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वडवानल - 2

वडवानल - 2

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जहाज़ पर उन्हें तीन पंक्तियों में खड़ा किया गया। उनके साथ आए हुए पेट्टी अफसर ने उन्हें जहाज़ के पेट्टी अफसर के हवाले किया। हाथ की छड़ी मार–मारकर  हरेक  की  नाप  ली  गई।  गुरु  के  मन  में  सन्देह  उठा,  ‘‘हम  सैनिक हैं कैदी नहीं।

"Keep your kit bag here, go for a grab, you hungry dogs!" जहाज वाला अफसर चिल्लाया। किट बैग वहाँ रखना है, यह बात तो समझ में आ गई, मगर कहाँ और किसलिए जाना है ये कोई भी समझ नहीं पाया। सभी एक–दूसरे का मुँह देखने लगे।  यह  देखकर  पेट्टी  अफसर  फिर  से  गरजा -"You bloody pigs, go and eat!" ....’

खाने का नाम सुनते ही पेट में कौए काँव–काँव करने लगे। वे खाने की मेज की ओर भागे।

उस विशाल मेज के एक किनारे पर सिल्वर के बड़े भगोने में चने की दाल थी और एक टोकरी में सूखे हुए पाव के टुकड़े थे। दाल पर जो लाल–लाल तेल तैर रहा था उसकी तेज गन्ध आँखो  में पानी ला रही थी।

उन्होंने   अपनी   प्लेट   में   दाल   डाली।   दाल   में   डुबाकर   पाव   के   टुकड़े का   पहला ग्रास मुँह में जाते ही मानो आग लग गई, जबान जल गई, माँ की याद आ गई और   आँखों   में   पानी   आ   गया।

जल्दबाजी   में   ट्रेनिंग   पूरी   करके   गुरु   और   उसके   बैच   के   सैनिक   बाहर   निकले। अब वाकई में एक नये, साहसपूर्ण जीवन का आरम्भ होने वाला था। पूरी दुनिया में घूमने का मौका मिलने वाला था। नीले–नीले समुद्र का आह्वान स्वीकार करने वाले  थे  वे।  गुरु  के  मन  के  किसी  कोने  में  छिपा  हुआ  सिंदबाद  अपनी  सफेद दाढ़ी  सहलाते  हुए  कह  रहा  था - आगे   बढ़ो!   अब   अपने   कर्तृत्व   को असीम सागर की तरह फैलने दो। आने वाले तूफानों से घबराना नहीं, मैं तुम्हारे पीछे  हूँ!’’

गुरु, दास तथा अन्य सात–आठ लोगों को क्लाईव नामक माईन स्वीपर  पर  जाना  था। हिन्दुस्तान  में  अंग्रेजों  की  सत्ता  स्थिर  करने  में  महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले गवर्नर के सम्मान में इस जहाज़ को ‘क्लाईव’ का नाम दिया गया था और इसे हिन्दुस्तान के सागर तट की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। क्लाईव वैसे कोई बड़ा जहाज़ नहीं। उसका वजन चार हजार  टन,  लम्बाई तीन सौ फुट; चार विमानरोधी तोपें उस पर तैनात थीं, जो उसकी सुरक्षा करती थीं। शत्रु द्वारा पानी में बिछाई गई जल–सुरंगें ढूँढ़कर उन्हें बेकार कर देना और पानी में सुरंगें बिछाना ‘क्लाईव’ का प्रमुख कार्य था। साथ ही अन्य जहाजों के समान   गश्त   भी   लगानी   पड़ती   थी।

क्लाईव  पर  प्रवेश  करने  से  पूर्व  रात  को  गुरु  धर्मवीर  से  कह  रहा  था,  ‘‘अब हम लोग सैनिक हो गए हैं। प्रशिक्षण काल की दौड़धूप समाप्त हो जाएगी। जहाज़ पर जीवन अधिक सुखमय होगा। अधिक सुविधाएँ प्राप्त    होंगी,    खाना    अच्छा    होगा। गोरे   अफसरों   का   व्यवहार   भी   सुहृदयतापूर्ण   होगा।"

धर्मवीर ने हँसकर जवाब दिया, ‘‘गलतफहमी में न रहना! परसों ही मेरे गाँव का रामपाल मिला था। वह क्लाईव पर था ना! वह बता रहा था कि जहाज़ पर भी आराम की जिन्दगी नहीं है, वहाँ भी काले–गोरे का भेदभाव है। वहाँ भी गोरों  को  जो  सिगरेट  का  पैकेट  पाँच  आने  में  मिलता  है,  उसके  लिए  हमें  दस आने देने पड़ते हैं। मक्खन, चीज, फलों के डिब्बे आदि चीजें गोरे पार कर लेते हैं। हमारे हिस्से में ये सब आता ही नहीं है।’’

‘क्लाईव’ पर पहुँचने के बाद गुरु को धर्मवीर की बात सच प्रतीत हुई। ‘क्लाईव’  पर  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  की  मेस - उनके  निवास  की  जगह - डेक  की  बेस पर बने इंजनरूम के ऊपर बोट्स वाइन स्टोर से लगी हुई थी। इंजिन के शोर से  कानों  के  परदे  फट  जाते  और  सिर  दर्द  करने  लगता।  स्टोर  से  सटे  होने  के कारण   सड़ी   हुई   बदबू   से   जी   हमेशा   मिचलाता   रहता। सेलिंग के  वक्त  इस  सड़ी  हुई  बदबू  में  उल्टियों  की  बू  भी  शामिल  हो  जाती। Upper deck is out of bound for the natives (ऊपरी डेक देसियों  के  लिए  प्रतिबन्धित  है).

