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Anurag Kashyap Thakur

Abstract

3.0  

Anurag Kashyap Thakur

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एक पुराना ख़त

एक पुराना ख़त

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                                ख़त

आज फिर मुझे एक पुराना दोस्त याद आया है,
लिफाफे में ख़त की जगह गुलाब आया है| 
पता है उस ख़त में गुलाब से ज्यादा लिखा है,
जाने कब से उसे अपने सिरहाने रखा है|
उसके हर एक शब्द अब भी वैसे क वैसे ही है,
पंखुरियाँ सुख गई है पर शब्द अभी बोलते है|
उसने हर शब्द को इतनी खूबसूरती से सजाया है,
लिफाफे में.................................................|
मैंने पहली बार इसे उसके बागीचे में देखा था,
तितलियों से अठखेलियां करते हुए|
अोस की बूंदों से नहाये हुए ,
यौवन की आहट से थोड़ा शरमाये हुए |
उस दिन से अब तक की हर बात पिरो कर लाया है,
लिफाफे ......................................................|
उसने भी इसे तोडकार कई दिनों तक अपने पास रखा होगा,
और एक-एक बात गौर से समझाई होगी|
तभी तो यह इतना समझदार हो गया है,
और बगैर खुश्बू के भी असरदार हो गया है|
तब जो चूड़ियाँ दी थी मैंने उसे ,ये उसका जबाब आया है'
लिफाफे में................ .......................................|
आज सुबह से मैं कैलेंडर में घूम रहा था,
घर जाने क लिए एक तारीख ढूंढ़ रहा था|
सपनो का जहाँ है ये मैं  भी सपना सजा रहा था,
खुद ही खुद केलिए शहनाई बजा रहा था |
तभी दरवाजे पर डाकिया आया ,
आवाज देकर मुझे बुलाया|
मुझे देखकर बोला पिछली बार पता खो गया था,
और गलती से ये ख़त आपका हो गया था |
मैंने अनचाहे मन से वो ख़त उसे वापस दिया ,
ओए जाते- जाते गुलाब को अलविदा किया|
अनुराग


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