Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

विचारों का दीप

विचारों का दीप

3 mins
14.4K


दीवाली का त्योहार काफी नजदीक था. मैं अपने पुत्र विशेष के साथ बैठा था. अचानक मेरे मन मे विचार आया क्यों न इस दीवाली कुछ नया किया जाये. विशेष मेरी तरफ देख के पूछा “क्या पापा”??

फिर मैंने कहाँ क्यों ना इस दीवाली हम अनाथ बच्चो के लिए कुछ करे, क्यों न किसी अनाथ आश्रम जाये, वंहा कुछ चंदा दे आए जिससे उन बच्चो की भी दीवाली मन जाए. मेरे बेटे को मेरा विचार अच्छा लगा और अगले दिन हमने तय किया की हम अनाथ आश्रम जाएंगे.

अगले दिन मैं और विशेष अनाथ बच्चों के एक आश्रम गए. वंहा एक कर्मचारी मिला जो काफी मिलनसार लगा . हमने उससे आश्रम के बारे में बात की. उसने हमे बताया की इसके लिए हमे उनके एक सामाजिक कार्यकर्ता से बात करनी होगी, जिसके पास चंदा आदि लेने का प्रभार है. हम वंहा बैठकर प्रतीक्षा कर ही रहे थे की तभी एक महिला दनदनाती हूई अन्दर आई और ऐसे स्वर मे हमसे बोली जैसे कोई जेलर किसी दुर्दांत अपराधी से बात कर रही हो, ऐसा लगा मानो कब्र में लेटा मुर्दा भी शायद हिल गया होगा, “ओह तो आप है, जो चंदा देना चाहते है? देखिए आप मुझे 500 किलो चावल दे दें…अभी फ़िलहाल मुझे बस चावल ही चाहिए और कुछ नही.अगर आप इतना नही दे सकते तो आप पांच किलो भी दे सकते है, लेकिन मुझे सिर्फ चावल ही चाहिए, बस में जा रही हूँ.”

इतना कहकर वो चली गई.कोई शिष्टाचार नही, ख़ुशी का कोई एहसास नही, कोई मुस्कुराहट नही…..वह आई और शब्दों के तीक्ष्ण बाण छोड़ के चलती बनी. मैंने अपने आप से कहा “यह है चंदा लेने की प्रभारी ! हे भगवान इस आश्रम के बालको की रक्षा करना “.

मैं और विशेष स्तब्ध होकर कुछ देर तक तो कुछ बोल ही नहीं पाए….हम इस अपमान और अनादर के कडवे अनुभव से उबरने की कोशिश में लगे रहे. कुछ देर पश्चात मैंने विशेष से कहा “ हम 500 किलो चावल दे ही देते है. हमे तो बच्चो के लिए करना है, ना की इस महिला के लिए. तो फिर बच्चो की भूख और अपनी सदभावना के बीच हम इस महिला के दुर्व्यवहार को आड़े क्यों आने दें ??”

मैंने अपने पुत्र को समझाया “ बेटा हम यंहा एक सदभाव से आए है. हमारा व्यव्हार किसी बाहरी व्यक्ति के बहकावे से क्यों भड़कने लगा, संसार का कोई भी व्यक्ति हमारे भीतर के भलेपन को कैसे रौंद सकता है. हम साधु और  बिच्छू की वो कथा क्यों भूल जाते है ,जिसमे बिच्छू के बार-बार डंक मारने के पश्चात् भी साधु ने अपनी अच्छाई का, अपनी इंसानीयत का, अपने मानव धर्म का दामन नही छोड़ा.तो फिर हम जरा सी बात पे अपने आप को, अपने व्यव्हार को अपने अन्दर के भोलेपन को क्यों बदल देते है.

संसार कैसा व्यव्हार करता है,यह देखना हमारा काम नही है. सबसे गर्व की बात होती है अपनी नजर में ऊंचा उठना. आप सदैव अपने चरित्र को जिएं, चाहे आप कंही भी हो,किसी भी कसौटी पर हो और कुछ भी कर रहे हो. दूसरो की सीमा के कारण हमे खुद को सीमित नहीं करना चाहिए.वह गलत है इस बात की आड़ लेकर की गई आपकी गलती क्षमा योग्य नही होती.गलती के बदले गलती करना कोई सही तरीका नही है.”

विशेष ने मेरी बात को ध्यान से सुना. आखरी मैं विशेष मुझ से कहता है “ पापा इसका मतलब ये हुआ की हमे अपनी अच्छाई, अपनी सोच, अपना व्यक्तित्व का हमेशा ख्याल रखना चाहिए.”

विशेष की बात सुन मुझे अतिप्रश्नता हुई. और मैंने उससे कहा “ हाँ बेटे जीवन की हर मोड़ पे, हर मौके पे हम लोगो का अनुसरण ही करे ऐसा आवश्यक नही, बल्कि हम कुछ ऐसा करे ताकि लोग हमारा अनुसरण करे……

आशा करता हु की विशेष की तरह आपको भी हमारी बात अच्छी लगी हो.

“किसी के बहकावे में ना आना,

जब भी, जंहा भी जाना खुशियाँ ही लुटाना.

दीवाली के दीप संग

विचारों की रौशनी फैलाना “


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational