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पश्चाताप की ज्वाला [ भाग 3 ]

पश्चाताप की ज्वाला [ भाग 3 ]

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…“मम्मा पापा कब वापस आयेगे अपने खिलौने फैला रिन्कू ने माँ से पूछा क्यो ? यह खिलौने क्यों फैलाये तुमने …”

जीया ने रिन्कू को डाँटा |

“इसमें एक भी बडी वाली गुडियाँ नही है मुझे भी बडी गुडिया चाहिए पापा को लैटर लिखों बोलो मेरे लिए बहुत बडी गुडिया लाये जिसे मै नहलाऊंगी जैसे मौसी नहलाती है अपने बेबी को मै बिलकुल वैसे ही नहलाऊंगी ,” रिन्कू ने अपनी रौ में जवाब दिया लेकिन माँ सोच में पड गयी ! तो यह अपनी मौसी की देखा देखी नकल कर रही है मौसी का असर बच्चों पर पड रहा है | यह जीया से अनदेखा न हुआ वह समझ गयी अब तो रिन्कू को समझा भी नही सकती क्योकि वह एक नम्बर की जिद्दी लड़की थी , छोटी थी इसलिए जीया ने उसे समझाया ,”अच्छे बच्चे जिद नही करते |”

रिन्कू चीखने लगी , “ मुझे बडी वाली डॉल चाहिए बस पापा को अभी लेटर लिखों मेरे लिए डॉल लेकर आये ”और नराज हो मौसी के कमरे में चली गयी जीया उसको बुलाती रही वह नही आयी छोटे बच्चें के साथ खेलने लगी | जीया उसे कैसे समझा़ये कि उसके पापा विदेश गये है | जहाँ से वापस आने में अभी बहुत समय बाकी है, जीया का मन वैसे भी नही लग रहा था वह पहली बार पति से दूर हुई है छोटी बहन को अब फुर्सत ही कहाँ है कि वह जो उसकी परवाह करे जबसे दीपक यहाँ रहने उसके तो रंग ढंग ही बदल गये माँ पिताजी भी उसी के रंग में रंगते जा रहे थे | क्यो न हो , था तो वह छोटा दमाद ! अपनी कोई कसर न छोडता ससुर के इर्द गिर्द ही नाचता रहता जब से उसके पति व बडा दमाद काम के सिलसिले में विदेश चले गये रीया व माँ बडे खुश रहते नये दमाद दीपक की आवभगत में कोई कमी न रहती |

पिताजी ही हालचाल पूछते माँ को तो उसकी परवाह ही नही रही बच्चे साथ थे फिर भी अकेलापन काटने को दौडता | नन्नू चिडचिडा हो रहा था , मौसा को देखता तो अपने पिता को और अधिक याद करता जबसे रीया व उसका पति यहाँ आकर रहने लगे थे तब से जीया के बच्चे खुद को अकेला पाते लेकिन उनके नाना इस बात को भलि भाँति समझते थे , वह कोशिश करते दोनो बेटियों के परिवारों में तालमेल बैठाने की किन्तु बडे दामाद के बाहर जाने से बच्चों का मन नही लगता ..वह कहते थोडे दिन की ही तो बात है जब उनका बडा दामाद वापस आ जायेगा तो पूरा परिवार भैरों बाबा पर माथा टिकाने जायेगा जिनकों वह बहुत मानते थे उन्ही की कृपा से दो नाती मिले …. अब तो नाना -नानी बच्चों के साथ समय बीताते | कारोबार व बाहरी कामों की बागडोर दीपक के हाथों में आ चुकी थी |

अपने घर शहर वापस लौटने का वह नाम भी न लेता उस पर रीया कहती फिरती…..” जीजा जी के घर में न होने से उसके पति दीपक ने परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से संभाल ली है |” माँ को कहती,

“क्यो न उसे व दीपक को भी हमेशा के लिए यही रख लिया जाये जैसे दीदी-जीजाजी व उनके बच्चों को इसी घर में रखा हुआ है शादी के बाद से दीदी तो अपने ससुराल मेहमानों की तरह जाती है उल्टे वही लोग यहाँ आते है |”

जीया सारी बातें सुन के भी अनसुना करती रही यही सोच यह अभी समझदार नही है शायद रीया को याद नही उसके शादी के बाद से ही पति को पिता ने दमाद नही बेटा बना कर अपने पास रखा था |


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