मानव श्रृंखला
मानव श्रृंखला
दिनेश गरोड़िया अपनी महंगी गाड़ी में पहुँचे तो फैक्ट्री के सामने दूर तक मज़दूर एक दूसरे का हाथ थामे कतार में खड़े थे। उस फैक्ट्री में जो महज़ पाँच सालों में देश की नंबर वन फैक्ट्री बन गई थी आज काम बंद था।
जोश और हिम्मत से भरे हुए नौजवान दिनेश गरोड़िया ने एक बीमार और बंद पड़ी फैक्ट्री को ख़रीद कर दोबारा काम शुरू किया था। जब उसे पहला बड़ा आर्डर मिला तब उसने अपने फैक्ट्री के मज़दूरों को इकठ्ठा कर बहुत जोशीला भाषण दिया था। उसने कहा था कि वह इस फैक्ट्री को बीमार यूनिट से देश की नंबर वन फैक्ट्री बनाना चाहता है। लेकिन यह फैक्ट्री सिर्फ मेरी नहीं आप सबकी है। आप यह सोच कर काम ना करें कि काम किसी दिनेश के लिए कर रहे हैं। यह काम आप अपने सुखद भविष्य के लिए कर रहे हैं। मैं और आप सब एक परिवार हैं।
उस दिन मज़दूरों पर उसके शब्दों का बहुत असर हुआ। उन्होंने फैक्ट्री के लिए नहीं बल्कि अपने भविष्य के लिए काम किया। दिनेश अक्सर मज़दूरों के बीच पहुँच जाता। उनसे बातें करता। उनके साथ ही कैंटीन में खाना खाता। उसके खुले व्यवहार ने मज़दूरों का संकोच भी कम कर दिया। वह दिल खोल कर उसे अपनी समस्या बताते। मज़दूरों का एक ही सपना था कि वह इतना कमा सकें कि अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिला सकें। दिनेश उन्हें आश्वासन देता था कि यदि वह सब मिल कर मेहनत करेंगे तो एक दिन सबके सपने पूरे होंगे। एक बार फैक्ट्री अच्छी तरह से चल गई तो वह उन्हें रहने के लिए बेहतर घर देगा। उनके बच्चों के लिए स्कूल खुलवाएगा।
दिनेश की सूझबूझ और मज़दूरों की जी तोड़ मेहनत ने रंग दिखाया। बीमार फैक्ट्री में नई जान आ गई। देखते ही देखते उनका उत्पाद देश भर में जाने लगा। उसके बाद तो विदेश से भी आर्डर मिलने लगे। जैसे जैसे फैक्ट्री बढ़ रही थी दिनेश मज़दूरों से दूर हो रहा था। अब वह पहले की तरह उनके पास जाकर उनके सुख दुख नहीं पूछता था। अपनी गाड़ी में आता। सीधे ऑफ़िस में जाकर मैनेजर से बातचीत करता। उसे आवश्यक निर्देश देता और वापस लौट आता। मज़दूरों को लगता था कि दिनेश अपने और उनके सपनों को सच करने की जद्दोजहद में उलझा है। एक दिन वह उन पर ध्यान देगा। अपने परिवार के पास आएगा। किंतु त्योहारों पर थोड़े से बोनस के अतिरिक्त कुछ नहीं मिल रहा था।
फैक्ट्री को देश की नंबर वन फैक्ट्री का खिताब मिला। बड़े से समारोह में दिनेश गरोड़िया को सम्मानित किया गया। मज़दूरों ने भी खुशी मनाई। उन्हें पूरा यकीन था कि इस बड़ी उपलब्धि का जश्न मनाने वह उन लोगों के पास आएगा। लेकिन दिनेश ने एक बड़े पांच सितारा होटल में सफलता की पार्टी रखी। बड़े बड़े लोगों को बुलाया। किंतु मज़दूरों को पूछा तक नहीं।
दिनेश का यह व्यवहार मज़दूरों को खल गया। वह उसके फैक्ट्री आने की राह देखने लगे। चार दिनों के बाद दिनेश फैक्ट्री आया। हमेशा की तरह मैनेजर से मिल कर लौटने लगा तो गेट पर मज़दूरों ने उसकी गाड़ी रोक ली। खीझ कर उसने अपने ड्राइवर से कहा कि देखे कि क्या तमाशा है। ड्राइवर ने बताया कि मज़दूर आप से मिलना चाहते हैं। मजबूरी में दिनेश गाड़ी से बाहर आया।
"क्या है ? गाड़ी क्यों रोकी ?"
मज़दूरों में से एक उनके मुखिया के तौर पर आगे आकर बोला।
"हम आपको हमारी फैक्ट्री के नंबर वन बनने की बधाई देना चाहते हैं। आज आप हमारे साथ कैंटीन में खाना खाएं।"
"मेरे पास वक्त नहीं है। तुम लोगों को तुम्हारा बोनस मिल जाएगा।"
यह कह कर वह गाड़ी में बैठने लगा। मज़दूरों के प्रतिनिधि ने आगे बढ़ कर गाड़ी का दरवाज़ा पकड़ लिया।
"ये क्या बद्तमीजी है ?"
मज़दूरों के प्रतिनिधि ने विनम्रता से कहा।
"दिनेश बाबू आप शायद भूल गए किंतु हम नहीं भूले। आपने कहा था कि हम सब एक परिवार हैं। हमारे सपने एक हैं। पर आज आप हमें अपना मानने से भी इंकार करते हैं।"
दिनेश का पारा सातवें आसमान पर था। वह उबल पड़ा।
"औकात में रहो नहीं तो पुलिस में दे दूँगा। यह फैक्ट्री मेरा सपना थी। मेरी मेहनत इसे आज यहाँ लाई है। बेकार बातें बंद करो।"
"हम आपकी मेहनत को नकार नहीं रहे। आपकी ही सूझबूझ थी जिसने हमें इतने आर्डर दिलाए। लेकिन उन्हें समय पर और सही तरह से पूरा करने के लिए हमने भी समय देखे बिना काम किया। क्योंकि आपने कहा था कि यह फैक्ट्री सिर्फ आपकी नहीं हम सबकी है।" दिनेश से यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने कहा।
"जो मिल रहा है वह भी औकात से ज्यादा है। जिसे यहाँ काम करना है करे। जिसकी मर्ज़ी हो काम छोड़ कर चला जाए।"
कह कर उसने मज़दूर को धक्का देकर गाड़ी का दरवाज़ा बंद कर लिया। सभी मज़दूर हतप्रभ रह गए। दिनेश फैक्ट्री से चला गया।
कल रात फैक्ट्री के सारे मज़दूरों ने मैनजर के पास पहुँच कर कहा कि वह दिनेश को फोन कर सुबह फैक्ट्री आने को कहे।
दिनेश सुबह ही अपनी गाड़ी में बैठ कर फैक्ट्री पहुँचा तो बाहर मज़दूरों की मानव श्रृंखला देख चकरा गया। गाड़ी रुकी और वह नीचे उतरा। मज़दूरों का प्रतिनिधि सामने आकर बोला।
"हम मज़दूर खुद को एक परिवार मानते हैं। इसलिए हमने एक साथ फैक्ट्री छोड़ने का फैसला लिया है। पर आपसे मिले बिना जाना नहीं चाहते थे। हमने तो सदा आपको अपना समझा है।"
मज़दूरों की एकता को देख कर दिनेश आश्चर्यचकित था।