Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

घर जाके क्या करूँगा

घर जाके क्या करूँगा

4 mins
866


दफ्तर में ये एक आम दिन था और सुबह की चाय का कप हाथ में लिए मैं लोगों के हाल पूछ रहा था। रोज के मुकाबले उस दिन सर्दी ज्यादा थी और कमबख्त चाय में अदरक ने भी स्वाद को दो गुना कर दिया। काश गरम गरम पकोड़े और हो जाते तो दुनिया में आने का मजा आ जाता मैं मन ही मन सोच रहा था।

अचानक से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और हेड मैडम अंदर आई और कहने लगी-

मैडम: “प्रदीप ये वो ये वो ये वो और ये वो काम भी कर देना थोडा अर्जेंट है।

मैं: ठीक है मैडम शाम तक हो जायगा। ( मौसी 6 महीने में भी ना हो ये तो मैं मन ही मन कहा।”

और ये कहकर मैडम निकल ली तब तस्सली से चाय की घूट ली।

हमारे चाय पर होते भारी भरकम डिस्कशन से ऑफिस के लोग सहमे-सहमे से रहते थे। आज मुद्दा था की ट्रिपल तलाक़ पर क्या सुप्रीम कोर्ट को जजमेंट देने का अधिकार है क्यूँकि ये “धर्म के पालन के कानून” के खिलाफ है। किसी भी समुदाय को अपना धर्म अपने हिसाब से पालन करने का अधिकार संविधान देता है।

इतनी देर में दीपक आ गया और हाल पूछने लगा। मैंने भी हाथ में पकड़े कप को ऊपर उठाते हुए बिंदास होने का इशारा किया और इक उलझी सी स्माइल के साथ जाने लगा।

मैं: अरे दीपक जी वो मैडम सुबह-सुबह काम की लिस्ट पकड़ा गयी जिसमें ये काम आपको बोला है और वो वो काम में मुझे बोला है।

दीपक: यार भाई अभी में कुछ नहीं कर पाऊँगा तुम ही देख लेना।

और ये कहते हुए वो निकल लिया

मैं ये सोचने लगा कि “यार ये ऐसे कैसे बोल सकता है।“

फिर मुझे लगा हो सकता है भाई को रात को नींद ना आई हो या शायद अभी मूड ख़राब हो इससे बाद में बात करता हूँ और मैंने मेल बॉक्स खोल लिया।

दफ्तर में अक्सर देश-दुनिया के गरमागरम मुद्दों पर चर्चा होती है और उसके तकनिकी और निजी मुद्दों पर हम लोगो में विचारों का आदान-प्रदान करते रहते।

मैं लैपटॉप स्क्रीन में आँखे गाड़े कुछ देख रहा था की एकाएक मनीष नजदीक आया और बोला।

मनीष: अरे सर जी इतना काम कर के कहा जाओगे..? बस करो !

मैं: अरे काम ना यार मैं तो बस यूँ ही देख रहा था स्पेसिफिकेशन।

और बात बदलते हुए मैंने बोला।

मैं: और बताओ सर जी दिवाली का क्या प्रोग्राम है ..?

मनीष: कुछ नहीं दिन में यारों-दोस्तों के साथ घुमूँगा और शाम को घर !

मैं: और दीपक का ...?

मनीष ने ऊपर की तरफ देखा और अपना चश्मा निकल कर आँखों में उंगलिया घुसाते हुए हुए कहना लगा-

मनीष: उसकी बड़ी दुःख भरी स्टोरी है यार।

मैं : क्या हो गया ....?

मनीष: उसके मम्मी-पापा अलग-अलग जिले में नौकरी करते थे तो पापा की तबियत अक्सर डाउन ही रहती। एक दिन मम्मी, पापा से मिल कर घर वापिस जा रही थी की एकदम रेलवे स्टेशन पर उनका पैर फिसल गया और उन्हें मैक्स हॉस्पिटल में एडमिट कराया था। उधर डॉक्टरो ने पैर का ऑपरेशन ही गलत कर दिया और मम्मी की तबियत दिन पे दिन ख़राब होती गयी और आंटी चल बसी. थोड़े ही दिन में इस दुःख में उसके पापा भी गुजर गए। फिर बता रहा था की कॉलेज टाइम में एक लड़की पसंद थी और लग रहा था बात शादी तक बात पहुँच जायगी कि एक दिन उसे खून की उलटी हुई और अगले दिन वो भी चल बसी। एक छोटी बहन है अभी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही है, बाकि कोई आगे ना पीछे।

ये सब सुनते हुए मेरा गला सूखा हुआ और दिमाग एकदम सुन्न महसूस हो रहा था।

मैं: फिर हॉस्पिटल वालो की शिकायत नहीं की ?

मनीष: हॉस्पिटल पर केस किया हुआ है और वो लोग गलती मान रहे हैं और पैसे लेकर मामला रफा दफा करने का दबाव बना रहे हैं दीपक पर।

मैं: अच्छा फिर...?

मनीष: वो कह रहा है मैं पैसे का क्या करूँगा।

मैं: यार वो वैसे काम में भी इंटरेस्ट नहीं दिखता शायद ज्यादा परेशान है।

मनीष: यार वो यू पी एस सी की तैयारी कर रहा है और कहता है बस जिन्दगी का अब ये ही मकसद रह गया।

और मनीष के बोला एक-एक शब्द मेरे कानों में छपता जा रहा था।

मैं: फिर तूने पूछा कि घर नहीं जाना तो क्या बोला।

“घर जाकर क्या करूँगा।”

ये शब्द सुनकर ठीक वैसा लगा जैसे किसी काग़ज पे स्टाम्प लगती हो। छप से गए थे वो शब्द दिमाग पे।

मैंने आँखें बंद की और गहरी साँस लेते हुए आँखें खोली। फिर विंडोज + एल बटन दबा कर बोला -

“चल आ चाय पी कर आते हैं।”

दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama