Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

स्‍वर्णा की स्‍वर्णिम यात्रा

स्‍वर्णा की स्‍वर्णिम यात्रा

14 mins
8.5K


वृंदा अनमनी सी बेवजह पुस्‍तक के पन्‍ने पलटे जा रही थी, उनका मन तो यादों की झुरमुट में अलसाया सा करवटें बदल रहा था। हार कर पुस्‍तक को लाइब्रेरी में रखकर वह स्‍वर्णा के कमरे में गई और उसकी अलमारी खोली। उसके कपड़ों के कोमल स्‍पर्श, भीनी सी खुशबू और सालों से ड्रायक्‍लीन कर पॉलीथिन में पैक उसके बचपन की सैनिक की वर्दी देख वृंदा वात्‍सल्‍य रस में डूब सी गई। अनायास ही वह बरसों पहले की यादों में खो सी गई।

वृंदा – स्‍वर्णा अब ये सैनिक वाला ड्रेस तुमको छोटा हो गया हैं, या तो इसे किसी को दे देते हैं या ट्रंक में डाल देते हैं।

स्‍वर्णा – नहीं मां, ये हमेशा मेरे वार्डरोब में यूँ ही टंगा रहेगा।

ना जानें स्‍वर्णा के मन में इस वर्दी के प्रति इतनी प्रीत क्‍यों थी।

स्‍कूल के सांस्‍कृतिक कार्यक्रम में इसी यूनिफार्म को पहन 5 साल की नन्‍हीं स्‍वर्णा स्‍टेज पर पहुंची और

' नन्‍हा-मुन्‍ना राही हॅू, देश का सिपाही हॅू, बोलो मेरे संग, जय हिंद, जय हिंद जय हिंद जय हिंद, बड़ा होकर देश का सहारा बनूंगा '

देशभक्ति गीत पर उसने आंखों और शारीरिक भावभंगिमाओं द्वारा अपने देश के प्रति रोम-रोम में व्‍याप्‍त प्रेम का जो लोमहर्षक प्रदर्शन किया, पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से पट गया और दर्शक दीर्घा से वन्‍स-मोर, वन्‍स-मोर की गर्जना सी हो उठी ।

अपने भाई या पापा के साथ पंजा लड़ाना उसका प्रिय शगल था। छोटे, पर अपने से वजनी भाई को पीठ पर शक्‍कर के बोरे जैसे उठाकर वो यूं दिखाती कि उसमें भरपूर शक्ति हैं। थोड़ी बड़ी हुई तो एन सी सी भी ज्‍वाइन कर लिया। कैंप में ही उसने पर्वतारोहण भी सीख लिया था। तैराकी के प्रति उसकी दीवानगी तो थी ही ।

बचपन से ही जब भी देशभक्ति गीत बजा करते, स्‍वर्णा उनमें मगन सी हो जाती और भारत मां के जयकारे लगाने लगती। स्‍वभाव से अत्‍यंत चंचल और बेपरवाह सी स्‍वर्णा सरहद पर तैनात सैनिकों के आतंकवादियों से मुठभेड में अपने सैनिकों के शहीद होने के समाचार रेडियों और टी वी पर सुनते-देखते बेहद गमगीन हो जाया करती। एक बार तो हद हो गई जब आतंकियों के होटल ताज पर हमले के समय, हमारे जांबाज सैनिक हेमंत करकरे जी, विजय सालसकर जी और अशोक कामटे जी आतंकियों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये थे उस समय स्‍वर्णा इस हद तक व्‍यथित हो गई थी हर पहर टीवी पर आती खबरों को सुनकर अपनी मुट्ठी टेबल पर इतनी जोर से पटकी कि उस पर रखा गुलदस्‍ता गिरकर चूर-चूर हो गया। वृंदा और उसके पति तो स्‍वर्णा के हावभाव देख घबरा ही गये थे। उसी दौरान शहर में स्‍वतंत्र प्रतियोगिता में बर्फ की सिल्‍ली को एक ही स्‍ट्रोक में तोड़ने पर ईनाम की घोषणा की गई। कई सारे प्रतिभागियों के असफल होने के बाद स्‍वर्णा ने चुनौती स्‍वीकार करते हुए दर्शक दीर्घा से उठकर भारत माता की जय कहते हुए हाथ से प्रहार कर एक ही बार में बर्फ की सिल्‍ली के परखच्‍चे ही उड़ा दिये थे और साथ ही ईनाम की 5000/- की राशि उसने वृद्धाश्रम को दान कर दी। उसकी सोच सबसे विलग ही थी।

