क्या कर सकते हो तुम मुझे कैद ?
क्या कर सकते हो तुम मुझे कैद ?
हम स्वतंत्र है !
हैना !
नजाने फिर भी क्यों ऐसा लगता है कैद
जैसे किसीने पिंजरे में बंद करके रखा है
पता है दिल चाहता है की उड़ जाऊं
ऐसी एक जगह जिसकी कोई सीमा नहीं
किसी का दर नहीं
आज मुझसे एक अनजान व्यक्ति ने प्रश्न किया
आप कौन हैं ?
मैं कौन हूँ?
पता नहीं !
नहीं बता पायी मैं कौन हूँ!
उस प्रश्न से मैं अनजान थी
नजाने क्यों मैं खुद से ही अनजान थी
पर क्यूँ क्या सोलह साल खुद को पहचानने के लिए कोई कम समय है ?
शायद नहीं !
पर पहचानू भी तो कैसे !
मैं!
मैं तो मेरे सपनो का एक रूप हूँ
और वही सपने पिंजरे में कैद हैं
मेरा नाम नजाने क्या है
अभी बनाने की कोशिश में हूँ
सोचने पर भी हैरानी सी लगती है
इतने सैकड़ो लोग में भीड़ में
खो चुकी थी मैं
खुद को खो चुकी थी मैं
मैं कौन हूँ?
क्या मैं वो हूँ जो लोग मुझे बोलते है ?
या वो बनने की कोशिश में हूँ|
पता नहीं !
पर शायद पहली बार
मैंने खुद को जाना
मैं मेरे सपनो का रूप हूँ
मेरी कल्पना का स्वरुप हूँ
मैं मैं हूँ !
खोज लिया था मैंने खुद को !
हा! हा! ढूंढ़ते ढूंढ़ते आख़िर ढूंढ ही लिया था था खुद को !
हो सकता है की मैं सर्वोत्तम नहीं हूँ
पर इतनी बुरी भी नहीं हूँ
पहली दफा प्यार जो हो गयाथा खुदसे
हाँ ! मैं कैद हूँ !
पर मेरे सपने नहीं !
हाँ ! मैं कैद हूँ!
पर मेरी कल्पाना नहीं !
मेरेको कैद करके रखा है
क्या कर सकते हो तुम मेरी कल्पना को कैद ?
क्या कर सकते हो तुम मुझे कैद ?