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जुदा होके तू मुझमें बाकी है

जुदा होके तू मुझमें बाकी है

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आरती और मयंक की जिंदगी में निकुंज का पहला कदम...जिंदगी में आना कोई सपने से कम नहीं था। आरती जी को बहुत साल हो गये थे, नन्हे कदमों के इंतजार मे जो कि उनका आज शादी की 7 साल बाद पूरा हुआ।निकुंज ..जैसे उनके लिए खिलौना था। उसी से उनका दिन शुरू होता और उसी से ही रात जो वह माँगता वह उसी दिन पूरा हो जाता।

निकुंज कुछ खा ले बेटा। गरम - गरम लाई हूँ, नहीं... माँ मुझे नहीं खाना।

निकुंज तू क्या खाएगा ? बेटा मैं वही बना दूंगी।

आरती जी हर तरह से उसकी कोशिश करती कि मेरे बेटे की सब जरूरतें पूरी हो जाए।

निकुंज कॉलेज में आ गया था। जरा सी देर हो जाती, आरती तुरंत फोन करके पूछती निकुंज कहाँ हो ? इतनी देर क्यों हो गई ?

निकुंज घर आकर गुस्से से चिल्लाने लगता ..क्या जरूरत थी मुझे कॉलेज में फोन करने की कोई मैं छोटा बच्चा हूं जो खो जाऊंगा। आज के बाद से मुझे फोन मत करना मेरे दोस्त मजाक बनाते हैं।

आरती चुपचाप रूँँआसी हो जाती। धीरे-धीरे निकुंज अपने दोस्तों अपनी नौकरी में व्यस्त होता चला गया और माँ-बाप का रोकना टोकना उसको बुरा लगने लगा।

निकुंज की शादी की बात करने से पहले ही, निकुंज ने शैलजा को सामने लाकर खड़ा कर दिया तो कोई और सोचने का चारा ही ना था। मयंक और आरती ने भी उसकी इच्छा के अनुसार हाँ कर दी। शैलजा मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करती थी और दोनों सुबह ही नौकरी के लिए निकल जाते ,उससे पहले आरती उन लोगों का टिफिन बनाकर तैयार कर देती और शाम को आने पर उनके लिए खाने का इंतजार करती ... कभी निकुंज और शैलजा बाहर से खाना खाकर आते और कहते कि हम बाहर से खा आए हैं। एक दिन आरती ने कहा कि पहले बता दिया करो अगर बाहर से खाना खाओ, तेरे पापा ने बडी देर.तक इंतजार किया। इस पर मयंक का दो टूक जवाब था...आपको हमारे इंतजार करने की जरूरत नहीं ..। आप दोनों खाना खाकर सो जाया करो।

मयंक ओर आरती को समझ नहीं आ रहा था कि हमारी परवरिश में कमी कहाँ रह गई ?

निकुंज और शैलजा के शादी के दो साल के बाद एक छोटा बेटा कुंज आ गया था। पोते कुंज के आने से घर में रौनक हो गई। आरती और मयंक उसको खिलाने में ही निकुंज की बातें भूलते जा रहे थे। जब भी शैलजा और निकुंज की छुट्टी होती तो वह कुंज को अपने पास ही रखते और आरती और मयंक के कमरे से उनका कोई वास्ता ना था। सोमवार को नौकरी पर जाते हुए फिर कुंज उनके पास आ जाता और कोई चारा भी नहीं था, लगता था यहां बच्चा संभालने के लिये उन्हें माता-पिता की जरूरत महसूस हो रही थी।

कुंज बड़ा होता चला गया और वह दादा दादी का बहुत लाडला था। कुंज के स्कूल जाने का टाइम हो गया था, अगर वह कभी गिर जाता तो शैलजा, निकुंज जोर से चिल्लाते माँ देखकर नहीं संभाल सकती अभी उसकी चोट लग जाती और कभी शैलजा के हाथों से कुंज फिसल जाता तो आरती बहुत मन ही मन में कहती कि निकुंज देखो आज शैलजा के हाथ से भी फिसल गया.. पर उसको कहने की हिम्मत नहीं हुई।