अब घर पर उसने अपने इंडियन आर्मी में जाने की घोषणा भी कर दी थी। जब स्‍वर्णा किसी बात के लिए जिद पर आ जाती थी तो वो करके ही मानती थी, ये बात घर पर सभी बहुत अच्‍छी तरह जानते थे। यहां तक कि इस बीच पूरा परिवार घूमने के लिए मकाउ गया तो वहां चल रहे बंजी जंपिंग में वृंदा के लाख मना करने के बावजूद स्‍वर्णा 61वें माले से नीचे कूदने में जरा भी नहीं हिचकिचाई।

देखा मां-पापा, मुझे किसी भी कठिनाई से डर नहीं लगता, फिर छोटे-मोटे आतंकियों के हथकंडों से क्‍या घबराना। आप दोनों मेरी चिंता बिल्‍कुल मत कीजिएगा। मैं खुद ही अपना ध्‍यान रखूंगी क्‍योंकि मुझे मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवित रहना जरूरी हैं– स्‍वर्णा दिलेरी से बोल रही थी ।

सफर के अंतिम चरण में वे सभी वापस घर की ओर चल पड़े। पूरे सफर में वृंदा का दिल सूखे पत्‍ते सा थर-भर कांप रहा था, वो खुद से ही बोली जा रही थी – नहीं, बिल्‍कुल नहीं, मैं अपनी नन्‍हीं, मासूम सी इकलौती बिटिया को मैं इस तरह यमदूतों के हवाले नहीं कर सकती ।

घर वापस आते ही वृंदा बिना कोई भूमिका बांधे सीधे-सीधे बोली - सुनिए जी, मेरा तो दिल बैठा जा रहा हैं, आप किसी तरह स्‍वर्णा को आर्मी में ना जाने के लिए मना लीजिए ना। हर समय जान पर खतरा मंडराता रहेगा। रोकिए ना उसे, मैने नौ महीने कोख में रखा हैं उसको, यूं उसके सीने को गोलियों से छलनी करने के लिए नहीं। अरे, आप चुप क्‍यों हैं, कुछ तो बोलिये - वृंदा पति के सामने अधीरता से बोलते हुए रोने लगी

वृंदा, एक बात कहूं तुमसे, सरहद पर अपनी जान को जोखिम में डालने वाले जो भी जवान आज हँस कर अपनी जान को दांव पर लगा, सीना ताने हर क्षण खतरे के लिए तैयार बैठे होते हैं ना, सब अपने माता-पिता के दुलारे हैं। और हां, ये देश के सपूत – जवान बनाए नहीं जाते, इनकी रगों में ही मातृभूमि की रक्षा के लिए ही रक्‍त दौड़ता हैं, और हमारा सौभाग्‍य ही हैं जो हमारी स्‍वर्णा का जन्‍म भी देश की रक्षा के लिए ही हुआ हैं यह हम दोनों को मान ही लेना चाहिए। रही बात जान पर हमेशा बने खतरे की, तो मुझे ये बताओं कि क्‍या किसी को अपनी जिंदगी के अगले पल का भरोसा हैं, कौन जानता हैं कि रात को सोने के बाद अगली सुबह उठ भी पाएगा या नहीं - वृंदा के पापा बोले।

ये भी सच हैं जी, आपने सोलह आने सच्‍ची बात कहीं हैं। ईश्‍वर ने सबका प्रारब्‍ध माथे पर ही लिख भेजा हैं, हमें भी इसका स्‍वागत ही करना चाहिए। हालांकि जी तो बहुत भारी हो उठा हैं फिर भी अब मैं भी स्‍वर्णा के इस निर्णय में उसके साथ रहूंगी जी, सच आज सैनिकों के साथ-साथ उनके परिवार वालों की कुर्बानियों की बदौलत ही तो देश में बाकी सब चैन की नींद सोया करते हैं, स्‍वर्णा के जज्‍बे को बनाएं रखने के लिए हमारा साथ होना बहुत जरूरी हैं- वृंदा बोली।

पढ़ने में तो स्‍वर्णा थी ही अव्‍वल, इंजीनियरिंग की परीक्षा के तुरंत बाद एस एस बी की परीक्षा पास होने के बाद 5 दिन तक चले साक्षात्‍कार के विभिन्‍न पांचों चरणों में अपने शारीरिक-मानसिक और बौद्धिक अकल्‍पनीय क्षमताओं का प्रदर्शन कर अंतत: वह लेफिटनेंट पद की प्रबल दावेदार बनी। अब आगे 49 सप्‍ताह के लिए चैन्‍नई में अत्‍यंत सख्‍त नियमों वाले शारीरिक – मानसिक प्रशिक्षण का जटिल दौर सामने था ।

वृंदा और उसके पति प्रतिक्षण स्‍वर्णा की अच्‍छी सेहत, बेहतर प्रदर्शन और सफलता की कामना किया करते। आर्मी के प्रशिक्षण के सख्‍त कायदे मालूम होने के बावजूद वृंदा ने अपनी लाड़ली बिटिया को विदा करने के पहले, ढेर सारा नाश्‍ता लड्डू, नमकीन, खुरमे और ड्रायफ्रूट्स एक बैग में अलग से ही पैक कर रख दिए।

आंखों में आंसुओं का सैलाब बड़ी ही शिद्दत से थामें वृंदा, उसके पति और स्‍वर्णा के भाई ने स्‍वर्णा को चैन्‍नई के लिए एयरपोर्ट पर विदा किया। वापस आने पर मानों घर का कोना-कोना स्‍वर्णा की भीनी खुशबू से महक रहा था। एक-एक कर दिन गुजरते गये। स्‍वर्णा की आवाज सप्‍ताह में एक बार थोड़े समय के लिए सुन पाते। इतनी धीमी, कमजोर आवाज – ‘’मां, बहुत थक गई हूं, तीन घंटे ही सोने को मिला हैं, बाद में बात करूंगी। उससे बात करने के बाद वृंदा को लगता – ‘’स्‍वर्णा को आर्मी में भेजने का निर्णय सही भी था या नहीं ‘’ ऐसा सोचते ही मशक्‍कत से बनाया उसका मन फिर डांवाडोल होने लगता ।

जैसे –तैसे प्रशिक्षण के पांच महीने बीते और उसे सप्‍ताह भर की छुट्टी मिली। वृंदा के घर तो मानों दीवाली जैसी खुशियां पसर चुकी थी। उसने स्‍वर्णा के आने के एक दिन पहले ही उसके मनपसंद व्‍यंजन बनाने की पूरी तैयारी कर ली। पूरा परिवार स्‍वर्णा को लेने एयरपोर्ट पहुंच गया। स्‍वर्णा को देखते ही तीनों ने उसे अंक में भर लिया। वृंदा की आंखों से खुशियों के आंसू यूं बह निकले कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

बेटा, कैसे रहे इतने दिन, क्‍या खाती थी, क्‍या सिखाते थे, थकती तो नहीं थी ना, खाना अच्‍छा बनता था वहां पर कि नहीं – जाने कितने ही प्रश्‍नों की झड़ी वृंदा ने लगा दी।

वृंदा, थोड़ी चैन की सांस लेने दो स्‍वर्णा को, घर चलकर हम इत्‍मीनान से बात करेंगे – स्‍वर्णा के पापा बोले ।

घर पहुंचकर वृंदा ने स्‍वर्णा की मनपसंद स्ट्रांग कॉफी बनाई।

हां अब तो बता, इतने दिन कैसे गुज़रे, कितनी दुबली हो गई हो वहां जाकर, खाने पीने देते भी हैं या भूखे पेट दौड़ाभागी ही कराते रहते थे - वृंदा ने लाड़ से स्‍वर्णा का सिर अपने कंधे पर रख, प्‍यार से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा ।

मां, सब बढि़या हैं, सुबह 05;00 से रात 10;30 या 11;00 बजे तक परेड़, एक्‍सरसाइज, पुशअप्‍स और बाकी बचे समय सीनियर्स का रगड़ा शरीर को हिला डालता हैं, इतनी दौड़ाभागी में भी सबके साथ अब बहुत मज़ा आता हैं। शुरूआत में तो हालत बहुत ही पस्‍त हो जाती थी। अब आदत हो गई हैं हम सबको ।

दीदी, पहले तुम मुझे पीठ पर उठाया करती थी, क्‍या अब भी उठा सकती हो मुझे पीठ पर- भाई ने पूछा

अरे चल आ जा, अब तो तुझे मैं अपनी कंधे पर बिठाकर पूरे मोहल्‍ले में घुमा सकती हॅू –स्‍वर्णा ने कॉफी का मग टेबल पर रखा और सचमुच 62 किलो के भाई को दुबले-पतले कांधे पर उठाकर घर के गार्डन में घुमा लाई । तो उसे देख मां-पापा हतप्रभ रह गये।

अच्‍छा ये बता, मैने जो नाश्‍ता तुम्‍हारे साथ भेजा था, वो तूने खाया या दोस्‍तों में बांट दिया- वृंदा ने पूछा

अरे मां, इस बार साथ में कुछ भी बनाकर मत देना। जितने भी मेरे साथी खाने का सामान लाए थे, सबका नाश्‍ता इकट्ठा करके आधी पानी से भरी बड़ी सी बाल्‍टी में मीठा-नमकीन सब मिला दिया गया और सबको खाने के लिए बोला – हम सब तो घबरा गये थे।

यानि मम्‍मी का बनाया सब पानी में चला गया, शुद्ध घी के लड्डू, नमकीन, सलोनी और च्‍यूडे के साथ, बेहतरीन डिश तैयार हो गई होगी, एकदम डिलीशियस ऑल इन वन- पापा बोले तो सभी हंस पड़ें

पापा, आर्मी ट्रेनिंग में ऐसा करके सिखाया जाता हैं कि हमें छोटी-छोटी भौतिक वस्‍तुओं, या सुख-सुविधाओं में अपना दिमाग और शक्ति जाया करने के बजाय अपने लक्ष्‍य की ओर आत्‍मकेंद्रित होना चाहिए । वरना सभी इन बेमतलब की चीजों में ही लगे रहेंगे तो फि़जि़कल फिटनेस और देशप्रेम की भावना जैसे प्रमुख मुद्दे तो पीछे ही छूट जायेंगे – स्‍वर्णा ने बताया

स्‍वर्णा, अब तू कुछ अपने छोटे भाई की खबर भी ले जरा- मां बोली

अच्‍छा ये बता, तेरी पढ़ाई कैसी चल रही हैं, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी अभी से शुरू की या नहीं- स्‍वर्णा अपने भाई से पूछने लगी।

अरे दी, अभी तो पहला साल ही हैं फाइनल ईयर के साथ करूंगा ना तैयारी, अभी से क्‍यों टेंशन लेना- भाई बेफिक्री से बोला।

अरे मेरे होशियारचंद, एक बात बताऊँ हमारे आर्मी प्रशिक्षण केंद्र में जहां हम सब एकत्र होते हैं, वहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हैं ‘’आज मुकाबला होगा ।‘’ इस संदेश से हमें यह सिखाया जाता हैं कि भले ही वह दिन अपेक्षित रूप से शांतिपूर्ण दिन हो, पर अगले क्षण का कोई भरोसा नहीं, और हमें हर दिन युद्ध की तैयारी पूरी तरह से रखनी होगी। इसी तरह तुमको भी अपने अच्‍छे कैरियर के लिए स्‍नातक के तीसरे साल का इंतजार करने के बजाय इसी साल से ऐसे जुट जाना चाहिए मानों इसी साल तुमको मेट/गैट जो भी परीक्षा देना हो –स्‍वर्णा ने समझाया

अच्‍छा बेटा ये बताओं तुम या तुम्‍हारे साथी ऐसे भी होंगे जो ट्रेनिंग के मापदंड पूरे नहीं कर पाते हो या गलतियां करते हो, टेस्‍ट पास ना कर पाते हो, उनका क्‍या होता है – पापा ने पूछा

