प्रेम विवाह
प्रेम विवाह
जब विवाह हुआ तो शेखर अठाइस साल का और सुहासिनी सिर्फ अठारह साल की थी। सुहासिनी के पिता को शेखर बेहद पसंद था। इसीलिए उम्र के इतने बड़े अंतर को नजरअंदाज कर उन्होंने सुहासिनी के लिए शेखर को चुना।
शादी के पहले एक दो साल एक दूसरे को समझने और जानने में ही लग गए। फिर धीरे धीरे वो दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए।
दफ्तर से घर आते ही शेखर की ऑंखें बस सुहासिनी को ढूंढने लगती। इस समय अगर वो सूखे कपडे समेटने छत पर भी गयी हो तो वो बेसब्रे हो जाते।
"जाओ माँ को जल्दी से नीचे बुलाओ।"
बच्चे ये आदेश सुन हँसते हुए माँ को बुला लाते।
थोड़ा बड़े होने पर बच्चे उन्हें छेड़ने भी लगे।
वैसे सुहासिनी को भी अच्छा लगता था शेखर का उसके लिए व्याकुल होना पर कभी कभी खीज भी जाती थी।
सुहासिनी शेखर की सीमित आय में भी घर कुशलता से चला लेती थी।
घर परिवार की जिम्मेदारियों में शेखर और सुहासिनी न कभी फिल्म देखने जा पाते न कहीं अकेले घूमने। सुहासिनी अच्छे पहनने ओढ़ने का शौक भी भूल गयी थी।
फिर बच्चे बड़े हुए और सेटल भी हो गए।
चिड़िया के बच्चों की तरह उड़ कर अपने अपने घोंसलों में भी चले गए।
अब सुहासिनी और शेखर दोनों मजे से वो सब कर रहे हैं जो पहले नहीं कर पाते थे।
शेखर लिखने पढ़ने का शौक और जोरों शोरों से पूरा कर रहे हैं और सुहासिनी पहनने ओढ़ने और माँ से रोज घंटा भर बात करने का।
कभी वो बच्चों के पास चले जाते हैं और कभी बच्चे उनके पास आ जाते हैं।
अब तो बच्चों के बच्चों पे ज्यादा लाड आता है।
पर अभी भी शेखर सुहासिनी के बिना एक दिन भी नहीं गुजारते। चाहे किसी परिचित के घर जाएँ या डिस्पेंसरी या बाजार दोनों साथ साथ ही रहते हैं। एक दूसरे से नोंक झोंक भी करते हैं, पर रहते हैं हमेशा साथ।
दो हंसों के जोड़ों की तरह।
शायद इसे ही प्रेम विवाह कहते हैं।