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वड़वानल - 23

वड़वानल - 23

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उसी दिन रात को खान ने परिस्थिति पर विचार–विमर्श करने के लिए सभी को इकट्ठा किया।

‘‘किंग के आने से परिस्थिति बदल गई है। हमारी गतिविधियों पर रोक लगने  वाली  है।  पहरेदारों  की  संख्या  बढ़ा  दी  गई  है।  पूरी  बेस  में  तेज  प्रकाश डाला जा   रहा   है।’’   सलीम   ने   चिन्तित   स्वर   में   कहा।

‘‘मेरा  ख़्याल  है  कि  किंग  की  परवाह  न  करते  हुए अपना  कार्य  आगे  बढ़ाना ही होगा। ऐसे हजारों किंग भी हमें रोक न हीं सकते। हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।’’  दत्त  ने  हौसला  बढ़ाया।

‘‘जब आदमी बहुत ज्यादा सावधान होकर काम करते हैं, तब वे गलतियाँ कर बैठते हैं। इन गलतियों को ढूँढ़कर हमें उनका फायदा उठाना होगा। ” खान उनका  मार्गदर्शन  कर  रहा  था।’’  किंग  ने  बड़ी  सावधानी  से  सुरक्षा  योजना  मजबूत की है फिर भी कहीं तो कोई बारीक–सा छेद उसमें रह ही गया होगा। हमें अचूक उसे   ही   ढूँढ़   निकालना   है   और   उसकी   सुरक्षा   योजना   को   बारूद   लगाना   है।’’

‘‘ठीक  कह  रहे  हो।  यदि  हम  यह  कर  लें  तो  उसकी  सुरक्षा  यन्त्रणा  को एक जबर्दस्त धक्का पहुँचेगा। सैनिकों पर इसका परिणाम होगा, वे प्रभावित हो जाएँगे।  मगर...’’  दत्त रुक गया।

‘‘मगर  क्या ?’’  दास  ने  पूछा।

‘‘हमें बोस जैसे लोगों से सावधान रहना होगा। हमें किंग और उसकी सुरक्षा यन्त्रणा की अपेक्षा इन घर के भेदियों से ही ज्यादा डर है। हमें शीघ्र ही, सुरक्षा यन्त्रणा के दोषों को ढूँढ़ने से पहले ही, हंगामा मचाकर अपनी ताकत दिखानी होगी,” दत्त   ने   उत्साह   से   कहा।

‘‘ऐसा   मौका   आया   तो   है,’’   दास   ने   उत्साहपूर्वक   कहा।

‘‘कैसा  मौका ?’’  सलीम  ने  पूछा।

‘‘2 फरवरी को कमाण्डर इन चीफ सर एचिनलेक ‘तलवार’ पर आने वाले हैं। यह उनका पहला ही आगमन होने के कारण उनका जोरदार स्वागत किया जाने वाला है। समूची बेस को रंग लगाने वाले हैं। मेरा विचार है कि हमें इस मौके  का  फायदा  उठाना  चाहिए।’’

‘‘अरे, सिर्फ विचार से क्या होता है, मौके का फायदा उठाना ही है और वरिष्ठ   गोरे   अधिकारियों के   सामने   अपना   असन्तोष   प्रकट   करके   उन्हें   यह   चेतावनी देनी  है: सीधे–सीधे  हिन्दुस्तान  छोड़कर  चले  जाओ; वरना  गुस्साए  हुए सैनिक  तुम्हें चैन से जीने नहीं देंगे,’’   दत्त   आवेशपूर्वक   बोला।

‘‘मैं  कल  ही  जाकर  पोस्टर्स  लेकर  आता  हूँ।  इस  बार  हम  सिर्फ  पोस्टर्स ही   चिपकाएँगे।’’   खान   ने   सुझाव   दिया।