पापा वैसे तो ट्रेनिंग में कोशिश की जाती हैं कि एक कंपनी के सभी साथी एक साथ प्रशिक्षित हो जाए, पर यदि कोर्इ प्रशिक्षण के पैमाने पर खरा नहीं उतरता तो उसे दो-एक और मौके दिए जाते हैं, इस पर भी बात नहीं बनती या वह साथी पास नहीं होता तो उसे जूनियर बैच के साथ पुन: प्रशिक्षण की शुरूआती क्‍लास में डाल दिया जाता हैं । वह जूनियर्स के साथ फिर से प्रशिक्षण लेता हैं । इस तरह हमें आर्मी में सिखाया जाता हैं कि असफलता से हार नहीं मानना, और सतत् कोशिश करते रहने से मंजिल पा ही लेते हैं। स्‍वर्णा बोली-

दीदी, आप ये सीनियर द्वारा लिए जाने वाले रगड़ा की बात कर रही थी, ये रगड़ा क्‍या होता हैं, जैसे हमारे कॉलेज में हमारी रैगिंग ली जाती हैं, वहीं ना- भाई ने पूछा

हां, बिल्‍कुल वैसे ही, पर यहां हमारे सीनियर्स हमारे बेहतरी, हमारे अच्‍छे प्रदर्शन और हमारी स्‍ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए पुशअप्‍स, रनअप्‍स, परेड, एक्झरसाइज करवाते हैं, कॉलेज की रैगिंग की तरह किसी का मज़ाक उड़ाने या मस्‍ती के लिए नहीं। सीनियर के इसी रगङे से हम और भी ज्‍यादा एनर्जेटिक और स्‍वस्‍थ महसूस करते हैं। साथ ही जब सप्‍ताह में दो बार जब हमें फिल्‍में दिखाई जाती हैं तो वे खुद हमसे कहते हैं कि तुम लोगों को आराम करने नहीं मिलता हैं, जैसे ही हॉल में पिक्‍चर शुरू होते ही लाइट बंद हो जाती हैं, सब लोग सो जाया करों, पर ध्‍यान रखना पिक्‍चर खत्‍म होते ही लाइट लगने के पहले उठ जाना। अनुशासन भंग नहीं होना चाहिए ना। इस तरह वे हमारा ध्‍यान भी रखते हैं। और इस माध्‍यम से आर्मी प्रशिक्षण हमें यह सिखाता हैं कि लीडर ही लीडर बनाते हैं। – स्‍वर्णा बोली

दी, सुबह से लेकर देर रात दौड़ते भागते तुम लोग थकते नहीं क्‍या- भाई ने पूछा

थकते तो हैं, पर जब कभी भी थकान या आत्‍मविश्‍वास कमतर लगता हैं हम ‘’ओटा सांग – अंतिम पगो के निशां’’ सुन लेते हैं, एक गाने का एक-एक लब्‍ज़ हममें अपार शक्ति का संचार सा कर देता हैं और हम फिर से स्‍फूर्ति से भर उठते हैं – स्‍वर्णा बोली

स्‍वर्णा ये बताओ कि ये कंपनी मतलब क्‍या होता हैं, महिला-पुरूषों की अलग-अलग होती हैं या एक साथ। एक कंपनी के सभी साथी मिल-जुलकर रहते हैं ना - मां ने पूछा

मां, आर्मी ट्रेनिंग में कुल 7 कंपनियां यानि हाउसेस होती है, 2 महिलाओं की और 5 पुरूषों की। वैसे छोटी-छोटी गलतियों के लिए तो व्‍यक्तिगत तौर पर सजा मिलती हैं जैसे अनुशासन तोङना, समय पर उपस्थित ना होना। इसके लिए तो एक्‍स्‍ट्रा ड्रिल, 3 कि. मी. दौङ या सुबह पांच बजे यूनिफार्म में उपस्थिति दर्ज कराना लेकिन ग्रुप में रहते हुए किसी ने अनुशासन भंग किया, आपस में मतभेद, विवाद उत्‍पन्‍न हुए तो पूरे के पूरे ग्रुप को सजा के तौर पर घंटो ड्रिल, परेड, पुशअप्‍स करवाये जाते हैं। इसीलिए हम सभी एक-दूसरे को गलतियों से बचने के लिए समझाइशें देते रहते हैं। इस तरह आर्मी प्रशिक्षण हमें आपसी सामंजस्‍य, मिल-जुलकर रहने की सीख देते हैं –स्‍वर्णा ने बताया

