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चितकबरा

चितकबरा

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बात उन दिनों की है, जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था। हमारे यहाँ बचपन से एक लड़का रहता था।

तीन साल का था जब एक्सिडेंट में उसके माँ-बाप गुज़र गये। उस अनाथ को दादा जी ही लेकर आए थे। उसे पढ़ाना चाहा पर उसका मन न लगा, बड़ा खुद्दार था और उसने सब की सेवा का प्रण ले लिया।

नाम था मुरारी, बड़ा ही सेवादार था। सबके कपड़े प्रेस, जूते पोलिश, बाज़ार के काम, पानी का ध्यान रखना आदि-आदि। घर के सब लोग उससे खुश रहते थे। इधर मुंह से बात निकली नहीं कि काम पूरा हो जाता था। रोज़ सबका ध्यान रखते-रखते उसे सब की ज़रूरतों का पता चल गया था।

पन्द्रह साल का हुआ तो मुरारी को त्वचा की बीमारी हो गई, जिसमें पूरे शरीर पर सफेद दाग हो जाते हैं। डाक्टर ने कहा कि ये देखने में अलग लगेगा, किन्तु कोई घबराने की बात नहीं सिर्फ इस बात का ध्यान रखिये कि इसे खुद से और आप लोगों को इससे घृणा न हो, बालक मन है बुरा असर पड़ेगा। बाकी मैं दवाइयाँ दूँगा, जिससे ये बीमारी और फैलेगी नहीं, बल्कि वहीं की वहीं रुक जाएगी।

घर आकर सब ने चैन की सांस ली और सब वैसे का वैसा ही चलता रहा। घर के सब काम वह पहले की ही तरह करता था। घर के किसी सदस्य को उससे किसी भी तरह की कोई बेरुखी, कोई परहेज न था सब उसे पहले से और ज्यादा प्यार करने और चाहने लगे थे।

किन्तु हमारे ताउजी के व्यवहार में उसके प्रति परिवर्तन आ गया। उसे चितकबरा- चितकबरा कह कर बुलाते थे और छोटे से छोटे काम के लिए डांट-फटकार लगाते। वह बुरा न मानता था।

घर के हर सदस्य ने उन्हें समझाया की ये तो किसी के साथ भी हो सकता है पर उन्हें समझ न आया। आखिर सब ने कहना छोड़ दिया।

ताउजी मंगलवार को आरती अवश्य करते थे। वे पिताजी को डांटने लगे की बिना आरती का आला साफ़ किये हुए ही दीपक जला दिया और वे जलते हुए दीपक को बुझाए बगैर ही पीछे स्टूल पर रखकर आला साफ़ करने में मग्न हो गये जाने कब उनकी धोती ने दीपक के सम्पर्क में आकर आग पकड़ ली फिर कुरते ने ताउजी जलन से चिल्लाने लगे। जब तक सबका ध्यान जाता वे बुरी तरह झुलस चुके थे। मुरारी ने अपनी जान पर खेल कर उनको बचाया। पहले उन्हें जमीन पर लिटाया और फिर उनके उपर गीला कम्बल डाला।

जल्दी से उन्हें हॉस्पिटल ले गये। डाक्टर ने कहा की ये साठ प्रतिशत झुलस गये हैं। बच तो जायेंगे किन्तु इनकी त्वचा फिर वैसी न होगी।

आज ताउजी वैसे तो ठीक हैं पर अब उन्हें मुरारी से विशेष लगाव हो गया था क्योंकि अब वे समझ गए थे कि ईश्वर ने मुझे किस चीज की सजा दी है। प्यार मनुष्य की अच्छाई से होता है उसके रूप से नहीं।


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