‘‘मेरा   भी   यही   ख़याल   है,’’   मदन   ने   सहमति   जताई।

‘‘नहीं,  हम  पूरी  की  पूरी  बेस  रंग  देंगे।  चिपकाए  गए  पोस्टर्स  तो  दिखते ही सुबह निकाल दिये जाएँगे। हमारा गुस्सा, हमारा देशप्रेम एक ही पल में नोंच कर फेंक दिया जाएगा, फिर एचिनलेक को हमारे मन के तूफ़ान का पता कैसे चलेगा ?’’  दत्त ने असहमति जताई।

‘‘मेरा ख़याल है कि हम ये दोनों काम करेंगे। परेड ग्राउण्ड सैल्यूटिंग, डायस रंग देंगे और बैरेक्स के बाहरी ओर पोस्टर्स चिपकाएँगे।’’ गुरु ने बीच का रास्ता सुझाया   और   उसे   सभी   ने   मान   लिया।

‘‘इस काम के लिए हम तीन गुट बनाएँगे। एक गुट किंग की सुरक्षा योजना के  कमज़ोर बिन्दु  ढूँढेगा; दूसरा  रंगने  का  काम  करेगा  और  तीसरा  गुट  पोस्टर्स चिपकाएगा।’’ मदन लाइन ऑफ एक्शन समझा रहा था। ‘‘आज से हम सभी सुरक्षा    व्यवस्था    का    निरीक्षण    करेंगे    और    कमज़ोर बिन्दु ढूँढेंगे। इसके बाद 28 जनवरी को हम मिलेंगे तथा अपने–अपने निष्कर्ष बताकर अगला कार्यक्रम    निश्चित    करेंगे।’’

कमाण्डर किंग ने 27 जनवरी को बेस के सभी अधिकरियों की बैठक बुलाई थी।

 ‘‘आज  तुम  सबको  मैंने  क्यों  बुलाया  है,  इसका  अन्दाज़ा आपको  होगा। आप  सबको  ज्ञात होगा  कि  कमाण्डर  इन  चीफ  सर  एचिनलेक  2  फरवरी  को  सुबह आठ बजकर तीस मिनट पर ‘तलवार’ पर तशरीफ लाने वाले हैं। पहले वे परेड का निरीक्षण करेंगे और इसके बाद खुली जीप में बेस का राउण्ड लेने वाले हैं। इस भेंट के दौरान मैं किसी भी तरह की गड़बड़ अथवा परेशानी नहीं चाहता। बेस के आन्दोलनकारी सैनिक अभी तक पकड़े नहीं गए हैं। इस बात को नकारा नहीं  जा  सकता  कि  वे  गड़बड़  मचा  सकते  हैं।  आज  से  रात  के  पहरेदारों  की  संख्या दुगुनी  करनी  है।’’

‘‘मगर,   सर,’’   किंग   को   बीच   में   ही   रोककर   स्नो   अपनी   समस्या   बताने   लगा, ‘‘आज  ही  बेस  के  लगभग  पचास  प्रतिशत  सैनिक  दिनभर  की  ड्यूटी  पर  रहते हैं। और   अधिक   सैनिक   लाएँ   कहाँ   से ?’’

‘‘सर, मेर ख़याल है कि अंग्रेज़ी सैनिकों को ड्यूटी पर रखा जाए।’’ सब लेफ्टिनेंट   रावत   ने   जल्दी   से   सुझाव   दिया।

‘‘बेवकूफ जैसी बकबक मत करो! गोरे सैनिक यहाँ पहरेदारी करने नहीं आए हैं। They are here to control you और   उन   काले   स्काउण्ड्रेल्स ने   एकाध गोरे  सैनिक  को  मार  डाला  तो  मैं  सम्राज्ञी  को  क्या  जवाब  दूँगा ?  उनकी  ड्यूटी नहीं  लगेगी।  सिग्नल  स्कूल  के  प्रशिक्षार्थियों  को  पहरे  पर  लगाओ।’’  किंग  ने  रावत की   सलाह   ठुकराते   हुए   आज्ञा   दी।

