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ratan rathore

Drama Tragedy

3.3  

ratan rathore

Drama Tragedy

वैराग्य

वैराग्य

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"सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ लिखकर पोस्ट करना सुमेरु श्री की आदत थी। आदिति की भी आदत कुछ ऐसी ही थी। खास तौर पर श्री की पोस्ट पर उसका लिखना, लिखे पर सटीक भावपूर्ण लिखना जीवन का एक हिस्सा बन गया था। क्रम बदस्तूर महीनों दर महीनों चलता रहा। दोनों में मध्य प्यार कब पनप गया पता ही नहीं चला। प्यार धीरे-धीरे एक सम्बन्ध का रूप लेने लगा।" रवि अब चुप हो गए।

उनकी खामोशी देखकर मित्र यादव ने कन्धा पकड़कर कहा, "अब आगे भी बताओगे कि फिर क्या हुआ।"

"फिर...उन दोनों ने साहित्य की दुनिया में रच-बस जाने का निश्चय कर लिया और विश्व में हिंदी का परचम विशिष्ठ रचनाओं के माध्यम से मानव मन की जोड़ने का फैसला कर लिया। पति-पत्नी के रूप में अपनाने का निर्णय लेकर मन से स्वीकार भी कर लिया।" रवि ने उन्हें सुनाया।

'किसी दिन जब हम मिलेंगे तब मैं तुम्हें सोने का मंगलसूत्र जरूर पहनाऊँगा लेकिन तब तक तुम मेरा यह पुष्प हार स्वीकार करो।' सुमेरु श्री ने अनुरोध किया।

'हाँ श्री तुम्हारा प्रस्ताव बहुत अच्छा है। स्वीकार करती हूँ। तुम मेरी बेटी को भी अपनाने को तैयार हो। मानव कल्याण के लिए और माँ सरस्वती की कृपा से हम जरूर सफल होंगे...किंतु' आदिति इतना कहकर चुप हो गई।

'किंतु? किंतु क्या प्रिय।' श्री ने चिंतित होते हुए पूछा।

'तुम शादीशुदा हो श्री। एक स्त्री, एक स्त्री की दुश्मन कैसे बनेगी। क्या वे मुझे व इस संबंध को स्वीकार करेंगी ? कैसे संभव होगा श्री ?' आदिति ने कहा।

'क्यों, क्या वे स्वीकार नहीं करेंगी ? महान कार्य के लिए वे तुम्हें मेरी पथगामिनी, सहचरी नहीं मानेंगी ? उन्हें मानना ही होगा।' विश्वास के साथ श्री ने कहा।

'तुम मुझे भूल जाओ श्री। समझ लेना मैं दगाबाज निकली। आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। यह हमारी अंतिम बातें है।' इतना कहकर आदिति ने सब कुछ बंद कर दिया।

अब तक खामोशी से मित्र यादव, रवि की कहानी सुने जा रहा था। उत्सुकतावश उसने पूछा, "तो मतलब यह कि सपना, सपना रह गया। लिए गए प्रण के प्राण पखेरू उड़ गए। क्या हो जाता यदि दोनों विवाह कर लेते ? आसमान थोड़ी न टूट जाता। स्त्री, स्त्री को स्वीकार नहीं कर सकती ? क्या जमाने में दूसरी स्त्री जीवन मे नहीं आती ? दो सौत भी चाहे तो मिलकर प्यार से जीवन निभा सकती है।'

"अरे भाई, जो समाज से लड़ सकता है वही आगे बढ़ सकता है। अब दोनों के रास्ते अलग हो गए। सुमेरु श्री न जाने कहां खो गए और आदिति लेखिका बन गई।" रवि ने आगे कहा।

"सुमेरु श्री कहाँ गए।" यादव ने उत्सुकता जाहिर की।

"उन्होंने मौन व्रत के साथ संसार से वैराग्य ले लिया।" रवि ने मित्र की उत्सुकता समाप्त की।


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