डरावनी रात
डरावनी रात
सर्दी की उस रात भी मेरे माथे पर पसीने की बूँदें बरस रही थी। नहीं! वह पसीना गर्मी की वजह से नहीं बल्कि डर की वजह से था। मेरा नाम साक्षी है, १५ जनवरी २००७, मैं केवल 14 वर्ष की थी जब मेरे माता-पिता कुछ जरूरी काम से बाहर थे और हमारे लिए (मैं, मेरे बड़े और छोटे भाई) एक वफादार व्यक्ति छोड़कर गए थे ताकि वो हमारी देखभाल कर सकें।
उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि वो एक चोर को अपने कीमती सामान की रक्षा करने के लिए कह रहे थे। उनके जाने के पहले दिन ही उसने अपना रंग दिखा दिया।
उस रात ज्यादा ही अंधेरा था और उस व्यक्ति ने जानबूझकर सभी कमरों की रोशनी बंद कर दी। मुझे पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है ? मेरी तरफ एक हाथ आ रहा है, कौन है, और वह क्या कर रहा है ? (वह मेरे लिए सभी डरावनी कहानियों से ज्यादा ही डरावनी रात थी क्योंकि वह पल किसी भी भूत से कहीं ज्यादा भयानक था।)
मैं धराशायी होकर कुछ समय तक सुध-बुध खोए पूरी रात सोचती रही कि वह कौन था? इसी बीच मेरी कुतिया (रूबी) आई और दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने कुछ गंध ली (यह पता लगाने के लिए कि वह कौन था ?) शायद उसे भी भी किसी वारदात का एहसास हो गया था।
बाहर बहुत ठंड थी, मैंने सोचा कि उसे ठंड लग सकती है इसलिए मैंने उसे अपनी बाँहों में ले लिया और फिर फूट-फूटकर रोना शुरू कर दिया।
वह विनम्रता से मेरी गोद में बैठी थी और मेरी आँखों में देख रही थी। हम दोनों उस रात सो नहीं सके और रात भर हमने वाशरूम में बिताया।
कुल तीन दिन तक हर रात हम वाशरूम में बंद रहे क्योंकि यह सबसे सुरक्षित जगह थी। अगली रात जब वह आया, दरवाजा खटखटाया और उसे खोलने की कोशिश की तो मैं बहुत डरी हुई थी लेकिन जब रूबी ने भौंकना शुरू किया तो वह चिल्लाया और वहाँ से वापस चला गया। आखिरी और 5 वें दिन जब मैंने अपनी उम्मीद खो दी और मुझे यह डर भी था कि मेरे भाइयों को पता चल जाएगा तो क्या होगा ? कुल 4 दिनों तक यही चलता रहा और पाँचवें दिन मैंने कुछ साहस इकट्ठा किया और कहा, "नहीं, ऐसा मत करो।
उन्होंने पूछा, "क्या कहा? "
और कहा, "बस, आज और आखिरी बार।"
कमरे की रोशनी चालू थी इसलिए मुझमें अधिक आत्मविश्वास हुआ। मैंने अपने बड़े भाई को देखा लेकिन बाद में एहसास हुआ कि यह और भी बदतर हो सकता है इसलिए मैंने भाई को आवाज देना जरूरी नहीं समझा और फिर उसे लात मार दी।
अगली सुबह मेरे लिए एक सुकून वाली सुबह थी क्योंकि मेरी माँ वापस आ गईं थी और वह मुझे संभालने के लिए वह काफी थी।
अगली सुबह हम (मैं और रूबी) वाशरूम से बाहर आए तो मेरी माँ मुझ पर हँसने लगी। उन्हें लगा शायद फिर मैंने कोई डरावनी मूवी देखी है और खुद को बंद कर रखा है।
उस रात मैंने अपनी मां को रात में अपने कमरे में ही रहने के लिए कहा।
वो मुझसे पूछती रही कि कुछ हुआ था, "मैंने कहा नहीं, कुछ भी नहीं हुआ।"
मैं उन्हें शायद कभी नहीं बताऊँगी कि मैंने कुछ रातों में क्या महसूस किया है।
मैंने माँ से कहा, "आप बात करते रहो और मैं सो जाती हूँ।"
थोड़ी देर बाद मैंने सोने का नाटक किया क्योंकि माँ बहुत ही थकी हुई थी।
यह वारदात अभी भी मुझे परेशान करती है, जब रोशनी बंद होती है, लगता है कि वह अंदर आ रहा है। हर रात मुझे वाशरूम में रहना क्यों पसंद है क्योंकि यह मेरी सबसे सुरक्षित और शांतिपूर्ण जगह है।
सबसे दुख:द बात यह थी जब मेरी रूबी मर गई। मैंने एक सप्ताह तक कुछ भी नहीं खाया और बस रोती ही रहती थी।
रूबी के जाने का दुःख सभी को था पर मेरी रूह ही जानती थी कि मैं रूबी को कभी नहीं भूल सकती क्योंकि उसने सब कुछ देखा था। हर रात मेरे साथ मेरे डर को महसूस किया था। सिर्फ हम दोनों ही उस घटना के बारे में जानते थे और उसका साथ मेरे लिए हौसला बढ़ाने जैसा ही था। रूबी मेरे जिंदगी की सबसे बेहतरीन दोस्त थी और आज भी वो मेरे दिल में और मेरी यादों में जिंदा है।
इस घटना के बाद मैं टाॉपर से एक औसत छात्र बन गई।
मैं अक्सर रातों में जागती रहती थी और मेरा ध्यान पढ़ते समय आस-पास की तरफ बढ़ता रहता था। हर वक़्त डर लगता था जैसे कोई मेरी ओर तो नहीं आ रहा हैं, या फिर कोई मुझे देख तो नहीं रहा है।
मेरे मन में आज भी एक डर है। अब मैंने पहले जैसे हँसना भी छोड़ दिया, लोगों से ज्यादा बातचीत भी नहीं रही। अब ना वो हँसी रही और ना ही वो साक्षी रही।
केवल उन चार रातों ने मेरी हर एक रात को डरावना बना दिया।।