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घर की राजनीति

घर की राजनीति

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“दिन-रात कंठ फाड़-फाड़कर, मैंने अपना प्रचार करवाया, पानी की तरह पैसा बहाया, सब व्यर्थ। न्यूज़ चैनल बार-बार यही कह रहा है 'इसबार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा'“


“श्रीमान जी, गली-कुची शहर-देहात, सारे घूम-घूमकर, आप खुदे खून जलाकर प्रचार किये हैं। बताइए, फिर मिहनत और पैसवा कैसे बिरथ हो जाएगा?”


“अरे, मैं आपकी धरमपत्नी, आपके सुख-दुःख सब की भागीदार हूँ न। बेटवा, प्रकाश जे.एस.एस. पार्टी से खड़ा है और बिटिया, रीना बी.पी.एम पार्टी से, और मैं, निर्दलीय। सब घरै राजीनीतिये में हैं। फिर बेमतलब का चिंता करते रहते हैं आप। निफिकिर रहिये, चित्त भी अपना और पट्ट भी अपना, हा..हा..हा..”


“मान गया, कभी-कभी तुम, सचमुच, पढ़ी-लिखी की तरह बात करती हो। हाँ, बहुमत नहीं मिला, फिर भी, मिलजुल कर हम सरकार बना ही लेंगे। इस बार अपनी सरकार बन गई, तो पक्का मुख्यमंत्री के कुर्सी पर तुम्हीं को बिठाऊंगा“


“मुझको? हे भगवान !! “


“अरे, तुम मेरी मेहरारू हो। माना, ताजमहल नहीं बना सकता। पार्लियामेंट तक तो पहुंचा ही सकता हूँ”


“सच्ची ? मैं, पार्लियामेंट में, पढ़े-लिखे लोगन के बीच? हाय दय्या फिर आज से ही, मैं अंग्रेजी सीखना शुरू कर देती हूँ”


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