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छलावा भाग 8

छलावा भाग 8

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छलावा    

भाग  8

           फिंगर प्रिंट्स एक्सपर्ट शैलेश पांडे अपनी मेज पर सिर रखे पड़ा हुआ था मानो सो रहा हो। जब ज्ञानेश्वर उसके फिंगर प्रिंट्स लेने पहुंचा तब भी वह ऐसे ही पड़ा हुआ था उसने उसे हिलाना चाहा तो देखा कि उसकी आँख में सुआ घुंपा हुआ है तो उसने बिना कोई छेड़छाड़ किए जाकर मोहिते को रिपोर्ट दी। फौरन मोहिते ने आकर जांच शुरू की। बख़्शी को भी सूचित किया गया तो वो भी आ गया। पांडे के सामने कई फिंगर प्रिंटस के नमूने पड़े हुए थे। बगल में एक आतिशी शीशा पड़ा हुआ था। पांडे को देखकर लगता था मानो वह काम करते-करते थक जाने के कारण टेबल पर सिर रख कर सो गया है पर कागज़ पर रिसे खून को देखकर हृदय काँप जाता था। "लगता है यह हाथ में कोई कागज़ लिए सिर के ऊपर उठा कर ध्यान से कुछ मुआयना कर रहा था कि इतने में ही छलावे ने इसपर ऐसा वार किया कि क्षण भर में इसकी मौत हो गई" बख़्शी बोला तो मोहिते भी सहमति में सिर हिलाने लगा। आगे बख़्शी बोला, मोहिते! इन सभी फिंगर प्रिंट्स को उठवा कर बारीकी से इनकी जांच करवाओ जिससे यह पता चले कि कहीं पांडे को छलावे के बारे में कुछ पता तो नहीं चल गया था जिसके कारण उसने इसे मार दिया? माने जल्दी-जल्दी सहमति में सिर हिलाने लगा। 

            इतने में एक सिपाही दौड़ता हुआ आया और उसने ऐसी खबर दी जिसने वहाँ भूकंप ला दिया। छलावा ने हाउस ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष और वाधवा ग्रुप्स ऑफ़ कम्पनीज के मालिक नारायण वाधवा का खून कर दिया था। वे अपने शयनकक्ष के आरामदायक बिस्तर पर मृत पाए गए थे। यह खबर पाते ही मोहिते के सिर पर मानो पहाड़ टूट पड़ा बख़्शी के चेहरे पर भी भारी विस्मय के भाव थे। नारायण वाधवा बहुत नामचीन हस्ती था। स्टॉक एक्सचेंज उसकी इच्छा से चढ़ता उतरता था। उसकी आवाज इतनी बुलन्द थी कि जब वह किसी विषय पर बोलता तो कभी-कभी उसकी गूँज संसद तक भी सुनाई देती थी।  

         बहुत हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण वाधवा के बंगले पर पुलिस की भारी भीड़ थी। बख़्शी और मोहिते ने पहुंचकर अपना काम संभाल लिया। नारायण वाधवा पचपन साल का हट्टा कट्टा व्यक्ति था जो इस उम्र में भी घंटों टेनिस खेलता था। नीलिमा बाहरी से उसने प्रेम विवाह किया था पर दोनों की ज्यादा दिन पटी नहीं थी। फिर तलाक के केस में बख़्शी की मदद से वाधवा नीलिमा से मुक्त हो गया था पर अब दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे। तलाक के बाद वाधवा ने फिर विवाह नहीं किया था क्यों कि वह एक ही गलती बार बार दोहराने में विश्वास नहीं करता था। वैसे भी उसका मानना था कि मनपसन्द डिश खाने के लिए घर में ही रेस्टोरेंट खोलना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं था।

        बख़्शी  मोहिते को साथ लेकर वाधवा के आलीशान शयनकक्ष में दाखिल हुआ। चारों तरफ ऐश्वर्य फैला हुआ था। अपने विशाल गोल पलंग पर रेशमी लिहाफ ओढ़े वाधवा चित पड़ा हुआ था जिसकी दोनों आँखें बंद थीं पर बाँई आँख में सुआ घुंपा हुआ था और उसमे से रक्त बहकर सफ़ेद लिहाफ और चादर को भिगो कर लाल कर चुका था। लाश को देखकर लगता था कि उसे मरे हुए कई घण्टे बीत चुके हैं। अचानक कमिश्नर सुबोध कुमार का आगमन हुआ। कमिश्नर के चेहरे पर सख्त चिंता के भाव थे। उसने बख़्शी के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "अब तो छलावे ने हद कर दी है! दिल्ली भी वाधवा साहब के क़त्ल से हिल उठी है। जल्दी कुछ करो बख़्शी! जवाब में बख़्शी ने जो कहा उसे सुनकर सुबोधकुमार और मोहिते के कानों में मानो बम के धमाके होने लगे वह शान्ति से बोला, यह क़त्ल छलावे ने किया ही नहीं है सर! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ। यह तो छलावे के आतंक का लाभ उठा कर किसी और ने अपनी रोटी सेंक ली है। 