‘‘मगर,  सर,  इन  सैनिकों  को  सिर्फ  रात  के  आठ  बजे  तक  ही  ड्यूटी  पर रखने  का नियम  है।’’  स्नो  ने  कहा।

‘‘नियमों की ऐसी की तैसी। नियमों को गोली मारो। My ship, my command उन  सबको  सुबह  चार बजे  तक  ड्यूटी  पर  रखो।’’  किंग  ने  कहा,

‘‘28 जनवरी से ड्यूटी आर.पी.ओ. ,  ड्यूटी चीफ,    ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर और ऑफिसर ऑफ दि डे - इनमें से हरेक समूची बेस का बारी–बारी से राउण्ड लेगा। इनमें से दो व्यक्ति ऑफिसर ऑफ दि डे के दफ्तर के निकट रहेंगे और अन्य दो  बेस  का  राउण्ड  लगाएँगे।  रात  को  मुझे  सिर्फ  दो  ही  व्यक्ति  कार्यालय  में  दिखाई दें। दूसरी बात यह, कि ड्यूटी पर तैनात सैनिकों के अलावा अन्य कोई व्यक्ति यदि रात को बेस में घूमता हुआ नजर आए तो उसे फ़ौरन गिरफ्तार कर लो।

I hope, you all will take utmost care and will avoid unwanted happenings. I shall not tolerate any slackness in carrying out my orders". किंग की आवाज़ रहस्यमय हो गई थी।

किंग  ने  अपना  वक्तव्य  समाप्त  किया  और  वह  दनदनाता  हुआ  चला  गया।

28 जनवरी से ही बेस का बन्दोबस्त अधिक चुस्त हो गया था। कोई–न–कोई लगातार राउण्ड लेता ही रहता था। रात बारह बजे की सिग्नल सेंटर की ड्यूटी पर   जाते   हुए   मदन,   दत्त,   गुरु   को   रोका   गया   था।

‘‘पूरा परेड ग्राउण्ड प्रकाश से सराबोर है। किंग रोज रात को राउण्ड लेता है। पूर्व में घटित घटनाओं का अध्ययन करके कमजोर बिन्दु ढूँढ़ता है और उन्हें दूर करता है। आज कहीं भी उँगली घुसाने की जगह  नहीं  है।’’  दास  ने  बन्दोबस्त का  वर्णन  करते  हुए  चिन्तायुक्त  स्वर  में  पूछा,  ‘‘हम  अपनी  योजना  कार्यान्वित कैसे   करेंगे ?’’

‘‘आज दोपहर को मैं शेरसिंहजी से मिलने के लिए निकला था। मगर आधे रास्ते से ही वापस लौट आया। मुझे शक हो गया था कि बोस मेरा पीछा कर रहा है,’’   खान ने कहा।

‘‘साले की यह हिम्मत! उसकी एक बार फिर से कम्बल परेड करना चाहिए,’’ मुट्ठियाँ   भींचते   हुए   दास   ने   कहा।

‘‘नहीं, यह वक्त मारपीट करने का नहीं है। उससे तो हम बाद में निपट लेंगे। पहले हाथ में लिया हुआ काम, और उसे पूरा करना ही है। हमें खुद ही पोस्टर्स  बनाने  होंगे।’’  खान  ने  जिद  से  कहा।

‘‘मेरा ख़याल है कि इस बार के कड़े बन्दोबस्त को देखते हुए हमें अपना कार्यक्रम स्थगित करना चाहिए। यदि   कोई   गलती   हो   गई   तो––– हम   सबके   सब–––’’ दास   भयभीत   था।

‘‘अभी तो लड़ाई का आरम्भ हुआ ही नहीं, और तू अभी से हिम्मत हार बैठा ?  हमने  इस  आह्वान  को  स्वीकार  करने  का  निश्चय  किया  है।  अब  पीछे  हटने का   सवाल   ही   नहीं   उठता।’’   मदन   ने   निश्चयपूर्वक   सुर   में   कहा।