जहाज़  में  प्रवेश  करते  ही  एक  गोरे  लीडिंग  सीमेन  ने  सूचना  दी,  ‘‘यदि  तुममें से एक भी सैनिक अपर डेक पर दिखाई दिया तो कड़ी सजा दी जाएगी।’’ उसकी आवाज़ में हेकड़ी थी।

उस  दिन  मेस  में  लगा  हुआ  शुद्ध  हवा  का  ब्लोअर  बन्द  था।  दोपहर से मेस में बैठे मिश्रा को यूँ लग रहा था जैसे प्रेशर कुकर में बैठा हो। ऊपरी डेक पर जाकर ताज़ा हवा खाने की इच्छा अनिवार हो गई। उसे बेचैन देखकर एक पुराने  ‘हो  चुके’  लीडिंग  सीमेन  ने  सलाह  दी,  ‘‘अरे,  थोड़ी  देर  ऊपरी  डेक  पर  ताजा हवा   में   साँस   ले   अच्छा   लगेगा।’’

‘‘मगर  अपर  डेक  तो आउट ऑफ बाउंंड है ना ?’’

''F**** it यार, हम जाकर बैठेंगे। अगर कोई कुछ कहेगा तो दयनीय चेहरा बनाकर  माफी  माँग  लेंगे।  नीचे  आयेंगे  और  थोड़ी  देर  बाद  फिर  नजर  बचाकर वापस   ऊपर   जाएँगे।’’

बेचैन मिश्रा हिम्मत करके अपर डेक पर गया। एक कोने में सबकी नज़र बचाते   हुए   बैठा   रहा।   खुली   हवा   में   उसे   थोड़ा   ठीक   लगा'' एक गोरा चीफ मिश्रा पर चिल्लाया, "Hey, you! Don't you know that upper deck is out of bound for natives?"

‘मेस में बहुत गर्मी हो रही है और आज तो ब्लोअर भी बन्द ...’’ घबराए हुए   मिश्रा   ने   जवाब दिया।

‘बकवास बन्द ! Go to your mess...’’

‘‘Please, Chief...’''

‘‘अरे,   इतनी   गर्मी   लग   रही   है   तो   पानी   में   कूद   जा,   ठण्डा–ठण्डा   है।’’ दूर खड़ा होकर सुन रहा दूसरा गोरा चीफ़ पेट्टी अफसर मिश्रा को सलाह देने   लगा।

‘‘देखो, अगर तेरी हिम्मत नहीं हो रही हो, तो मैं फेंकता हूँ तुझे पानी में। सारी गर्मी ख़त्म हो जाएगी। हमेशा के लिए ठण्डे हो जाओगे। ठीक है ना, चीफ रॉड्रिक ?’’

‘‘क्या बात है चीफ़, किसे पानी में फेंकने वाले हैं ?’’ जहाज़ पर हाल ही में आए ले. नाईट ने पूछा।

 ‘इस   हिन्दुस्तानी   खलासी   को,   सर,   इसे   कब   से   कह   रहे   हैं   कि   ये   डेक   तुम्हारे लिए  नहीं  है,  मगर  ये  सुनता  ही  नहीं,’’  चीफ  रॉड्रिक ने शिकायत  के  सुर  में कह रहा   था।

‘‘इसलिए   तुम   इसे   पानी   में   फेंकोगे ?’’

‘‘हम  सचमुच  थोड़े  ही  उसे  पानी  में  फेंकने  वाले  थे,  और  मान  लीजिए अगर  फेंक  भी  दें  तो  क्या  बिगड़ने  वाला  है ?  पाँच  रुपये  फेंको  तो  नया  रंगरूट मिल   जाएगा, इससे   तगड़ा।’’   रॉड्रिक   ने   जवाब   दिया।

‘‘बेवकूफ की तरह बकबक मत करो, वह भी तुम्हारे ही जैसा इन्सान है, खुली   हवा   की   जरूरत होगी, इसलिए   ऊपर   आया   होगा।’’

रॉयल  इण्डियन  नेवी  में  उँगलियों  पर  गिने  जाने  वाले  अफसरों  में,  जिन्हें हिन्दुस्तानी   सैनिकों   के   प्रति   सहानुभूति   थी,   उन्हीं   में   से   एक   ले.  नाईट   थे।

‘‘मगर  सर  ये  डेक  हिन्दुस्तानी–––’’

'आल राइट तुम जाओ मैं देख लूंगा।" ले. नाईट    ने    मिश्रा    को    अपने    निकट    बुलाया    और    समझाते    हुए    बोला, ''Look my dear, हम   सैनिक   हैं।   सीनियर्स   की   आज्ञा   का,   बिना   सवाल   पूछे,   पालन   करना हमारा   कर्तव्य   है।’’

‘‘मगर सर, मेस में बहुत ज्यादा गर्मी हो रही है। इसके अलावा ब्लोअर भी बन्द है। मुझे बस और पाँच मिनट...’’ मिश्रा विनती करते हुए कह रहा था

‘‘ठीक  है।  नाम  क्या  है  तुम्हारा ?’’  अगले  पाँच–दस  मिनट  वह  मिश्रा  के बारे  में  पूछताछ  करता  रहा।  कैप्टेन  के  हुक्म  का  उल्लंघन  न  करते  हुए  उसने  मिश्रा को   डेक   पर   रहने   दिया।


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