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क्यों ?

क्यों ?

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आज जब इस काल कोठरी में बैठा-बैठा सोचता हूं तो सोचता ही रह जाता हूं - यह मैं क्या करने जा रहा था, उनके बारे में एक बार भी नहीं सोचा जिन्होने मुझे यह जिन्दगी दी, पाला-पोसा, बड़ा किया, यहां तक कि अपनी जिन्दगी के बारे में भी नहीं सोचा, बस चल दिया एक घनी काली खोह की तरफ ! कैसा जुनून भर दिया था मेरे ज़ेहन में इस तथ्य को तो मैं आज तक समझ ही नहीं पाया ! हम पांच दोस्तों ने स्कूल से जूनियर काॅलेज तक का सफर एक साथ तय किया था एक-दूसरे के भले-बुरे को अच्छी तरह जानते समझते थे ! हम पांचों के अलग-अलग सपने थे, मैं इंजीनियरिंग करना चाहता था, रेहान सीएस, ऋषभ प्रोफेसर,कमल और हसन डाॅक्टर बनना चाहते थे लेकिन सबके सपने पूरे होने से पहले ही धाराशाई हो गये, अपनी पढ़ाई, अपना केरियर सब ताक पर रख दिया, चढ़ गये आतंकियों के हथ्थे जिन्होंने वो सब्जबाग दिखाए कि बाकी कुछ भी नज़र ही नहीं आ रहा था और न ही कुछ सुनाई दे रहा था अगर कुछ दिखता था तो केवल वे और सुनाई भी कुछ दे रहा था उनकी आवाज और उनके मीठे, ओजभरे भाषण जिनमें उन्होंने अपने नजरिए को, अपने विचारों को कूट-कूट कर भरा था, इस तरह देखा जाय तो उन लोगो ने खुद को हमारे भीतर पूरी तरह से भर दिया था, अपने उन बोलों के जरिए अब वे ही वे थे हमारे भीतर - बाहर, उनके वचार, उनकी सोच, उनकी कल्पना सबकुछ हमारे भीतर उतर गया था। 

मुझे अच्छी तरह से याद है बारहवीं की परीक्षा के बाद हम पांचों दोस्त पूर्व-निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार कश्मीर चल दिये ! वहां हमारी मुलाकात रमजान भाई से हुई जिनके शिकारे में ठहरे थे, वे स्वभाव के बहुत अच्छे थे, अपने बच्चों की तरह हमारा ख्याल रखते, उनकी पत्नी भी उतनी ही ममतामयी थी, उन्हें हम चच्चीजान कहते थे ! उनके घर कई लोग आते थे जिनमें पंडित मुरलीधर शर्मा और गफार खां खास थे, उनका आना हर रोज तय था जैसे उनके बड़े ही अपने और फॅमली मेंबर हो ! ये दोनों भी हमसे उतना ही स्नेह रखते थे मानों हम इनके बहुत ही खास हैं, ये लोग हमें भी निहायत ही अपने करीबी लगते थे ! इनकी बातों का असर हम पर जादू की तरह होता था ! मौजूदा हालात और सिस्टम को लेकर बेहद नाराज़ थे, अंग्रेजों के वक्त की गुलामी से भी बदतर है आज की गुलामी ! इस गुलामी से आजादी दिलाने में तुम जैसे जोशिले और जांबाज़ नौजवानों की जरूरत है इस देश को ! मेरे बच्चों हमें इन आस्तीन के सांपों से लड़ना है, तुम्हें भगतसिंह बनना है, अपना बलिदान देना है यही आज के समय की मांग है, देश की पुकार है मेरे बच्चों क्या तुम हमारा साथ दोगे ? देश के नाम पर, इंसानियत के नाम पर जाने क्या - क्या कहते, कैसे-कैसे भाषण देते कि सीधे दिल में उतरते, दिमाग पर असर करते ! हम तो मंत्रमुग्ध थे, हमारे दिलो-दिमाग इनकी जकड़ में जकड़ते गये ऐसा जुनून भरता गया कि खुद को हम भगतसिंह समझने लगे, बार बार दिल में आवाज़ उठती - दिल शहादत चाहता है हम अपना नाम, घर, गांव, शहर, सबकुछ भूल चुके थे याद थी सिर्फ इनकी बातें और भगतसिंह ! हमारे इसी जज्बे ने हमें बलि का बकरा बनाया दिया और बन गये मानवबम !

कमल, हसन, श्रृषभ इन तीनों के उस जज्बे पर पचरखे उड़ गये साथ में कइयों को उड़ा ले गये ! मैं और रेहान पकड़े गये,, अपने तीन दोस्तों की वो गति देखकर हिम्मत लड़खड़ा गई बल्कि जवाब दे गई, आजादी का वो जज्बा, वो भगतसिंह और वो जुनून वगैरह जाने कहां हवा हो गये अब तो केवल डर ही डर था हमारे भीतर - बाहर, हमने सारी सच्चाई बयान कर दी जो अब तक किसी ने की नहीं थी, की होती तो शायद हम बच जाते, मेरे तीन दोस्तों को जान न गंवानी पड़ती ! रमजान भाई, गफार खां, मुरलीधर शर्मा और उनके अन्य साथी भी पकड़े गये, हमें तीन - तीन साल की सजा मिली हमारी उम्र देखते हुए सुधार घर भेजा गया ! ऊपर वाले का और देश के कानून का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने हमें जिन्दगी दी, नया जन्म दिया,,,, इस कैद में हम खुद को कितना महफूज महसूस करते हैं, काश, इन्सान की खाल में छुपे भेड़ियों व जल्लादों को पहचान पाते ! काश, कुछ समझते तो अपने दोस्तों को खोना न पड़ता, किसी के भी सपने न टूटते, हमारे माता-पिता की उम्मीद न टूटती ! कमल, हसन और ऋषभ के माता-पिता को अपनी औलाद से ही हाथ न धोना पड़ता काश,,, !

आज मुझे बार बार ये ख्याल आ रहा है, हम नौजवान ये क्यों नहीं सोचते-समझते इस तथ्य को - अगर ये देश के लिए कुछ करना है वो भी बलिदान तो खुद ही क्यों नहीं बन जाते " बम " ! देश के नौजवानों को, मासूम जनता को क्यों बनाते हैं बलि का बकरा, क्या मिलता है इनको ये सब करके, क्यों करते हैं ? क्यों, क्यों ?  


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