ऐसी ही स्‍वर्णा की आर्मी प्रशिक्षण की पांच म‍हीनों के खट्टे-मींठें अनुभवों और यादों के पिटारों में पूरा परिवार खो सा गया।

वृंदा, पांच महीने बाद बिटिया आई हैं, उसे खाना खिलाओगी भी या यूं ही बातें ही करती रह जाओगी – पापा ने कहा। तैयारी तो पहले ही कर रखी हैं, 15-20 मिनट में फटाफट तैयार करती हॅू, तब तक आप सब नहा लो – वृंदा बोली

पूरे परिवार ने साथ में गरमागरम खाने का आनंद लिया, पूरा दिन बातों ही बातों में गुज़र गया। फिर स्‍वर्णा के अभिवादन के लिए रिश्‍तेदारों, मित्रों के आमंत्रण का दौर चल पड़ा। 6-7 दिन कैसे गुज़र गये पता ही नहीं चला। फिर आ गया पांच महीनों के प्रशिक्षण के लिए वापसी का दिन। इस बार वृंदा ने खाने-पीने का कोई सामान साथ नहीं रखा। भारी मन से, पर मुस्‍कुराते हुए सभी ने स्‍वर्णा को फिर चैन्‍नई के लिए विदा किया। फिर दिन-महीने बीतते गये। वो समय भी आया जब प्रशिक्षण खत्‍म हो गया और स्‍वर्णा ने बताया कि अब अंत में उन सभी साथियों को ‘’जोश रन’’ में जूनियर्स को 25-30 कि. मी. दौङ 15 किलो वजन/ राइफल/ या रॉकेट लांजर के साथ पूरी करनी हैं, इसके लिए प्रशिक्षण परिसर से 40 कि. मी. दूर जंगलों और गांवों से दौड़ते हुए दौड़ पूरी करनी थी और सीनियर को 40 कि. मी.।

जोश रन के बाद ‘’पास आउट परेड’’ में सभी प्रशिक्षणार्थियों के माता-पिता के लिए सेरेमनी का आयोजन भी किया जाना था। वृंदा और उसके पति इसको लेकर बेहद उत्‍साहित थे। चैन्‍नई पहुंचकर जब उन्‍होंने परिसर देखा तो अवाक रह गये। इतने बड़े क्षेत्रफल में प्रशिक्षण केंद्र फैला था कि देखते ही बनता था । रात्री भोज के बाद अगले दिन सभी साथियों की पास आउट परेड के बाद पेरेंट्स के लिए ‘’पिनिंग सेरेमनी’’ का आयोजन हुआ। इस आयोजन में वृंदा और उसके पति ने स्‍वर्णा के कंधे पर जब स्‍टार लगाया तो स्‍वर्णा की आंखें गर्व मिश्रित भावों से नम हो चली थी। शायद आज अपने हृदय के टुकड़ें को मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पित करने का भावुक सैलाब ही था जो आंखों से उमड़-घुमड़ बहने के लिए उतावला हुआ जा रहा था।

इस सेरेमनी के बाद 21 दिन की छुट्टियों में वे सभी दक्षिण भारत में घूम कर आये और बिटिया को मातृभूमि की रक्षा की जिम्‍मेदारी के साथ विदा किया।

स्‍वप्‍न भरी यादों से वर्तमान में लौटती वृंदा मन ही मन बुदबुदा उठी – सच ही कहते हैं स्‍वर्णा के पापा– ‘’सैनिक बनाएं नहीं जाते, उनका जन्‍म ही मातृभूमि की रक्षा के लिए होता हैं, वे जन्‍म से सैनिक होते हैं ।

सच सैनिकों के लिए तो यहीं कर्मवाक्‍य सच साबित होता हैं कि


‘’न संघर्ष, न तकलीफें, फिर क्‍या मज़ा हैं जीने में,

तूफान भी रूक जाएगा जब लक्ष्‍य रहेगा सीने में । ‘’






Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational