दिल है कि मानता नही
दिल है कि मानता नही
"अजी ..सुनते हो ,,क्या दिन भर पढ़ते रहते हो अब तो रिटायर भी हो गए हो तब भी प्रोफेसर ? तनिक कुछ सहायता कर दो मेरी" लक्ष्मी ने कटाक्ष किया, ऐसा कटाक्ष जो रविशंकर के कानों में जाकर तांडव करने लगा ।रविशंकर उठे और तुरन्त लक्ष्मी के पास आकर बोले
"हां श्रीमती जी बोलिए कोई आवश्यक कार्य हो तो बताइए" ।
"अरे हाँ वो छत से कपड़े लेकर लेकर आना है ,जाओ लेकर आ जाओ मेरी कमर में थोड़ा दर्द है।अब उम्र बुढ़ापे में ही तो बीत रही है पर आपको तो बुढ़ापे की सनक लग गयी है ,जब देखो तब किताबो में न जाने क्या खोजते रहते हो ।कभी तो लगता था रिटायरमेंट के बाद जिंदगी जियेंगे थोड़े ढंग से बद्रीनाथ केदारनाथ धाम ,हरिद्वार ,चित्रकूट धाम चलेंगे लेकिन तुम अभी भी नहीं बदले हो, आज भी वही इंसान हो अपनी किताबों से भी कभी बाहर आओ ।हर वक्त क्या किताबो में लगे रहना ।जाओ अब कपड़े लेकर आओ ।"
रविशंकर चुप चाप वहाँ से निकल गए क्यूंकि उनके मन मे काल्पनिक कहानियों की झड़ी सी लगी हुई थी ,ये वाकई अभी भी नहीं सुधरे, लगता है इन्हें बुढ़ापे की सनक लग ही गयी है।