‘‘गलती जैसे हमारे हाथों से हो सकती है, वैसे ही वह किंग के हाथ से भी हो सकती है। यह तो युद्ध है, जो दूसरों की गलतियाँ भाँपकर उनका फायदा उठाते हैं, वे ही विजयी होते हैं। अरे, यदि हममें से एकाध पकड़ा भी जाए तो क्या  फर्क  पड़ेगा!  यह  तो  कभी  न  कभी  होने  ही  वाला  है।  यदि  हममें  से  कोई भी पकड़ा जाए तो उसे दूसरों को बचाने की अन्त तक कोशिश करनी होगी।’’ दत्त   ने   राय   दी।

 ‘‘हममें से यदि कोई भी पकड़ा जाएगा तो हमारी ताकत कम हो जाएगी, और  किंग  के  लिए  यह  जीत  होगी।  उसी  के  बल  पर  वह ‘तलवार’  को झुकने पर मजबूर कर देगा। इसका परिणाम उन जहाज़ों पर भी होगा जहाँ बगावत की तैयारी चल रही है। इस बात पर भी हमें गौर करना चाहिए,’’ सलीम ने सुझाव दिया।

सुबह के दो बजे तक इस विषय पर एक राय न बन सकी। अन्त में यह निर्णय  लिया  गया  कि  30  और  31  तारीख  को  पूरी  बेस  का  निरीक्षण  किया  जाए।

मदन  ने  हरेक  को  बेस  का  एक–एक  हिस्सा  बाँट  दिया।  रात  को  सिग्नल  सेंटर से   ड्यूटी पास लेकर ड्यूटी करने वालों ने बाहर निकलकर बेस में घूमने का निश्चय किया।

अगले दो दिन वे बेस का  निरीक्षण  करते  रहे। पहरेदार कहाँ होते हैं, वे ही सैनिक वापस उसी स्थान  पर कब लौटते हैं,  किस  तरह  से  घूमते  हैं,  किस क्रम में राउण्ड लगाए जाते हैं, कितनी देर चलते हैं, किस मार्ग से जाते हैं – इन सब   बातों   का   सूक्ष्म   निरीक्षण   किया   गया।

तीस की रात को वे फिर एकत्र हुए।

‘‘किंग की योजना में कहीं भी कोई ख़ामी नहीं है। मेरा ख़याल है कि हमें Suicide attack करना होगा और इसके लिए मैं तैयार हूँ,’’ दास ने स्पष्ट किया।

‘‘निराश होकर एकदम अन्त के बारे में न सोचो। कोई न कोई मार्ग ज़रूर निकलेगा।’’ गुरु ने समझाया।

‘‘किंग हरामी है, साला! थोड़ा–सा भी मौका मिले तो साले को धुनक के रख   दूँगा।’’   दास   को   गुस्सा   आ   रहा   था।

‘‘इस तरह गुस्सा न करो।Be a sport! अरे, शत्रु के गुणों की भी तारीफ़ करनी चाहिए। यदि किंग ने हमारे लिए सारे मार्ग खुले छोड़ दिये तो फिर हमला करने में मज़ा ही क्या आएगा ? पहरा कड़ा है, इसीलिए तो यह काम करने में एक   थ्रिल   है।’’   मदन   ने   समझाया।

''All right! As you wish!'' दास बुदबुदाया। सभी ने अपने–अपने निरीक्षणों के निष्कर्ष सामने रखे। मदन,  खान  और  दत्त  ध्यान  से  सुन  रहे  थे।  इसके  पश्चात् आई  निर्णय  की  घड़ी।  बैठक  में  गहन  शान्ति  छा  गई।  मदन  सभी  के  निष्कर्षों का मन ही मन जायज़ा ले रहा था। ख़ामोशी   बर्दाश्त   नहीं   हो   रही   थी।

