Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

ARUN DHARMAWAT

Abstract

5.0  

ARUN DHARMAWAT

Abstract

माटी के रूप भाग 2

माटी के रूप भाग 2

2 mins
404


तीये की बैठक समाप्त हो चुकी थी। सारे लोग एक एक करके विदा हो रहे थे, विजय बाबू के आंसू, थमने का नाम नहीं ले रहे थे। तन्वी भी हाथ जोड़े खड़ी थी। अपनी मम्मी के यूँ अचानक चले जाने से उसका तो रो रो कर बुरा हाल था। सभी लोग शोक व्यक्त करने के साथ साथ चिंतित भी थे। मध्य आयु में मंजू जी का यूँ चले जाना, पीछे युवा पुत्री और पति, अब आगे क्या होगा यही सोचकर सब परेशान थे। सब अपनी अपनी तरह से ढाढ़स बंधा रहे थे। 

सब लोगों के जाने के बाद अंत में गरुड़ पुराण की कथा बांचने वाले पुजारी जी रह गए .....

विजय बाबू और तन्वी की दशा देख कर उनसे भी रहा न गया और वो बोले .... 

"आप लोगों की दशा देखकर मुझे भी बहुत दुःख हो रहा है लेकिन हम सब के जीवन में कभी न कभी ये दुःखद अवसर आता ही है। ऐसे में हमें धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है। मैं आप पिता पुत्री को कुछ कहना चाहूंगा .... 

ये मानव शरीर मिट्टी के उस दीपक के समान है जो पंचतत्व की माटी से बनता है और अपना उजियारा फैला कर अंत में उसी माटी में मिल जाता है।

जैसे कुम्हार अपने चाक पर दीपक बनाता है उसकी हिफाजत करके सुखाता है फिर पक्का करने के लिए भट्टी में पकाता है । फिर इसी दीपक में तेल डाल कर बाती जलाई जाती है । यही तो जीवन का सूचक है। ठीक इसी प्रकार शिशु जन्मता है, प्रेम और वात्सल्य पा कर सारे घर आंगन में खुशियां बिखेरता है । यही शिशु, किशोर अवस्था में आकर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है और युवा होकर संघर्ष की भट्टी में तपता है सारे जगत में जीवंतता का उजाला भर देता है और अनगिनत माया मोह रिश्ते नाते जोड़ लेता है फिर धीरे धीरे वृद्धावस्था में पहुंच जाता है और एक दिन इस दीपक का साँस रूपी तेल समाप्त हो जाता है और जीवन की बाती बुझ जाती है । शेष रह जाती है बस वही माटी की काया जिसे पुनः पंच तत्व में मिलना जाना होता है। यही जीवन चक्र है।

जो जन्मा है उसकी मृत्यु भी निश्चित है अतः ये शोक का समय नहीं दिवंगत आत्मा की शान्ति हेतु प्रार्थना करने का समय है। 

इसलिए इस यथार्थ को आत्मसात करके आगे बढ़ना होगा। जन्म से मृत्य तक का सत्य स्वीकार करना होगा और सामान्य जीवन में लौट आना होगा। पुजारी जी की बातें सुन कर पिता पुत्री दोनों के चेहरों पर संतोष एवं संयम के भाव उभर आए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract