Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

ऐसे लोग भी होते हैं

ऐसे लोग भी होते हैं

3 mins
315


रात के दो बजे थे। मुम्बई के छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयर पोर्ट पर मैं बैठे -बैठे उंघ रही थी। मन में बेहद चिन्ता थी, सुबह की फ्लाइट में जगह मिल पाएगी?, कहीं फिर से अफलोड हो गई तो?


कल मेरी बेटी शिल्पी की शादी तय करनी है। शिल्पी को मैं गांव से उसके शराबी पिता से छीनकर शहर ले आई थी। मैं खुद विदेश में अपने शराबी पति के अत्याचार से तंग आकर उसे छोड़कर अपने देश में लौट आई थी। मैंने शिल्पी को पाल पोस कर बड़ा किया और आज वह खुद के पैरों पर खड़ी है। वह एक बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत है।


एक दिन इशारों में ही उसने निशांत के बारे में बताया था। मैंने उसकी खुशी देखते हुए मैंने हाँ कर दी थी। वैसे निशांत एक काबिल नौजवान था, अच्छी खासी नौकरी, सुसंस्कृत घर परिवार। मैंने निशांत से फोन पर बातचीत की थी। कल उसके परिवार के साथ वह भी आने वाला है, कल ही बात पक्की कर शादी की तिथि तय करनी थी। कल "रोका कार्यक्रम " भी था।


मेरी माँ की इच्छा थी कि शिल्पी समारोह के दौरान बनारसी साड़ी ही पहने। पुस्तक विमोचन के सिलसिले में मुझे बनारस जाना पड़ा था। वहीं मैंने उनके पसंदनुसार साड़ी खरीद ली थी। फिर मैं मुम्बई पहुंची और वहाँ ओवर बुकिंग के कारण शाम की फ्लाइट से 'बागडोगरा' जाने के लिए आफलोड हो गई।


छोटी जगह थी, एक ही फ्लाइट वहाँ जाती थी। अब मुझे अहले सुबह की फ्लाइट का इंतजार था।


“हे प्रभु ! मैं घर समय से पहुंच सकूंगी?”


कुछ कौए के जोड़ों की करतब देखते हुए समय काटने की कोशिश कर रही थी। लोगों के साथ- साथ ये पक्षी भी जगे हुए थे। शायद एयर पोर्ट के ऊँचे स्तंभों के ऊपर इनका आशियाना था। लोगों द्वारा गिराए गए कुछ 'डोसा' के टुकड़ों पर, तो कभी "बिरयानी" के चावलों पर ये टूट पड़ते। कभी एक दूसरे से चोंच लड़ाते।


भोर के चार बजे काउंटर खुल चुका था। धड़कते हुए दिल से मैंने बुकिंग की स्थिति के बारे पूछा !


“हाय रे भाग्य !उन्होंने कहा उम्मीद नहीं है”


मैंने उनसे काफी विनती की, मगर बात न बनी। तभी एक युवक जिसकी सीट कनफर्म थी और जो हमारी बातें सुन रहा था, मुझसे कहा, "मैडम अगर आप चाहे तो मेरी सीट पर जा सकती है, मैं कल चला जाऊँगा !"


मैं तुरंत मान गई, और उसे बहुत- बहुत शुक्रिया कहा। मन में सोचा "आज भी ऐसे लोग होते है"


मैंने उससे पूछा, “बेटा आपको तकलीफ तो नहीं होगी?”


“नो मैम, आपका जाना मुझसे ज्यादा जरूरी है”


“अच्छा एक बात बताओ? लोगों को मदद करने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?”


“जी ! मेरे दादाजी भी इसी तरह थे। उनकी तरह मुझे भी लोगों के काम आकर आत्मिक संतुष्टि मिलती है” युवक ने विनम्रता से जवाब दिया।


मैं समय पर घर पहुंच गयी। सभी कार्य तय कार्यक्रम के अनुसार ही हुआ। मगर निशांत अपने परिवार के साथ न आ सका, उसकी फ्लाइट मिस हो गई थी। उसके पिता ने विडियो चैट से हमारी मुलाकात कराई।


हम दोनों एक दूसरे को देखकर अवाक रह गये। कल का युवक "निशांत "ही था। मैंने मुस्कराते हुए शिल्पी से कहा तुने अपने लिए' हीरा' चुना है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama