रिश्तो मे विश्वास जरुरी है।
रिश्तो मे विश्वास जरुरी है।
"सुनैना! सुनैना!" अविक आवाज लगाता है, पर जब बार बार बोलने पर दरवाजा नहीं खुलता तो उसके पास रखी दूसरी चाभी से दरवाजा खोलता है। अंदर जाकर देखता है तो सुनैना कहीं दिखाई नहीं दी, वो परेशान हो गया। बिना बताये कहाँ चली गई! वह फोन लगाता है सुनैना को, तो फोन बन्द आ रहा था। सिर पर हाथ रखकर वो हॉल में ही कुर्सी पर बैठ गया।
अचानक उसकी नजर मेज पर रखे लेटर पर पड़ी जो सुनैना ने लिखा था।
"मैं घर छोड़ कर जा रही हूँ, मैंने बहुत सोच विचार कर ये कदम उठाया है। हर रिश्ते की बुनियाद विश्वास पर टिकी होती है, जिस रिश्ते में विश्वास ही नहीं उसे ढोने से क्या फायदा! कितने दुुख की बात है, कि "आज भी सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है और ना जाने कब तक देना पड़ेगा" जिस इन्सान को मैंने सबसे ज्यादा चाहा, उसी ने मुझपर शक किया।"
अविक लेटर पढ कर अवाक रह जाता है, उसे लगा नहीं था कि सुनैना उसे छोड़कर इस तरह चली जायेगी।
एक साल पहले अविक और सुनैना की लव मैरिज हुई थी। छ: महीने पहले इस फ्लैट में दोनो शिफ्ट हुए थे। वो दोनों अपने जीवन में खुश थे। इसी शहर में उसका चचेरा भाई सुधीर एमबीए की पढाई कर रहा था। जब उसको पता चला कि वो दोनों इसी शहर में रहते हैं तो वह अक्सर आने लगा।
सुनैना सुधीर को अपने छोटे भाई जैसा समझती थी। शुरू-शुरू में जब भी कभी बाजार जाने के लिये अविक से कहती तो वह खुद सुधीर को ही भेज देता, जब भी कभी बाजार जाना होता, तो वह खुद सुधीर को ही फोन करके पूछ लेती । ये सोचकर कि अविक को क्या परेशान करूँ! सुधीर भी धीरे धीरे सुनैना से घुलमिल गया। सुधीर सुनैना को बड़ी बहन की तरह मानता था और अपनी बातें शेयर करता था। वैसे तो जब भी सुनैना कभी सुधीर के साथ कहीं जाती तो अविक को बता के ही जाती। पर एक दिन सुधीर अपनी गर्लफ्रेंड से सुनैना को मिलाने ले जा रहा था। सुनैना ने कहा अविक को बता दूँ तब चलते हैं। नहीं भाभी पहले आप खुशी से मिल लीजिए, फिर आकर बता दीजिएगा। आज पहली बार बिना बताये सुधीर को घर से निकली थी, तो उसे अच्छा नहीं लग रहा था, पर यही सोचा आकर बता दूँगी।
सुधीर सुनैना को लेकर पार्क में जाता है जहाँ खुशी आने वाली थी। अभी खुशी आई नहीं थी, तो दोनो बगल में रखे बेंच पर बैठ कर इंतजार कर रहे थे, अचानक सुनैना के आँख मे कुछ पड़ जाता है। सुधीर सुनैना के आँख में से निकालने लगता है। उसी पार्क मे अविक का दोस्त रंजीत आया था और उसने सुनैना को सुधीर को एक साथ देखा तो कुछ और ही समझ बैठा। दोनो की साथ की तस्वीर निकाली उस समय की जब वह सुनैना के आँख में से निकालने की मदद कर रहा था।
रंजीत अविक के पास जाता है और बताता है कि मैंने सुनैना भाभी को किसी लड़के के साथ देखा है।
"अरे वो सुधीर होगा, अक्सर वो उसके साथ बाजार जाती है सामान लेने के लिये। यार जब से वो सुनैना के साथ चला जाता है बाजार, तब से मुझे छुट्टी मिल गई है।"
"बाजार लेकर जाता है ना, तो आज पार्क क्यों लेकर गया भाभी को? क्या भाभी बताई है तुम्हे आज वो पार्क जाएंगी?" अविक सोचने लगता है कि अभी तक जब भी सुनैना कहीं जाती है तो बता देती है, आज क्यों नहीं बताई?
