“उसकी हँसी”
“उसकी हँसी”
“इतना हँसा मत करो, दालान में बाबू जी हैं, सुन लेगें, ज़रा नीची आवाज़ में बोलो, लड़की हो!”
बचपन में अक्सर बड़ी माँ कहती थीं... तो वो चुप हो गई। वो ससुराल गई, ससुराल में उसे खिलखिला कर हंसते हुए लोगों ने सुन लिया तो लगे ताने देने, शिकायत करने लगे।
“अरे फलनवां की बहू को तनिको लाज शरम नहीं है! जब देखो मुँह फाड़ के हंसते रहती है!”
अब क्या था, सास को तो डांटने का बहाना मिल गया! उसने जोर की डॉट लगाईं, खबरदार जो बत्तीसी बाहर निकाला तो। तो उसी दिन से उसने अपनी हंसी पर ताले खुद ही जड़ लिए। सास के बाद पति को भी उसकी हँसी अच्छी नहीं लगी और नसीहत देने लगे “लोंगों के सामने इतना हँसा बोला मत करो! जमाना खराब है! लोग क्या कहेंगे!” कि फलाने की पत्नी को शऊर ही नहीं है...
जब बच्चे पैदा हुए तो उनके साथ थोड़ी सी खिलखिलाने की छूट मिली थी उसको। लेकिन ज्यों ही बच्चे बड़े हुए तो वे अपनी दुनिया में रहने लगे! और उसकी हंसी फिर से गायब हो गई...अब वह हंसना ही भूल गई।