अरूण और इरा का संवाद
अरूण और इरा का संवाद
आज अरूण और इरा की सवेरे की शुरूआत बहुत ही खराब हुई, अरूण नाराज है, काहे इरा को नहीं मालूम पर सवेरे से ही बक बक ने इला को तनाव में डाल दिया है।
उसको लग रहा है अंधेरे कुएँ में धसी जा रही है, धसी जा रही है और काले बादलों ने उसका दबा दिया है, वह उठना चाहती है उड़ना चाहती हैं पर हाथ पैर सारे शरीर की ताकत किसी ने निचोड़ लिया है। ऐसा लग रहा था कि पूरे शरीर पर रोडरोलर चल चुका है, एक लिजलिजा सा अहसास, जमीन पर पड़े माँस के लोथडे का अहसास, वह कुछ सोच नहीं पा रही, सुन नही पा रही है, बस अपनी बुरी चीजों को ही सुन पा रही है।
वह सोचते सोचते सो गयी कि या बेहोश हो गयी नहीं मालूम पर जब होश आया या जगी तब उसको लगा कि वह जीवित है और अरूण जा चुका है।
साहस करके काली चाय बनायी फिर पीते पीते कुछ खास लोगों से बात की फिर अरूण के लिये बेमन से खाना बनाया और नहा धोकर तनाव को झटक कर निकल पड़ी।
ऑफिस की तरफ, उसके मन में, उसके जीवन में कितना कुछ चल रहा है, किसी को कुछ नहीं मालूम ना सरोकार वह कुछ पुराने दिनों को याद करके मन ही हँसी और तरोताजा हो गयी। अरूण चाय पी रहा है और सोच रहा है पता नहीं किस औरत से पाला पड़ा है, हमारे ही घर में रहती है और हमारे ऊपर ही तलाक का केस करती है।
छिनार कहीं की मर जाये तो शांति मिले. कभी कभी मन करता है तकिया रख कर गला दबा दूँ पर पुलिस पकड़ लेगी तो जेल की रोटी खाऊँगा, बदनामी अलग से, चलूँ अगर घर में होगी तो फिर जी भर कर सुनाऊँगा अरे यह तो ऑफिस चली गयी, धत तेरे की।