‘‘किंग से कुछ गलतियाँ हुई तो हैं,’’ मदन ने खामोशी को तोड़ा, ‘‘चार से आठ बजे के दौरान परेड ग्राउण्ड के चारों ओर सिग्नल स्कूल के प्रशिक्षार्थी होते हैं। परेड ग्राउण्ड पर लाइट रात के आठ बजे के  बाद  जलाई  जाती  है।  दोपहर के चार बजे के बाद अनेक सैनिक बाहर जाते हैं। अधिकारी आराम फर्मा रहे होते हैं। साढ़े छह बजे से साढ़े सात बजे के बीच बेस के सैनिक रात के भोजन के   लिए   जा   चुके   होते   हैं।   और   एक   घण्टे   में   ड्यूटी   खत्म   होने   वाली है,   यह   सोचकर पहरेदार अलसा जाते हैं। किंग यह मानकर चला है कि क्रान्तिकारी सिर्फ रात को ही नारे लिखते हैं। उनकी कार्यपद्धति निश्चित होती है।’’ मदन ने किंग की गलतियों   का   विश्लेषण   किया।

मदन के इस विश्लेषण से सभी उत्साहित हो गए। मदन पर छाई हताशा दूर  हो  गर्ई।

‘‘हमें  अपनी  कार्यपद्धति  बदलनी  होगी,’’  खान  ने  कहा।

‘‘बिलकुल ठीक है, हम अपना काम, हमेशा की तरह, रात को नहीं बल्कि शाम को छह बजे से साढ़े सात बजे के दौरान पूरा करेंगे।’’ मदन एक्शन प्लान समझा  रहा  था। ‘‘1  तारीख  को  सलीम  और  दास  ड्यूटी  पर  हैं।  मैं,  गुरु,  दत्त और खान खाली हैं। गुरु और दत्त काम निपटाएँगे। मैं और खान पीछे से नज़र रखेंगे।’’   मदन   ने   प्लान   बताया।

‘‘डायस पर रंग से नारे लिखने का और पोस्टर्स चिपकाने का काम सिर्फ़ पैंतालीस मिनटों में पूरा करना है। ''Hands to supper'' की घोषणा होते ही अपना काम शुरू कर देना है। सलीम और दास उस दिन चार बजे से आठ बजे वाली ड्यूटी पर है। शाम को ड्यूटी पर जाते समय सलीम और दास अपनी जेब में रंग के दो छोटे डिब्बे और ब्रश ले जाएँगे।  झण्डा  उतारने  के  बाद  उसकी  तह करने तक के बीच में समय निकालकर रंग के डिब्बे और ब्रश दाहिनी ओर वाली मेहँदी की बागड़ में छिपाएँगे। 1 तारीख की दोपहर तक हर व्यक्ति पाँच पोस्टर्स तैयार   करके   दत्त   को   सौंप   देगा।’’   खान   सूचना   दे   रहा   था।‘‘हर   कोई   अपनी–अपनी अलमारी से आपत्तिजनक किताबें, पोस्टर्स, पर्चियाँ आदि बाहर फेंक देगा। हमारा यह काम ख़तरनाक है। हम खुद को बचाने की कोशिश तो करेंगे ही, परन्तु यदि  कोई  पकड़ा  गया  तो  वह  हर  तरह  के  अत्याचार  सहन  करेगा,  मगर  औरों के नाम नहीं बताएगा। दत्त और गुरु यथासम्भव कम ख़तरा उठाते हुए नियत समय   में   काम   पूरा   करेंगे।’’

‘‘मतलब    यह    कि    पूरी    बेस    में    पोस्टर्स    नहीं    चिपकाए    जाएँगे। पैंतालीस मिनटों में    आख़िर    कितने    पोस्टर्स    चिपकाए    जा    सकते    हैं ?    सिर्फ चालीस से पचास तक - यह कैसा   फालतू,   छोटा–सा   काम   है।’’   दत्त   असन्तुष्ट   था।

‘‘हर व्यक्ति नियत काम निश्चित किए गए समय में ही पूरा करेगा। ये टीमवर्क   है।’’   खान   ने   जताया।

दत्त   ने   परिस्थिति   को   स्वीकार   किया।


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