मयंक जी ने तो कभी कई बार दोनों को कहना चाहा ..पर आरती घर में झगड़ा नहीं करवाना चाहती थी, जैसा भी था उनका बेटा उनके पास था। जिंदगी में बच्चे कुंज को अपने मम्मी पापा से कम लगाव हो गया।

मयंक और आरती के लिए इतना ही बहुत था कि पोता कुंज उनका ध्यान रखता था। बहू को भी क्या दोष देते ! जब अपना बेटा ही उनका उनको समझने कुछ नही समझता।

एक दिन निकुंज ने बताया कि उसने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करा लिया है। शैलजा को भी वहाँ की कंपनी में नौकरी मिल गई है। यह सुनकर मयंक और आरती के पैरों के नीचे जमीन निकल गई ....अरे बेटा इतना लंबा टाइम हो गया और तुमने हमें बताया भी नहीं कब नौकरी लगी ? कब तूने ब्रांच चेंज करने के लिए एप्लीकेशन दी ? तब तूने हमें क्यों नहीं बताया ? हम अपने मन को पक्का तो कर लेते दो दिन जाने से पहले तू हमें बता रहा है। तू कैसे पत्थर दिल हो गया। हमसे क्या परवरिश में कमी रह गई। कुंज के बिना हम कैसे रहेंगे ? तुम दोनों को तो आदत है हमारी। कुंज हमारे बिना नहीं रह पाएगा।

शैलजा ने कहा- माँँ सब आदत पड़ जाती हैं। आप लोगों को हम वहां बुलाते रहेंगे और हम भी यहां पर आते रहेंगे, दो दिन के बाद उनकी फ्लाइट थी और दोनों वहां से चले गए। मयंक और आरती जी आंखों में आंसू लिए सारा दिन रोते रोते गुजरा दोनों ना खाना खाया ना पिया। निकुंज और शैलजा का कभी-कभी फोन आ जाता था पर वह अपनी दुनिया में खुश थे, उनको कोई जाने का गम नहीं था क्योंकि वह एक आजाद पंछी थे।

जहां रोक तो खत्म हो चुकी थी, कोई उनका इंतजार नहीं करता था। घर आने का कोई उनसे नहीं पूछता था ..कितनी देर क्यों हो गई। अब कुंज बड़ा हो गया था। अब एक केयरटेकर भी उसको संभाल सकती थी। शायद इसी इसी दिन के इंतजार के लिए वह लोग यहां रुके हुए थे, ना जाने कब के चले जाते अगर कुंज छोटा ना होता। आरती और मंयक..एक ही बात करते।

मयंक जब भी निकुंज को फोन करके बताते कि उनकी मां बीमार है वह थोड़े दिन के लिए आ जाए तो निकुंज कुछ ना कुछ बहाने मेरा बना देता उसके पास कंपनी छुट्टी नहीं देगी या अभी मैं आ नहीं सकता। बहुत बहाने थे, धीरे धीरे मयंक और आरती वृद्धावस्था में आते-आते शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गए थे, मानसिक रूप से तो निकुंज ने उन्हें तोड़ ही दिया था।

निकुंज ,शैलजा विदेश में जाकर बस गए थे।

कुंज बड़ा होता चला गया, निकुंज कभी कभी अपने मां बाप के हाल-चाल फोन पर पूछ लेता था बाद में तो वह सिलसिला भी बंद हो गया। एक दिन कुंज अपने दोस्तों के साथ बर्थडे पार्टी के लिए होटल गया। मयंक और शैलजा ने उसके लिए घर में पार्टी की थी पर कुंज वहां नहीं आया। शैलजा और मयंक पसीने से लथपथ सब जगह वह फोन करके पूछे, किसी को अता पता नहीं था बाद में किसी दोस्त ने बताया कि वह तो अपनी पार्टी के लिए उसने एक होटल बुक किया है। कुंज और शैलजा निकुंज होटल पहुंचे देखते ही उनका हाथ पकड़ कर बाहर ले आया क्या कर रहे हो ? आपको होटल में आने किसने दिया, यहां पर मेरे दोस्त हैं बड़े लोगों की पार्टी नहीं है आप घर जाओ मैं वहां आ जाऊंगा।

