कैसे कहूँ
कैसे कहूँ
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इस सिसकती जिंदगी को जिंदगी कैसे कहूँ
जो करी तुमने थी मेरी बन्दगी कैसे कहूँ
चांद के आँगन में बैठी चाँदनी कैसे कहूँ
रौशनी से तीरगी की आशिकी कैसे कहूँ
हैं सिसकते बेज़ुबाँ और सिसकती मुफलिसी
आप ही बोलो मेहरबाँ मयकशी कैसे कहूँ
जब सितारों की तरफ से मिल रही हो तीरगी
आप ही बोलो सितारे हमनशीं कैसे कहूँ
देखने ही देखनेे में दिल के टुकड़े कर गये
आप ही बोलो इसे अब दोस्ती कैसे कहूँ
देर मत करना मुसाफिर कर भला सो हो भला
रो रहे सब तिश्नगी में शायरी कैसे कहूँ
मानस"मन"