ज़िंदगी
जिंदगी की रफ़्तार जैसे थम सी गयी .
आसमान में कोहरा छा सा गया .
हवाओं ने दी ऐसी ठोकर, खुद को आइने के सामने ने उठा न सका .
खुदा से मांगी थी एक दुआ .......
न जाने उसने सुन के भी अन्सुना कर दिया .
खुद से ही खफा बैठा था की क्यों उस ने ऐसा दर्द दिया .
खामोश खड़ा....सोचा ऐसे क्यों हुआ...?
क्या दुनिया में उसे में ही मिला ?
फिर सामने से आज़ाद पंछी उड़ा, न कोई फिक्कर, न कोई परवाह .....
अपने पंखों को लहराता निकल पड़ा .
उसकी आज़ादी को देख कर दिल में जलन सी हुई ......लेकिन !!
आज़ाद पंछी को देख कर यूँ न समझना की, ज़िन्दगी उसकी आसान है .
ठोकरे तो उसको भी खानी पड़ती है, ये न समझना खुद मेहरबान है .
दिल में खवाइश सी है की काश में भी आज़ाद होता .
रोज़ की थकन से कहीं दूर होता.
पूरी ज़िन्दगी रिश्ते नातो में गुज़ार कर, जंजीरो से जकड़ा बैठा था .
काश में भी आज़ाद होता ........काश में भी आज़ाद होता .........