शैलजा-निकुंज को देखते ही कुंज हमने तुम्हारे लिए घर में पार्टी रखी है सब मेहमान आए हुए हैं और तुम यहां पर पार्टी तुम्हें बताना चाहिए था। कुंज बिना कुछ बोले होटल के अंदर चला गया। कुंज घर वापस लौट आया मयंक ने हाथ पकड़ के कैसा व्यवहार है यह तुमने अचानक की पार्टी की और कितनी बेइज्जती हुई हमारी ! हमने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया और तुम हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हो मुझको तो जैसे मौके मां बाबा आपने भी तो दादा दादी के साथ ऐसा ही किया वह भी तो आपके लिए सारे रात इंतजार करते थे। पर आप कभी भी उनके प्यार की वैल्यू नहीं समझी। मैं उनके साथ तीन साल रहा और तीन साल में कई साल का प्यार में उनका ले आया।

आज मुझे कोई अफसोस नहीं है कि आपकी बेइज्जती हुई, आपने उन्होंने आपके लिए क्या नहीं किया, अपने बेटे के इस व्यवहार से निकुंज अंदर ही अंदर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई, रात भर वह सो ना सका शैलजा की आंखों में भी नींद कोसों दूर थी।

आज कुंज की बातें उसके दिल और दिमाग पर गूंज रही थी, शायद उन्हें बड़े लोगों की इज्जत का एहसास तक नहीं था, जो आज छोटे से कुंज ने उन्हें करा दिया था। सुबह उठते ही शैलजा ने तीन टिकट इंडिया की बुक कर दी और पैकिंग में लग गई ....चलो मम्मी, पापा के पास, जब अपने शहर पहुँँचे, वहां उनका घर निकुंज आशियाना वृद्धाश्रम के नाम से था और पास में ही एक छोटा सा अस्पताल था जिसका नाम था कुंज। आशियाना निकुंज और शैलजा की आंखें आंसुओं से भीग चुकी थी और जैसे ही उन्होंने दरवाजे के अंदर पैर रखा तभी बहुत सारे वृद्ध स्त्री या पुरुष छोटे-मोटे कामों में बिजी थे, कुछ हँस रहे थे कुछ कैरम खेल रहे थे, कुछ कंप्यूटर सीख रहे थे, कुछ छोटे-छोटे कामों में कढ़ाई, बुनाई, सिलाई। स्त्रियां उसमें हँसी खुशी से बात कर रही थी। तभी निकुंज को आता देख कर सब निकुंज के पास आ गए ओह ! आप निकुंज बेटा हो और ये कुंज ?

मंयक जल्दी से बोला पापा-मम्मी कहाँ है ? सब उन्हे अंदर ले गये। जहाँ एक मन्दिर में एक हार चढ़ी फोटो मंयक और आरती की थी और एक फाइल मंयक के हाथ मे दे दी गयी। निकुंज आशियाना और कुंज अस्पताल और जमीन कुंज के नाम कर गये थे और एक डायरी जिसमे निकुंज और कुंज की बचपन की बातें थी

.पहला पन्ना पलटते ही लिखा था

--जुदा हो के भी तू मुझमें कहींं बाकी है....आज बीता समय वापस नहीं आ सकता था...जिन्दगी साथ जीने मे ही है।

बहुत से बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अपने मां बाप की उपस्थिति का एहसास ही नहीं होता उनके दूर जाने पर एहसास हो तो क्या ! उनको तो बस होकर टोकना ही उनका बुरा लगता है ,आजादी छिन जाती है ,उनकी ऐसा उन्हें लगता है पर हमें अपने बड़ों का अपना फर्ज, अपना प्यार देना चाहिए उनकी छोटी छोटी बातें का ध्यान रखकर और उनके अनुभवों से कुछ सीख कर जिंदगी को उनकी साए में जीने का सोचना चाहिए। ये याद रखना चाहिये कि वक्त अपनेआप को इतिहास दोहराता है। बच्चे अपने मां-बाप का ध्यान रखें तो एक भी वृद्धाश्रम ना हो।


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