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अनुरक्ति

अनुरक्ति

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"गुड मॉर्निंग जानू !

ओ हलो !

अरे यार सोती ही रहोगी क्या"


"हम्म

गुड मॉर्निंग !

यार कितना अच्छा सपना देख रही थी। तुमने जगा दिया। बड़े दुष्ट हो तुम। सोने भी नहीं देते। रात में भी और दिन में भी बातें ही बातें। कुछ पढ़ाई लिखाई भी करते हो या बस यूँ ही आवारागर्दी करते हो। लड़कियों से चैटिंग करते रहते हो बस। मुझे तो अभी भी आलस आ रहा है। अभी देखना मेरी मम्मा का लेक्चर शुरू होने वाला है ... 

नेहू ! ब्रेकफास्ट रेडी है बेटा ...कॉलेज नहीं जाना क्या ? देर हो रही है। उठ भी जाओ अब .....।"

"हा हा...अपनी मम्मी की नकल करते, शर्म नहीं आती तुम्हें ?"

"अरे यार ! मेरी मम्मा न....दुनिया की बेस्ट मम्मा है। पापा तो मेरे हिटलर हैं पूरे। अभी गुर्राते हुए बोलेंगे ... "तुम्हें एक बार में सुनाई नहीं देता क्या ? "

"हा हा ....ओ के जानू , मिलते हैं। क्लास में देर हो जाएगी। मेरा कॉलेज तो दूर है ना। डेढ़ घंटा लग जाता है पहुंचने में।"


"अच्छा सुनो ! तुम एमबीए ही कर रहे हो ना ? किस में ? मार्केटिंग या फाइनेंस में ?"

" अरे ओ भुलक्कड़ ! फाइनेंस में कर रहा हूँ। बताया था ना।"

"यार ये इकनॉमिक्स ना, मुझे बहुत बोर करती है। कुछ पल्ले ही नहीं पड़ती। भेजे में घुसती ही नहीं यार। मुझे तो नाम सुनकर ही नींद आने लगती है, सच्ची। तुम इतने बोर सब्जेक्ट को कैसे पढ़ते होंगे। ओ पढ़ाकू थोड़ा ज्ञान इधर भी दे दो ना।"

"अभी आऊं क्या देने .... हा हा ।"

"ओये फिर वही बात ? क्या बात हुई थी हमारे बीच। भूल गए ? कोई फ़ालतू बात नहीं करेंगे, ना पिक शेयर करेंगे ना एड्रेस बताएंगे और ना ही कभी कॉल करेंगे। ना हम अपनी आई डी में फ़ोटो लगाएंगे। बस मैसेंजर पे मैसेज करेंगे। याद है या भूल गए ?"

"ओ के बाबा, ओ के.... चलो ठीक है मिलते हैं फिर। सी यू जानू, लव यू।"

"लव यू डियर ! मिलते है । मैं कर दूंगी तुम्हें मैसेज।"


चंद घंटे बाद ....

"हाय बेबी ....आओ ना ! ठंडा हो रहा है! ....आह !

"अरे ! क्लास में हूँ स्टुपिड। अभी हाय फाय मत करो। मुझे हँसी छूट रही है, और ये क्या ठंडा हो रहा है ? जरा पता तो चले, जनाब क्या खा रहे हैं ?"

"यार तुम भी गज़ब करती हो। अरे लेक्चर ख़त्म हो गया था । भूख लग रही थ। अभी कैंटीन में हूँ पिज़्ज़ा खा रहा हूँ और कॉफी पी रहा हूँ।"

"क्यों आज भी लंच नहीं लाये ? ये तुम्हारी जीभ ना बड़ी चटोरी है यार। तुम तो हम लड़कियों को भी मात करते हो। सच्ची यार। चलो मिलते हैं टेक केयर।"


चंद घंटे बाद .....

"अरे कहाँ हो मेरे हीरो ? अभी घर नहीं पहुंचे क्या ?"

"अरे डार्लिंग ! तुम ठहरी रईस बाप की बेटी और मैं ग़रीब माँ का बेटा। कॉलेज के बाद एक जगह पार्ट टाइम जॉब करता हूँ तुम्हें बताया तो था फिर भूल गई ? तुम सच में बहुत भुलक्कड़ हो यार। अभी लोकल में हूँ। घर पहुंच कर मिलते हैं, बॉय।"

रात के नौ बज रहे हैं ....मैसेंजर पे फिर मैसेज आने लगते हैं ....

"क्या कर रहे हो, हो गए फ्री ? डिनर हो गया क्या ? सो गए क्या ?"

"अरे नहीं यार, ऑफ़िस में ही लेट हो गया। कहने को पार्टटाइम है, लेकिन पूरा तेल निकाल लेते हैं। माँ की तबियत खराब थी। घर आ कर खाना बनाया। अब जा कर फ्री हुआ हूँ ।"

"ओह ! सॉरी यार। कितनी मेहनत करते हो ना तुम। शादी क्यों नहीं कर लेते ?"

"शादी करना इतना आसान कहाँ ? पहले एमबीए तो कंप्लीट हो जाये। ढंग की कोई जॉब तो मिल जाए। उसके बाद सोचूंगा। अभी तो जितना कमाता हूँ। हम दोनों माँ बेटे के लिए ही पूरा नहीं पड़ता, तो आने वाली को कैसे रखूंगा ? फिर कोई ढंग की लड़की भी तो मिले। बोलो तुम करोगी मुझसे शादी ? हा हा ....हो गई ना सिट्टी पिट्टी गुम। अरे सॉरी यार मजाक कर रहा था मैं तो।"

"बड़ी सीरियस बातें कर रहे हो आज तो। नहीं यार तुम ठीक बोल रहे हो। सब कुछ सोच समझ कर ही फैसला करना चाहिए। शादी तो पूरी लाइफ का सवाल है। यार रोहन ! सच कहूं ? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि अब हमें मिलना चाहिए। देखो...दो साल हो गए हमें फ्रेंड बने, लेकिन न तो एक दूसरे का नंबर मालूम और न एड्रेस। अब लगता है यार। मैं तुम्हें सच में चाहने लगी हूँ।"

"हाँ यार ! मुझे भी ऐसा ही लगता है। मैं भी अब सीरियसली सोचने लगा हूँ। अब तुम्हीं बताओ ? कब और कहाँ मिलना चाहोगी मुझसे ? मुझे तो पता भी नहीं तुम दुनिया के किस घोंसले में रहती हो।"

"हा हा !.....ओये बच्चू ! मैं कोई पंछी नहीं हूं, इंसान हूँ समझे। तुम तो अभी से शादी के ख़्वाब भी देखने लगे ? अच्छा चलो सोच कर बताती हूँ। अब कुछ पढ़ाई लिखाई भी कर ली जाए। मार्क्स कम आये तो मेरे हिटलर पापा उल्टा लटका देंगे ... हा हा ....।"

"ओ के डियर ....।"

रात गहराने लगी है ..... चारों तरफ नीरवता छाई हुई है। सन्नाटा पसरा हुआ है। नेहा और रोहन एक दूसरे के ख्यालों में खोए हुए सोच रहे हैं। कहाँ मिलें, कब मिलें ?

"सुनो ! .....सो गए क्या ? कल संडे है ना ? कल मिलें ? पीडीपी पार्क मालूम है ? वहीं मिलते हैं। शाम को पांच बजे, ठीक है ?"

"अरे वाह ! लॉटरी लग गई मेरी तो। वहाँ पहुंच कर मैसेज कर दूंगा।"

"नहीं नहीं .... तुम कोई मैसेज नहीं करोगे। मैं देखना चाहती हूँ। तुम मुझे कितने अच्छे से जानते हो। तुम्हें मुझे यूँ ही पहचानना होगा।" 

"जो हुकुम मेरे आका ! .... मंजूर है आपका चैलेंज। गुड नाईट डियर।"

"गुड नाईट जानू।"


पार्क में काफी भीड़ थी। संडे होने के कारण कुछ ज्यादा ही। दोनो वहां आते हैं लेकिन जिन्हें ढूंढ रहे थे वो नहीं मिलते। 

एक घंटे बाद ....

"सॉरी यार नेहा। माँ को अस्थमा का अटैक आने के कारण डॉक्टर के पास जाना पड़ा। मैं आ नहीं पाया।"

"कोई बात नहीं डियर ...अगले संडे सही।" और अगले संडे भी दोनों वहां पहुंचते हैं लेकिन फिर वही दोहराया जाता है।

"ओह सॉरी रोहन ! पापा के कुछ दोस्त आ गए थे, तो निकल ही नहीं पाई और तुम्हें इन्फॉर्म भी नहीं कर पाई।"

"अरे मैं अभी तुम को ही मैसेज करने वाला था। कोई बात नहीं जानू, फिर मिलेंगे। अगले संडे सही।"


"सुनिए !..... आप यहां नए आये हैं ? इस एरिया में पहले कभी देखा नहीं आपको। अभी कुछ दिनों से ही देख रही हूं। रोज शाम को आते हो। बिना वॉक किये इस बैंच पे बैठ कर चले जाते हो जैसे किसी की तलाश है ? "

"जी नहीं !... मैं यही वॉर्डन रोड़ पे रहता हूँ। यहाँ रोज़ सवेरे आता हूँ वॉक करने। कई बरसों से आ रहा हूँ। शाम के वक़्त किसी एक्जीबिशन में या किसी कल्चरल प्रोग्राम में चला जाता हूँ, टाइम पास करने। और आप ?"

