ढ़ाल
ढ़ाल
अभी-अभी उदिता को पता चला था कि वो माँ बनने वाली है। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। बेसब्र सी वो अपने पति विशाल के घर आने की राह देख रही थी।
घर आने पर जैसे ही उसने विशाल को ये खुशखबरी सुनाई वो खुशी से झूम उठा।
उदिता को गले लगाते हुए विशाल ने कहा- देखना हमारे घर तो प्यारी सी बिटिया ही आएगी।
ये सुनते ही उदिता के चेहरे का रंग अचानक बुझ गया।
विशाल ने उसे छेड़ते हुए कहा- क्या हुआ ? क्या तुम भी पुरुषवादी हो गयी हो, इसलिए बेटी के नाम से उदास हो गयी ?
अचानक उदिता चीख उठी- नहीं बिटिया नहीं आएगी, नहीं आएगी।
उसे भी मार देंगे सब।
सुबह समाचारों में दस साल की मासूम के साथ हुए विभत्स अपराध की खबरें उदिता को याद आने लगी और वो चीखते हुए बेहोश हो गयी।
कुछ देर बाद जब उदिता की आँख खुली, उसने विशाल को अपने पास पाया।
कैसा महसूस हो रहा है अब- विशाल ने पूछा।
उदिता ने आहिस्ते से कहा- ठीक-ठाक।
विशाल ने उदिता का हाथ थामते हुये कहा- मैं समझता हूँ तुम्हारे मन का डर, लेकिन आएगी तो बिटिया ही। पहले हम उसकी ढ़ाल बनेंगे और फिर उसे इतना सशक्त बनाएंगे कि वो खुद अपनी ढ़ाल बनेगी।
और अगली बार जब बेटा आएगा तो हम उसे सिखाएंगे स्त्रियों की इज्जत करना, और अगर जरूरत पड़े तो ढ़ाल बनकर उनका साथ देना।
विशाल के शब्दों ने उदिता के मन का डर कम कर दिया।
उसने विशाल की आँखों में देखते हुए कहा- हाँ, हमारी बिटिया इस दुनिया के घिनौने चेहरे से डरकर अपनी ज़िंदगी खत्म नहीं करेगी, बल्कि अपनी हिम्मत और साहस से जीवन का स्त्रोत बनेगी और बेटा उदहारण बनेगा कुत्सित मानसिकता वालों के लिए।
विशाल और उदिता के होंठो पर अब मुस्कान खेल रही थी, और अपने माँ-पापा की बातें सुनकर अंदर कहीं बिटिया रानी भी मुस्कुराते हुए अपनी किलकारियों से घर-आँगन को गूँजाने की तैयारियों में मशगूल होने लगी थी।