नहीं के कुछ भी कहोगे.!”
मैंने भी किरण आंटी का हाथ पकड़ा और कहा, “सच बोलो आपका और आपके बेटे का मेरे पापा की मौत से क्या ताल्लुक है...?”
बोली, “मुझे क्या पता उन्होंने आत्महत्या क्यूं की..? या क्यूं किसी ने उन्हे जहरीला कुछ खिलाया है..!”
बस फिर क्या था मैं जोर से चिल्लाया और किरण आंटी ने कबूला की मिहिर ने मेरे पापा के खाने में जहर डाल दिया था.! मैंने कहा, “पर क्यूं..? क्या कुसूर था उनका..?”
तो कहने लगी, “उनका कुसूर था कि उन्होंने मुझे इतनी संपत्ति गहने में से कुछ भी देना ना चाहा... इतने साल तुम्हारी माँ की सेवा की मैंने। क्या मिला मुझे नर्स की तनख़्वाह से एक घर भी ना बना सकीं.!”
”नहीं आंटी जितना मैं मिहिर को जानता हूॅं उसने कभी पैसों को अहमियत नहीं दी।”
फिर मैंने कहा, “ठीक है मैं पुलिस को बता देता हूँ कि मेरे पापा का कातिल है मिहिर!”
तो बोली, “रुको, सुनो पूरी बात... हुआ ये कि रोज की तरह तुम्हारे पापा की थेरेपी पूरी करा के आ रही थी, तो आते आते मैंने कहा कि मैंने साहिल की माँ की इतनी सेवा करी तो मुझे कुछ तो इनाम मिलना चाहिए। मुझे कुछ पैसे दे दीजिए तो कही घर खरीदने में सहयोग होगा। तो उन्होंने मुझे 50000 रुपये दिए.! मैने कहा इससे क्या होगा कम से कम 500000 का इनाम तो दो। कहने लगे अपनी औकात में रहूँ मैं.! सब उन्होनें तुम्हारे लिए जोड़े है अगर 20 करोड़ की संपत्ति में से 5 लाख मुझे दे देते तो क्या हो जाता..? इतने में नीचे से मिहिर की आवाज आई, ‘माँ..माँ’ बस मुझे कुछ समझ नहीं आया गुस्से में मैंने अपने कपड़े खुद ही फाड लिए और जोर जोर से चिल्लाने लगी, ‘बचाओ बचाओ... साहिल के पापा छोड़ दो मुझे...’ तुम्हारे पापा बोले भी, ‘किरण ये क्या कर रही हो..?’ इतने में मिहिर ऊपर आ गया बोला, ‘मम्मी क्या हुआ.?’ मैंने कहा, ‘इन्होंने मेरे साथ...’ बस इतना कहा कि मिहिर तुम्हारे पापा को मारने लगा। मैंने कहा, ‘मिहिर बेटा अभी घर चल... मेरी ही बदनामी होगी अभी तू चल यहां से...’ तब तो हम घर आ गए। फिर रोज मिहिर कहता चल माँ पुलिस स्टेशन, रिपोर्ट करने। मैं रोज उसे टाल देती। फिर जिस दिन सावित्री गांव जाने वाली थी उस दिन मैंने मिहिर को कहा, ‘अगर हम रिपोर्ट करेंगे तो मेरी कितनी बदनामी होगी जिस आदमी ने ऐसा किया है उसे जीने का कोई हक़ नहीं है’ और मैंने मिहिर को और भड़काया.. मिहिर बाज़ार से जहर लाया और तुम्हारे पापा को देने जा रहा था कि मैंने उसे साथ चलने को कहा तभी मिहिर ने नीचे से तुम्हारे पापा को आवाज लगाई। मैं चुपके से ऊपर तुम्हारे पापा के कमरे में जा चुकी थी और मिहिर तुम्हारे पापा से माफी मांगने लगा। मिहिर को लगा मैं डर के मारे घर चली गयी। वो पानी पीने के बहाने से तुम्हारे रसोईघर में गया और उसने खाने में जहर मिला दिया और जब तक तुम्हारे पापा खाना खा रहे थे मैंने पूरे गहने और नगद पैसे बटोर लिए और चुपके से घर आ गयी। उसके बाद सब तुम्हें पता है।”
मैंने कहा, “आप ऐसा कैसे कर सकती हो..? जिस घर का नमक खाया वहीं आपने नमक हलाली करी..!” मैं और कुछ कहता उससे पहले मिहिर ने आ कर अपनी माँ को एक तमाचा जड़ दिया की तुम जैसी गंदी औरतों कि वजह से कई बार निर्दोष पुरुष भी दोषी करार हो जाते है, जैसे साहिल के पापा मेरी नजर में हुए। मिहिर हमारी पूरी बात सुन चुका था। अपना मोबाइल आज घर भूल गया था वही लेने आया था। “माँ मैं तो तुम्हारी ममता में अंधा था पर तुम तो पैसों की भूखी निकली कल को कोई 1000000 दे तो मुझे भी जहर दिलवा देने! खैर मैंने अपने भाई जैसे दोस्त को दगा दिया। एक देव पुरुष की हत्या की मुझे तो जेल जाना ही चाहिये.!”
पर मैंने कहा, “मिहिर कुसूर तुम्हारा नहीं कुसूर तुम्हारी माँ का है सजा इन्हें मिलनी चाहिए...”
तो मिहिर रोने लगा कि, “नहीं मेरे भाई ये केस पुलिस में गया तो लोगों का माँ शब्द से, ममता से, औरत से, उसकी पवित्रता से विश्वास उठ जाएगा..!”
तो मिहिर की बात समझते हुए मैंने कोई कंप्लेंट ना कि। पर मिहिर अपनी माँ को छोड़ चुका था.! मिहिर की माँ का सच तो सामने आया, पर सोचने की बात ये है कि ना जाने ऐसी कितनी और किरण आंटी हमारे समाज में है जिनके कारण मेरे पिता जैसे निर्दोष या तो कानून से सजा पाते है, या आत्महत्या कर लेते है, या फिर मिहिर जैसे बेटे, पति, भाई या पिता के क्रोध का शिकार हो जाते है...!