"जी मैं भी यहीं नैपेन्सी रोड़ पे रहती हूं। मैं भी रोजाना शाम के समय आती हूँ। कुछ घंटे यहां बिता कर चली जाती हूँ। अकेली हूँ उम्र भी हो चली है। एक बेटी है उसकी शादी कर दी। बेटा - बहू भी बाहर रहते हैं। सारे दिन अकेले पड़े पड़े जी घबराने लगता है। अब अकेली जाऊँ भी तो कहाँ ? आपके घर में कौन कौन है ? "

"जी मेरा भी हाल कुछ आप जैसा ही है। दो बेटे हैं दोनों विदेश में रहते हैं। मैं यहाँ अकेला हूँ। मेड आती है खाना बना जाती है। हम जैसों का क्या जीवन। यूँ ही अकेले घिसट रहे अपने आपको। किसी दिन अंतिम सांस लेंगे तो पास में कोई होगा भी नहीं। अकेले तड़प कर मर जायेंगे।"

"बस करो यार रोहन !! बस करो ! अब रुलाओगे क्या ?.. मैं हूँ ना तुम्हारी नेहा ....।"

"ओह माई गॉड !.... नेहू तुम !

तो इसीलिए तुमने न पिक, न नंबर और न एड्रेस शेयर किया मुझसे।"

"हाँ यार ....मैं पेंसठ साल की बुढ़िया। बीस साल की युवा बन कर अपने खोए हुए अतीत को ज़िंदा कर रही थी। प्रेम के उस रंग में खुद को रंग रही थी जो बरसों पहले मेरे जीवन से चला गया और रह गया बस अकेलेपन का काला अंधेरा, जिसमें सिसकती रहती हूं।"


"ओह मेरी जानू .....यार नेहू ! मैं भी तो तुम्हारे साथ उस सुखमय सफर में चल रहा था। जो जीवन के इन सत्तर सालों में न जाने कब कांटों में तब्दील हो चुका था। न जाने कितना तरसा हूँ। कोई तो हो जिससे बात कर सकूं। जिसके साथ जी सकूं। 

नेहू ! युवा अवस्था का प्रेम तो दैहिक आकर्षण से उपजता है। जिसमें दो युवा मन, संसर्ग की प्यास में तड़पते हैं और एक दूजे को पाने के लिए दीवाने हो जाते हैं। लेकिन हमारा ये प्रेम तो दैहिक आकर्षण से परे अंतस की सात्विकता का प्रतिरूप है। जब ढलती उम्र की साँझ में साये लंबे होकर डराने लगते हैं और आँखों के आँसू कोई कांधा तलाशते हैं। जिस पर सर रख कर अकेलेपन का दर्द बांट सकें। तब प्रेम की तड़प और अधिक व्याकुल कर देती है । 

मैं तो पहले संडे को ही तुम्हें देख कर पहचान गया था। लेकिन मन में डर था। तुमसे कैसे मिलूं ? तुम अगर सच में बीस वर्षीय बाला निकलती तब तो तुम्हें देख कर ही भाग जाता।

अरे यार डियर ... अपना भी हाल कुछ ऐसा ही था। मैं पिछले दस वर्षों से रेगुलर इस पार्क में आती रही हूँ। यहाँ के एक - एक व्यक्ति को पहचानती हूँ। तुम उस दिन एक मात्र नए पंछी आये तो तुम को तुरंत पहचान गई। क्योंकि जब मैंने तुम्हें पीडीपी पार्क बोला और तुम ने एक बार भी नहीं पूछा ये कहाँ है तो मैं समझ गई थी। तुम मेरे घर के आसपास ही रहते हो।"

देखो यार ये बुढ़ापे का प्रेम है। इसमें हम देह से नहीं आत्मा से एक दूजे को चाहने लगे हैं। न शक्ल देखी न रूप देखा न पद देखा ....समझे मेरे जानू !!"


नेहू .....!!

इस पकी देह के दर्पण में यौवन का चेहरा तो नहीं दिखता, लेकिन प्रीत की आकृति तो दिखती है। जब अकेलेपन के भयावह एकांत में दिन और रात शून्य होकर हमें निगलने लगते हैं । जीवन और संसार से विरक्त हो कर सांस की माला को टूटने का इंतजार करते हुए हम धीरे धीरे निर्लिप्तता की ओर बढ़ने लगते हैं। उसी पल मन के किसी कोने में बचा, प्रेम का वो क़तरा, एकाकीपन के अश्कों को बहा ले जाना चाहता है, और शीतल बयार के झोंके से अंतस को आल्हादित कर देना चाहता है। वही शाश्वत है। वही सत्य है और वही ...प्रेम है ...जो कभी नहीं मरता।

और प्रियदर्शनी पार्क के उस कोने में दो प्रेमियों की उन्मुक्त हँसी महक उठी।



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