"बुरा मत मानना, आज मैंने उस लड़के के साथ भाभी की एक फोटो ली है ये देख,
फोटो इस तरह ली गई थी कि वह कुछ और ही बंया करती थी।" अविक ने उस फोटो पर विश्वास कर लिया बिना कुछ समझे जाने। घर आकर बेल बजाई, हर दिन की तरह सुनैना ने मुस्करा कर दरवाजा खोला।अविक उसे अनदेखा कर अंदर आ गया। सुनैना को अजीब लगा, पर सोचा शायद मेरा वहम होगा।थोड़ी देर बाद
"सुनैना, ये सब कब से चल रहा है?"
"क्या? "
"देखो ज्यादा भोली बनने की कोशिश मत करो।"
"किसके बारे में आप बात कर रहे हैं?"
"तुम्हारे और सुधीर के बारे में, आज तुम उसी के साथ पार्क गई थी घूमने। तुम्हें क्या लगा, मुझे पता नहीं चलेगा? कब से तुम मेरे आँखो में धूल झोंक रही हो।"
"आपको एसा लगता है कि मैं एसा कुछ करुँगी?"
"लगता तो नहीं था, पर इस तस्वीर को झुठला नहीं सकता। उसने फोटो दिखाया, अब कोई जवाब है तुम्हारे पास?"
"अब आपने मेरी जासूसी शुरू कर दी?"
"ये फोटो मेरे दोस्त ने दी है, वहीं देखा था तुम्हें सुधीर के साथ।"
"फोटो तो मेरी है, पर जैसा दिख रहा है वैसा कुछ नहीं है| मैं गई थी सुधीर के साथ पार्क उसकी गर्लफ़्रेंड से मिलने, वहीं मेरी आँख में कुछ पड़ गया था। सुधीर देखने लगा उसी समय की है फोटो।"
"अब रहने दो, एक झूठ छुपाने के लिए कितने झूठ बोलोगी?"
सुनैना ने बहुत कोशिश की अविक को समझाने की, पर वह मानने को तैयार नहीं हुआ।
अविक एक ही छत के नीचे रहते हुए भी सुनैना से अजनबियों की तरह व्यवहार करने लगा और एक दिन सुनैना, अविक के नाम एक पत्र छोड़कर चली जाती है।
उसी दिन ऑफिस से निकलते हुए अविक, सुधीर से मॉल मे टकराता है जहां उसके साथ एक लड़की रहती है।
"भईया ये मेरी गर्लफ्रेंड खुशी है, भाभी ने बताया ही होगा। उस दिन पार्क में भाभी मेरे साथ मिलने आई थी। तब से भाभी से बात नहीं हुई, उनकी आँख ठीक है ना, बाद में कोई तकलीफ नहीं हुई ना? और मुझे भी टाईम नहीं मिला कि मैं घर आऊं। अगले हफ्ते रक्षाबंधन है, मैं उनसे इस बार राखी ज़रूर बंधवाउंगा।"
"हाँ सुनैना ने बताया था।" इतना ही कह पाया अविक। मैं अभी चलता हूँ, जरूरी काम है। अब सुनैना की हर बात याद आ रही थी और खुद को कोस रहा था कि मैंने क्यों विश्वास नहीं किया उसपर, कितनी घटिया सोच है मेरी।
अविक लेटर को जेब में रखकर देर रात सुनैना के घर पहुँच जाता है। सुनैना की भाभी कहती है, "जीजा जी आप इस समय? वो सुनैना चाभी देना भूल गई?"अच्छा आप लोग बातें करिए, मैं चाय लाती हूँ।"
सुनैना: "अब क्यों आए है यहाँ पर?"
"ऐसे बिना बताये कोई घर छोड़कर जाता है?"
"और कोई रास्ता भी नहीं छोड़ा था आपने।"
"सुनैना मुझे माफ कर दो, आज के बाद कभी शक नहीं करूँगा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई कि मैंने तुमपे विश्वास नहीं किया।"
"अभी तक तो नहीं था विश्वास, अब कैसे हो गया?"
"आज सुधीर मिला था अपनी गर्लफ्रेंड के साथ, तब जाकर सच्चाई का पता चला मुझे। मुझे खुद की सोच पर घृणा हो रही है, एक मौका दे दो।"
"जैसे आपको यकीन मेरी बात में नहीं हुआ, वैसे मैं कैसे यकीन करूँ कि आप दोबारा मुझपर शक नहीं करेंगे।"
"मुझे एहसास हो चुका है कि रिश्तों में विश्वास जरुरी है, मैंने एक बार गलती कर दी है, अब मैं उस गलती को दोहराऊंगा नहीं। अब माफ कर दो ना।"
अविक के बार बार माफी मांगने पर सुनैना ने माफ कर दिया और अगली सुबह उसके साथ घर आ गई।