         मोहिते और कमिश्नर मुंह बाए देखते रह गए और बख़्शी बोला सबसे पहली बात तो ये कि यह सुआ उन सुओं से बिलकुल अलग है जिनसे अभी तक क़त्ल हुए। दूसरी बात इस सुए का मार्क घिसा नहीं गया है। वाधवा साहब की लाश पूरी तरह बंद एयरकंडीशंड कमरे में हुई है अगर छलावा हत्यारा है तो वह कमरे में घुसा कैसे? सुबह जब नौकरानी ने दरवाजा खुलवाने की कोशिश की और वाधवा साहब नहीं उठे तब दरवाजा तोड़ा गया और क़त्ल का पता चला। इससे यह सिद्ध होता है कि यह काम किसी ऐसे व्यक्ति का है जिसके पास इस कमरे की चाबी थी उसने चुपचाप आकर दरवाजा खोल कर नींद में ही  इनकी आँख में सुआ घोंपा और निकल गया। दरवाजे पर ऑटोमेटिक नाइट लैच लगा हुआ था तो केवल खींच कर बंद कर देने से ही वह भीतर से बन्द हो गया।

         कमिश्नर ने सहमति में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर बख़्शी के लिए प्रशंसा के भाव थे। 

          बख़्शी आगे बोला कातिल कोई अनाड़ी शख्स है जिसे यह सब बारीकियाँ नहीं मालूम थी कि छलावा मार्क घिसे हुए सुए से क़त्ल करता है और वो कोई भूत प्रेत नहीं जो बंद कमरे में क़त्ल करके हवा हो जाए। केवल सुए से बायीं आँख फोड़कर क़त्ल कर देने से यह काम छलावे का नहीं हो सकता। मेरा मानना है कि सुए पर असली कातिल के फिंगर प्रिंट्स भी हो सकते हैं। 

          बाद में जैसा बख़्शी ने कहा था वही हुआ। सुए पर उंगली के निशान बरामद हुए जो बख़्शी द्वारा बरामद किए गए सुए से बिलकुल अलग थे। फिर बड़ी तेजी से वाधवा के आसपास के सभी लोगों की जांच की गई तो कातिल बड़ी आसानी से गिरफ्त में आया। वाधवा की भूतपूर्व पत्नी नीलिमा वाधवा! जो तलाक के बाद फिर अपने को नीलिमा बाहरी लिखने लगी थी और उसके पास वाधवा के बेडरूम की चाबी अभी तक थी। कुछ दिन पहले तक इस बंगले की मालकिन होने के नाते उसे यहां के स्याह सफ़ेद के बारे में सब पता था। वह अपने तलाक के सुलहनामे की शर्तों से पूरी तरह असंतुष्ट थी और हसद की आग में जल रही थी। उसने अपने पड़ोस के दुकानदार से एक सुआ ख़रीदा और रात बारह बजे चुपचाप आकर सोए पड़े अपने भूतपूर्व पति की आँख में भोंक दिया। दुकानदार ने बाद में नीलिमा को सुए की खरीदार के रूप में निर्विवाद रूप स पहचान लिया था। शहर में छलावे का आतंक देखते हुए उसने बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश की थी पर कानून की गिरफ्त में आ गई। 

        अगले दिन के अखबार शिवकुमार बख़्शी के कारनामे से रंगे हुए थे जिसने चौबीस घंटे के भीतर नारायण वाधवा के कातिल को कानून के शिकंजे में खड़ा कर दिया था। पर छलावा अभी आजाद था और मुम्बई की फ़िजा अभी भी भारी बनी हुई थी।

 

क्या बख़्शी छलावे को भी पकड़ सका?

मोहिते ने आगे क्या किया ?

कहानी अभी जारी है .....

पढ़िए भाग 9 


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